(कविता-जनहित मा जारी) जौन गढ्ढा मा जनम धरिसे , ओला सपाट बनालव मक्खी-मच्छर ला मारव अउ तुम उनला दूर हकालव. मच्छर के चाबे से होथे डेंगू अउ फायलेरिया ऊंकर पेट मा घलो पनपथे चिकनगुनिया मलेरिया. इंकर बचाव करना हे तुम्हला मच्छरदानी लगालव मक्खी-मच्छर ला मारव………. मक्खी के स्पर्श से होथे पेचिस,दस्त अउ पीलिया ऊंकर पांव मा रहिथे बीमारी हैजा अउ मोती-झिरिया इंकर से बच के रहना हे तुम्हला साफ-सफाई अपनालव मक्खी-मच्छर ला मारव………. खाये-पीये के चीज मा अपन इनला झन बैठारव खोमचा,ठेला ,खुली जगह के चीज ला झन तुम खावव…
Read MoreMonth: May 2011
मक्खी-मच्छर मारो अभियान – कबिता
(कविता-जनहित मा जारी) जौन गढ्ढा मा जनम धरिसे ,ओला सपाट बनालवमक्खी-मच्छर ला मारवअउ तुम उनला दूर हकालव. मच्छर के चाबे से होथेडेंगू अउ फायलेरियाऊंकर पेट मा घलो पनपथे चिकनगुनिया मलेरिया.इंकर बचाव करना हे तुम्हला मच्छरदानी लगालवमक्खी-मच्छर ला मारव………. मक्खी के स्पर्श से होथे पेचिस,दस्त अउ पीलिया ऊंकर पांव मा रहिथे बीमारीहैजा अउ मोती-झिरियाइंकर से बच के रहना हे तुम्हलासाफ-सफाई अपनालवमक्खी-मच्छर ला मारव………. खाये-पीये के चीज मा अपन इनला झन बैठारवखोमचा,ठेला ,खुली जगह केचीज ला झन तुम खाववइंकर बीमारी होगे जिनलाओखर इलाज कराववमक्खी-मच्छर ला मारव………. मनखे के दुस्मन हे इमनबहुत बीमारी…
Read Moreमोला कभू पति झन मिलय – कहिनी
धान कोचिया राधे हर हुत करात अइस- सदानंद ठेलहा हस का रे? चल खातुगोदाम मेर मेटाडोर खड़े हे। विसउहा तेली के धान ल भरना हे। कइसे सुस्त दिखत हस रे। अल्लर- अल्लर। चल जल्दी। सुरगी म मार लेबे एकाध पउवा। पउवा के गोठ सुन के सदानंद के मुंहुं पंछागे। एक्के भाखा म टुंग ले उठगे।’ एसो के बइसाख म मंगली ह अठरा बछर के होगे। बिसराम अउ सोनारिन ल मंगली कस सुघ्घर बेटी पाए ले आन असन जादा सगा-सोदर देखे बर नइ लागिस। बड़ सुंदर रूपस राहै मंगली हर। मंगली…
Read Moreभोंभरा : कबिता
भुइंया ह बनगे तात-तवई बंडोरा म तोपागे गांव-गंवई नइये रूख-राई के छईहां रूई कस भभकत हे भुईंहां रद्दा रेंगइया जाबे कती करा थिराले रे संगी, जरत हे भोंभरा गला सुखागे, लगे हे पियास कोनो तिर पानी मिले के हे आस तरर-तरर चूहत हे पछीना जिव तरसत हे, छईहां के बिना का करबे जाबे तैं कती करा थिराले रे संगी, जरत हे भोंभरा कछार म नदिया के कलिंदर तै खाले पीपर तरी बईठके थोरिक सुरता ले नदिया के पानी ह अमरित कस लागय बिन पानी मोर भाई, परान नई बांचय सुन्ना…
Read Moreधरनहा – पं. जगमोहन प्रसाद मिश्र के गीत
तोर भोली सुरत मोला निक लागे रे, मोला निक लागे । हरियर हरियर लुगरा पहिरे चूरी कारी कारी धीरे धीरे आवत रहे बोझा धरे भारी तोला देखेंव तभे ले मोर सुध भुलागे । झिमिर झिमिर पानी बरसै चलथे पुरवाई तोरेच सुरता आथे कईसे करौं भाई तोर बिना मोला कईसे सुन्ना सुन्ना लागे । ताना देबे गारी देबे तोरेच कोती आहौं सबे कुछु सइहौं टूरी मारो घला खाहौं हांथ जोडे खडे रइहंव तोरेच आगे । ददा छोडेव दाई छोडेंव छोडेंव अपन भाई तोरेच खातिर घूमत रहिथंव नदिया अमराई परे रहिथंव कदम…
