गॉंव कहॉं सोरियावत हे : चार आखर – बुधराम यादव

चार आखर सत ले बड़े धरम, परमारथ ले बड़े करम, धरती बड़े सरग अउ मनुख ले बड़े चतुरा भला कउन हे । संसारी जमो जीव मन म सुख अउ सांति के सार मरम अउ जतन ल मनखे के अलावा समंगल कउनो आने नइ जानय । तभो ले बिरथा मिरिगतिस्ना म फंसे कइयन मनखे फोकटिहा ठग-फुसारी, चारी-चुगरी, झूठ-लबारी,लोभ-लंगड़, लूटा-पुदगी, भागा-भागी,मारा-मारी के पीछू हलाकान, हाँव-हाँव अउ काँव-काँव म जिनगी ल डारे कउआत रथें । सब जानत अउ सुनत हें संतोस ले बड़े दौलत अउ कउनो नइ हे, तभे तो निरजन बीहर, डोंगरी-पहरी…

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मया करे ले होही भाषा के विकास : अनुपम सिंह के जयप्रकाश मानस संग गोठ बात

‘सृजनगाथा’ के संपाद· जयप्रकाश मानस ओडिय़ा होय के बाद भी छत्‍तीसगढ़ी बर समर्पित हवय। साहित्य के सबो विद्या के जानकार होय के संग सामाजिक सरोकार के लेखनी बर अपन पहिचान रखथे। उनखर लिखे ‘दोपहर में गांव’ पुरस्‍कृत रचना हवयं। श्री मानस ह तभी होती है सुबह, होना ही चाहिए आंगन, छत्‍तीसगढ़ी व्यंग्य कलादास के कलाकारी, छत्‍तीसगढ़ी: दो करोड़ लोगों की भासा सहित दू कोरी ले जादा किताब लिखे अउ संपादन करे हवय। माध्यमिक शिक्षा मंडल म अधिकारी मानसजी तिर अनुपम सिंह के गोठ: अनुपम : मनखे समाज के बीच में छत्‍तीसगढिय़ा बोले म लजाथे। का…

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कहिनी : दोखही

हिम्मत करत रमेसर कहिस, आप मन के मन आतीस तब चंदा के एक पइत अऊ घर बसा देतेन। वाह बेटा वाह तयं मोर अंतस के बात ल कहि डारे। जेला मय संकोचवस कहूं ला नई कहे सकत रहेंव तयं कहि डारे बेटा बुधराम गुरूजी कहिस। मयं तोर बात विचार ले सहमत हंव फेर मोर एकठन शर्त हे। बर- बिहाव म जतका खरचा होही तेला मंय खुद करिहंव। चंदा ल बहुरिया बना के लाय रहेंव बेटी बना के कनियादान मंय खुद करिहंव।’ रमेसर के दाई बिराजो ला, बेटी अवतारे के बड़…

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धरती के बेटा

तन बर अन्न देवइया, बेटा धरती के किसान। तोरे करम ले होथे, अपने देश के उत्थान॥ सरदी, गरमी अऊ बरसा, नई चिनहस दिन -राती। आठों पहर चिभिक काम म, हाथ गड़े दूनों माटी॥ मुंड म पागा, हाथ तुतारी, नांगर खांध पहिचान। तोरे करम ले होथे, अपने देश के उत्थान॥ कतको आगू सुरूज उवे के, पहुंच खेत मन म जाथस। सुरूज बुड़े के कतको पाछू, घर, कुरिया म आथस॥ तोरे मेहनत के हीरा-मोती, चमके खेत, खलिहान। तोरे करम ले होथे, अपने देश के उत्थान॥ जांगर टोर कमइयां, तोर बर नइये कभू…

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छत्तीसगढ़ी बोले बर लाज काबर

आज हिन्दी जनइया मन हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी जनइया मन ल छत्तीसगढ़ी बोले म तकलीफ होथे। ये मन अंगरेजी अउ हिन्दी भासा के परयोग करथे। अपन भासा ल पढ़े-लिखे म सरम आथे, काबर? अपन भासा के प्रति हीनता इंखर बीमारी आय। जेन ह सिर्फ परचार ले अउ ननपन ले अपन भासा के प्रति परेम ले दूर हो सकथे। मोला सुरता हे, मोर गांव तीर खम्हरिया गांव म रमायन प्रतियोगिता होत रीहिस हे। ये मा बड़का पहुना बना के अभी दू महीना भगवान घर गे होय लाल लंगोट पहनइया बालक भगवान ला…

