श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – ‘फुटहा दरपन’ अउ ‘मनखे मर गे’

फुटहा दरपन हरियर छइहाँ हर उदुप ले हरन हो गे तपत, जरत-भूँजात पाँव के मरन हो गे। घपटे रहि जाथे दिन-दिन भर अँधियारी अँजोर के जब ले डामरीकरन हो गे। कुकुर मन भूकत हवें खुसी के मारे मनखे मनखे के अक्कट दुसमन हो गे। जउन गिरिस जतके, ओतके उठिस ओ हर अपत, कुलच्छन के पाँव तरी धन हो गे। करिन करइया मन अइसन पथराव करिन मन के दरपन हर फुटहा दरपन हो गे। का करे साँप धरे मेचकी-अस जिनगी हर निचट भिंभोरा-कस मनखे के तन हो गे। मनखे मर गे…

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श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – रतिहा

पहाड़-कस गरू हवय अँधियारी रतिहा टोनही बन गे हे एक कुआँरी रतिहा। बने रद्दा ह बने नइ लागय मनखे ला कोनो ला नइ दय कोनो चिन्हारी रतिहा। भिम-अँधियार के गुन गावत हे गुनवंतिन अँजोर के करथय बहुंते चारी रतिहा। अँगठी फोरथे दुखाही ह चच्चर ले सरापथे दिन ला, देथय गारी रतिहा। अब्बड़ रोवत हें खोर-खोर कुकुर मन निचट जनावत हे असगुन भारी रतिहा। नइ मिलय नींद के कहूँ आरो बसती मा अइसन धमकाथे नयन-दुआरी रतिहा। कहूँ सिरोतन के कदर नइये सँगवारी अइसन फरकाथे गोठ लबारी रतिहा। कतको करवाथे अलिन-गलिन बटमारी…

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श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – ‘पता नइये’ अउ ‘अभागिन भुइयाँ ‘

पता नइये कखरो बिजहा ईमान के पता नइये कखरो सोनहा बिहान के पता नइये। घर-घर घपटे हे अँधियारी भैया गा सुरुज हवे, किरन-बान के पता नइये। पोथी पढ़इया-सुनइया पढ़थयँ-सुनथयँ जिनगी जिये बर गियान के पता नइये। करिस मसागत अउ खेती ला उजराइस किसान के घर धन-धान के पता नइये। अभागिन भुइयाँ तैं हर झन खिसिया, मोर अभागिन भुइयाँ निचट लहुटही दिन तोर अभागिन भुइयाँ।मुँह जर जाही अँधियारी परलोकहिन के मन ले माँग ले अँजोर अभागिन भुइयाँ। पहाड़-कस रतिहा बैरी गरुआगे हे बन जा तहूँ अब कठोर अभागिन भुइयाँ। कखरो मन…

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श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – धन-पसु

पेट सिकन्दर हो गे हे मौसम अजगर हो गे हे। निच्चट सुक्खा पर गे घर आँखी पनियर हो गे हे। हँसी-खुसी के रद्दा बर बटमारी घर हो गे हे। मया-दया के अचरा के जिनगी दूबर हो गे हे। दुसमन तो दुसमन होथे मितान के डर हो गे हे। पसु-धन के चारा चर के धन-पसु हरियर हो गे हे। बाढ़िस खेती भाँठा के आसा बंजर हो गे हे। लाला जगदलपुरी

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श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – का कहिबे?

मन रोवत हे मुँह गावत हे का कहिबे गदहा घलो कका लागत हे का कहिबे? अब्बड़ अगियाए लागिस छइहाँ बैरी लहँकत घाम ह सितरावत हे का कहिबे? खोर-खोर म कुकुर भूकिस रे भइया घर म बघवा नरियावत हे का कहिबे? छोंरिस बैरी मया-दया के रद्दा ला सेवा ला पीवत-खावत हे का कहिबे? चर डारे हे बखरी भर ईमान ला कतका खातिस पगुरावत हे का कहिबे? सावन-भादों बारों मास गरिबहा के लकड़ी-कस मन गुँगुवावत हे का कहिबे? लाला जगदलपुरी

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डॉ. संजय दानी के छत्‍तीसगढ़ी गजल