Read Moreमोबाइल के बड़े-बड़े गुन
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया के इंजीनियर प्रोफेसर के दिमाग म बात अइस। सोचीस, सहर-गांव सबो जगा मोबाइल के अड़बड़ चलन होगे हे, गांव मन म रोग के जांच कर इलाज करइया (क्लिनिक लैब्स) साधन घलो नइये। अइसे म, एक ठी पोर्टेबल माइक्रोस्कोप बनाके वोला मोबाइल ले जोड़ दे जाय। इंजीनियर प्रोफेसर मन अइसे सोचे बात ल कर घलो डरीन अउ सेल स्कोप बना घलो डरे हे। ये उपकरण (मसीन) (मोबाइल) हा मलेरिया अउ टीबी (क्षय रोग) फैलइया कीरा (जीवाणु) के कोटोला उतारही अउ नेटवर्क ले दुनिया भर म कहूं भेज सकत…
Read Moreराजा – नान्हे कहिनी
देवकी अपन बैसाखी ल देख के सोचे का होगे ए टूरा मन ल घेरी-बेरी आ-आ के बिहाव के विचार रखंय। आज सब्बो झन मन मुंहु फेर के भागत हाबे। ओतकी बेर अरविंद अइस, जेन ल देख के देवकी ह थर्रागे, काबर कि करिया कुकुर संग कोन बिहाव करही कहिके वोखर खूब हंसी उड़ाय रीहिस। अरविंद कीहिस- मेहा बैसाखी के सहारा ले चलत देखे बर आय हंव। अऊ चलत देख के बड़ खुस हांवव, अब कोनों फिकर नई हे। आराम से चलत फिरत अपन नौकरी कर सकत हव, कोनों सहारा के…
Read Moreघाम घरी आगे – कबिता
घाम घरी आगे रूख-राई अइलागे। तरिया, नदिया सुखागे अउ कुंआ बोरिंग थर्रागे॥का बतावंव संगी,घाम के कहर।गांव-गांव, शहर-शहरहोवत हे हाहाकार॥भूख-पियास म मनखे के मुंहु चोपियागे।घाम घरी आगे, रूख-राई अइलागे।धू-धू जरत हवय,धरती दाई के कोरा।आगी अंगरा बरोबर घाम बरसावत हवय बेरा॥कोन जनि काबर इंद्र देवता रिसागे।घाम घरी आगे रूख-राई अइलागे॥सब जीव-जन्तु,हवय बड़ परसान रे।अपन परान ल हम,कइसे? बचान रे॥पानी-पानी सब गोहराथें, बइसन बिपत आगे?घाम घरी आगे रूख-राई अइलागे।तरिया, नदिया सुखागे अउ कुंआ बोरिंग थर्रागे। शेरसिंह गोडियामुकाम- कोलियारी, पो.-गैंदाटोलातह. छुरिया, जिला-राजनांदगांव
Read Moreचटनी आमा के – कबिता
नंगत के बइहाये मऊर, ए दे पर बर लटलट ले फरगे।देस के भुइंया ला अमरे बर, आमा के डारा निहरगे॥ मंदरस किरवा कस लइकन, झूमगे, देख आमा के कचरी।जमदूत कस मुछर्रा रखवार, हावय ननमुन के बयरी॥ कीरा परय ये आमा ल, दुब्बर ल दू असाढ़ सही भाव।कब खाबोन एला ते, वोदे कऊंवा करत हे कांव-कांव॥ छक्कत ले खाये रेहेन, वहा पईंत वो आमा चौंसा।बिहाव के झरती म, सुरता हावय, वो घर आवय मौसा॥ गंज गुरतुर टेटकू घर के आमा, हावय नानुक गोही।अड़बड़ अम्मट ठाकुर घर के, जिहां धराय हे बटलोही॥…
Read Moreमन लागा मेरो यार फकीरी में – अनुपम सिंह के गोठ
कबीर के संवेदना ल फकीरी अउ सुफियाना सइली के अपन गीत मं प्रस्तुत करइया भारती बंधु मन कोनो परिचय के मोहताज नई हवय। भारती बंधु कला के क्षेत्र म छत्तीसगढ़ के पहिचान के रूप म जाने जाथे। डा. नामवर सिंह एक पइत भारती बंधु ल संगीत के नवा खोज कहे रहिन। भारती बंधु दल के स्वामी जीडीसी भारती के मानना हे के कबीर ल जिए बिना कबीर ल नई गाए जा सकय। स्वामीजी तिर अनुपम सिंह के गोठ: आपके जन्म कहां होइस, पढ़ाई-लिखाई कहां होय हवय? मोर दादाजी दच्छिन भारत…
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