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घाम बइसाख-जेठ के : कबिता

बइरी हमला संसों हे, बीता भर पेट के।खोई-खोई भुंज डरिस, घाम बइसाख जेठ के।तिपत हे भुइंया, तिपत हे छानी।तात-तात उसनत हे तरिया के पानी।मजा हे भइया इहां सेठ के।खोई-खोई….रचना हे जांगर, खेत म ढेलवानी।भुंजावत हे बइरी, कोंवर जिनगानी।बेसुध हे जिनगी, सुरता न चेत के।खोई-खोई….चलत हे झांझ, जरत हे भोंभरा।मन पंछी खोजत हे खोंदरा।पोट-पोट लागे घाम देख के।खोई-खोई….नइए दऊलत दाऊ, गरीब काबर बनाएस।नइए अन्न-धन दाऊ, पेट काबर बनाएस।कइसे लुबो धान हसिया बिन बेंठ के।खोई-खोई….बनी-भूती म जिनगी सिरागेबइरी भूख म मति सिरागे।बनिहार होगेन घर न खेत के।खोई-खोई…. डॉ. राघवेन्द्र कुमार ‘राज’जेवरा सिरसा

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यहू नारी ये

यहू नारी ये फेर येकर समाज म कोनो सुनाई होवे। कोन जांच कराही की येकर कोख कइसे हरियागे। नारी सही दिखत ये पगली संग कोन अपन तन के गरमी जुड़ाइस। हादसा होही या बरपेली। का समझौता घलो हो सकथे? मन म सवाल ऊपर सवाल उठत हे। फेर जवाब के अभाव म ओ सवाल के कोनो अस्तित्व नई दिखथे। हमर समाज आज नारी परानी ल देवी अउ जननी कइके उंखर मान बढ़ाथे। फेर का हमर मन मानथे ओला देवी? ये आत्मचिंतन के विसय आय। देव दानव ले भरे समाज म नारी…

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फुगड़ी गीत

चल टूरी चल टूरी खेलबो फुगड़ी, फुगड़ी रे फाय-फाय फुगड़ी। सुरूज लुका गे, चंदा टंगा गे, फुगड़ी के खेलत ले आगी बुतागे, होगे भात गिल्ला लांघन माई पिल्ला ददा गुसियाही, दाई दिही गारी। चल-चल टुरा अब तोर पारी। चल-चल टूरा खेलबो फुगड़ी, फुगड़ी रे फाय-फाय फुगड़ी। सावन गढ़ा गे नागर फंदागे फुगड़ी के खेलई मां बेरा पहागे। मेंचका के गाना, नइए एको दाना। कोदो न कुटकी आरी न बारी, चल-चल संगी अब सबके पारी। चल-चल संगी खेलबो फुगड़ी फुगड़ी रे फाय-फाय फुगड़ी। फरियर पानी मां खोखमा के फूल, आमा तरी…

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छत्तीसगढ़ी संस्कृति के खुशबू ल बगराने वाला एक कलाकार- मकसूदन

सुआ नृत्य अउ गीत नारी मन के पीरा ल कम करथे। सुर अउ ताल म बंधे सुआ के चारो डाहर गोल घूमत नारी ऐखर पहिचान आय। ये दल म 180 झन नारी नृत्य करहीं त कइसे लगही ये सोचे के बात आय। ये सोच ल पूरा करे हावय मकसूदन राम साहू। राजीव लोचन महोत्सव म ये अनोखा आयोजन होथे। राजधानी रइपुर तीर के एक ठिन गांव चिपरीडीह म जनमे एक झन पातर दूबर ऊंच अकन मनखे जेन ला मकसूदन राम साहू के नांव ले लोगन जानथे, पहिचानथें। उनला ‘बरी वाला’…

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बहुरिया – कहिनी

बहु ह ससुरार म घलो मइके कस मया अउ दुलार म राहय। ससुर काहय बेटी हमरो बेटी ह घलो ककरो बेटी बनही, हमू मन सोचबो न बेटी ल ससुरार म घलो बेटी कस दुलार मिलय। हमन जइसन करबो तइसन तो हमरो बेटी मन ल मिलही मान सम्मान पाना कुछु अपनो हाथ का रइथे बेटी। देखत हावच बेटी मनोज ह अपन माइलोग के बात ल मान के अलग घर म चलदीच, बिचारी कौशिला ह नानपन ले अपन लइका अस सब ल पालिस पोसिस, पढ़इस-लिखइस अउ देख ले दुए महीना म ओकर…

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