टुरी देखइया सगा

हमर गांव-देहात म लुवई-टोरई, मिंजई-कुटई के निपटे ले लोगन के खोड़रा कस मुंह ले मंगनी-बरनी, बर-बिहाव के गोठ ह चिरई चिरगुन कस फुरूर-फुरूर उड़ावत रइथे। कालिच मंगलू हल्बा के नतनीन ल देखे बर डेंगरापार के सगा आय रिहिस। चार झन रिहिन। दू झन सियनहा अउ दू झन नवछरहा टुरा। ठेला करा मोला पूछिस- ‘कस भइया, इहां हल्बा नोनी हावय बर-बिहाव करे के लइक।’ कहेंव- हव, कइसन ढंग के लड़की चाही आप मन ला। एक झन मोट्ठा सगा ह अंटियावत दांत निपोरीस- ‘कुंआरी।’ ओखर हांथी खिसा दांत ल देख के एक…

Read More

गीत : दीन दयाल साहू

मै हा नहकाहूं डोगा पार,आवत हे प्रभु मोर द्वार। तैहा जग के ,आये पालन हार ये मोरे स्वामी। राम लक्ष्मण दूनो भाई ,संग मा हावे सीता माई। तैहा जग के ,आये पालनहार। नइ डूबो कभू। मझदार,सेवा में आयेव मल्हार । तैहा जग के ,आये पालानहार मोरे स्वामी । तोर चरण मैहा परवार हूं ,सब सागर मे हा तर जाहूं। तेंहा जग के ,आये पालनहार । नेंना मोर तरसत हे आज ,कब आबे प्रभु तै मोर घाट। तेंहा जग के,आये पालनहार । नैना मोर तरसत हे आज ,कब आबे प्रभु तै…

Read More

तोर मेहनत के लागा ल…..

तोर मेहनत के लागा ल….. तोर मेहनत के लागा ल, तोर करजा के तागा ल उतार लेतेंव रे, मैं ह अपन दुवार म……… देखत हावौं खेत-खार म जाथस तैं ह मंझनी-मंझनिया देंह ठठाथस तैं ह जाड़ न घाम चिन्हस, बरखा न बहार देखस ठउका उही बेर तोला पोटार लेतेंव रे, मैं ह अपन……. कहिथें बंजर-भांठा हरियाथे उहें तोर मेहनत के पछीना बोहाथे जिहें परबत सिंगार करय, नंदिया दुलार करय ठउका इही बानी महूं दुलार लेतेंव रे, तोला अपन…. तैं तो दानी म बनगे हस औघड़ दानी भले नइए तोर बर…

Read More

एक डंडिय़ा : माटी के पीरा…

ए माटी के पीरा ल कतेक बतांव, कोनो संगी-संगवारी ल खबर नइए। ए तो लछमी कस गहना म लदे हे तभो, एकर बेटा बर छइहाँ खदर नइए।। कोनो आथे कहूँ ले लाँघन मगर, इहाँ खाथे ससन भर फेर सबर नइए।… अइसे होना तो चाही विकास गजब, फेर खेती ल उजारे के डगर नइए।… धन-जोगानी चारों खुँट बगरे हे तभो, एकर कोरा म खेलइया के कदर नइए।… दुख-पीरा के चरचा तो होथे गजब, फेर सुवारथ के आगू म वो जबर नइए।… अइसन मनखे ल मुखिया चुनथन काबर, जेला गरब-गुमान के बतर…

Read More

लोक रंजनी लोक नाट्य : नाचा

कोनो भी प्रदेश के लोक नाट्य म हमर बीच के बोली अउ अपन बीच के कलाकार संग सिंगार के सहजता अउ सामाजिक संदेस होथे, जेखर भीतरी गीत-संगीत, नाच अउ अभिनय होथे। लोक नाट्य बर कोनो पोथी पतरा, किताब सिताब के नित-नियम के बंधेज नई रहय काबर कि लोकनाट्य ह हमर पुरखा मन मेर ले पीढ़ी उप्‍पर पीढ़ी होवत आघू बढ़थे। लोक नाट्य ह हमर जम्‍मो समाज के उमंग उछाह के संघरा रूप होथे। लोकनाट्य अपन-अपन जघा म अलग-अलग होथे अलग-अलग प्रदेस म अलग अलग नाम के लोकनाट्य प्रचलित हावय। बिहार…