होगे फ़ागुन हा सर पे सवार ‘जोहार ले जोहार ले जोहार। नरवा खलखल हांसत है,नवा नवा फ़ूटत है धार्।(जोहार ले – – – – बरदी के सुत गे गोसैया,सन्सो में हवय खेत खार। जोहार ले – – – – दिल हा चना के जवान है,औ राहेर लगत हे कचनार। जोहार ले- – – – धान के कोनो पुछैया नाही,औ खड़े है चना के खरीदार। जोहार ले – – – अमली के सा्ड़ी हा सरकत है,औ लहकत हे आमा के डार। जोहार ले कोड़ही मन हा फ़ाग सुनावत।गोल्लर मन फ़ांदव दीवार…

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छत्‍तीसगढ़ी गज़ल – देखतेच हौ अउ आदत बना लन

देखतेच हौ बाती तेल सिराय अमर देखतेच हौबुझागे हवय दियना हमर देखतेच हौछोड़ किसानी अफसर बनिहौं कहिके टूरा लटक गीस अधर देखतेच हौदूध गईया के मूंह लेगिस पहटिया मरिचगे बछरू दूध बर देखतेच हौचांउर दार के दाना नइहे घर मा लांघन भूख हे हमर बर देखतेच हौघर के भीतर चोर अमाय कर कहिबे सरमा ला नई खोज खबर देखतेच हौ। रामेश्‍वर शर्मारायपुर आदत बना लन हर पीरा सहे के आदत बना लन हर गोठ सुने के आदत बना लन सब संग छोड़के चल दिही एक दिन अकेल्‍ला रहे के आदत…

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उर्दू शेर के अनुवाद

x x x चर्चा फलानिन के अउ हमर बखान ओ मेरले बईरी लहुट गे,काली जेन संगवारी रिहिस..ओकर गारी ला हम हंसी ठट्ठा जानेनका बताबे जेन जुन्ना चिन्हारी रिहिस..मया के लहसे दुःख पीरा कैसे बतातेन तेमाकुचराए अंगरी माँ लहू केतुरतुर धारीरिहिसहम कहाँ के चन्ठ , का जान्तेंन राग पागजाउन रिहिस ओ बेरा उमेश तिवारी रिहिस… x x x मै जियत हव चेता दे सब लामोर बैरी मन ला बता दे सब लाअगास दुरिहा हें भुइया तान्ठबनत दाम तक सुता दे सब लारहापट पाछू रोवई नई ए जरुरीआंखी,छाती,अंतस गुन्ग्वा ले सब लापिंजरा…

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छत्‍तीसगढ़ी गज़ल – हमरे गाल अउ हमरे चटकन

हमरे गाल अउ हमरे चटकन बांध झन बिन गुड़ के लड़वा सिरिफ बानी म घर हजारों के उजर गय तोर सियानी म। डहर भर बारूद हे बगरे सुन्‍ना घर कुरिया जिनगी जीयत हावय जइसे काला-पानी म। जंग ह जंगल ले सरकत सहर तीर आ गय लाश के गिनती होवत हे राजधानी म। रूई जइसे बिरथा गुड़ ल का धुनत बइठे बैरह होरा भूंजे लागिन तोर छानी म। हमर किसमत बस लिखे का पसर भर चांउरदेबे कब कुछ अउ सुदामा कस मितानी म। सांप अउ छुछुवा असन गति हमर होवत हे…

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छत्‍तीसगढ़ी गज़ल – हम परदेशी तान ददा

मुरहा पोटरा आन ददा, लात ल तंय झन तान ददा। पानी टेक्‍टर भुइया तोर, हमला नौकर जान ददा। छेरी पठरू गाय गरू, तोरेच आय दइहान ददा। पांव परे म हम अव्‍वलदेन करेजा चान ददा। चमकाहू तलवार तभो, करबो हम सनमान ददा। तुंहर असन संग का लड़बो, हमरे हे नकसान ददा। मालिक आंही बाहिर ले, इंहा इही फरमान ददा। नइये जिंकर कहूँ थिरवांह, छत्‍तीसगढि़या जान ददा। आव तुहीं मन घर मालिक हम परदेशी तान ददा। डॉ.परदेशीराम वर्मा एलआईजी 168, आमदी नगर, भिलाई.

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