Read More

अस्मिता के आत्मा आय संस्कृति

आजकाल ‘अस्मिता’ शब्द के चलन ह भारी बाढग़े हवय। हर कहूँ मेर एकर उच्चारन होवत रहिथे, तभो ले कतकों मनखे अभी घलोक एकर अरथ ल समझ नइ पाए हे, एकरे सेती उन अस्मिता के अन्ते-तन्ते अरथ निकालत रहिथें, लोगन ल बतावत रहिथें। अस्मिता असल म संस्कृत भाषा के शब्द आय, जेहा ‘अस्मि’ ले बने हे। अस्मि के अर्थ होथे ‘हूँ’। अउ जब अस्मि म ‘ता’ जुड़ जाथे त हो जाथे ‘अस्मिता’ अउ ये दूनों जुड़े शब्द के अरथ होथे- ‘मैं कोन आँव?’, मैं कौन हूँ?, मेरी पहचान क्या है?, मोर…

Read More

कवयित्री के गुण / कवयित्री धोंधो बाई

माईलोगिन मन के मुँह ह अबड़ खजुवाथे कहिथें। एकरे सेती जब देखबे तब वोमन बिन सोचे-समझे चटर-पटर करत रहिथें। हमरो पारा म एक झन अइसने चटरही हे, फेर ये चटरही ह आजकल ‘कवयित्री’ होगे हे। बने मोठ-डाँठ हे तेकर सेती लोगन वोला ‘कवयित्री धोंधो बाई’ कहिथें। वइसे नांव तो वोकर ‘मीता’ हे, फेर ‘गीता’ ह जइसे गुरतुर नइ होवय न, वइसने ‘मीता’ ह घलो मीठ नइए। एकदम करू तेमा लीम चढ़े वाला। वइसे तो माईलोगिन होना ह अपन आप म करू-कस्सा ल मंदरस चुपर के परोसने वाली होना होथे, तेमा…

Read More

सत के अमरित धार बोहवईया : देवदास बंजारे

छत्‍तीसगढ़ के पारंपरिक पंथी के बारे म जब-जब बात होही, देवदास बंजारे के नाव ला कभू भुलाए नइ जा सकय। गुरू बाबा घसीदास के अमर संदेसा ला जन-जन मेर पहुचईया अउ पूरा दुनिया म फैइलईया देवदास बंजारे हमर देश के बड़का लोक कलाकार रहिस। हमर प्रदेश के पारंपरिक लोकनृत्‍य अउ गीत पंथी ल देवदास जी ह न केवल सहरी लोक मंच मन म आघू लाइन भलुक ओला सात समुदर पार देस-बिदेस तक म बगरा दीन। पंथी के महमहई बगरईया देवदास जी के जनम एक जनवरी 1947 म धमतरी के जिला…

Read More

चोला माटी के हे राम

चोला माटी के हे राम एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे चोला माटी के हे हो हाय चोला माटी के हे राम एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे द्रोणा जइसे गुरू चले गे करन जइसे दानी संगी, करन जइसे दानी बाली जइसे बीर चले गे, रावन कस अभिमानी चोला माटी के हे राम एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे कोनो रिहिस ना कोनो रहय भई आही सब के पारी एक दिन आही सब के पारी काल कोनो ल छोंड़े नहीं राजा रंक भिखारी चोला…

Read More

महतारी के ममता

श्रध्दा के राजिम भारत, समानता के लोचन आय। राम सेतु कस प्रेम सेतु ला, कोनो हा झन टोरन पाय॥ भक्ति के भारत मा मइया, इरसा नजर लगावत हे। स्वारथ के टंगिया मा संगी, कुटुम्ब काट टलियावत हे। रावन, कंस फेर कहां ले आगे, लिल्ला बर काबर सम्हरत हव। राम, कृष्ण के भुइंया मा, संगी, कबीर ला काबर बिसरत हव। पुत्र के सुत्र बिगड़त हे, मंथरा के अत्याचारी मा। सुम्मत के कुंदरा बरत हे, क्षेत्रवाद के चिंगारी मा। सोन चिरइया हा ननपन ले, कौमी एकता के वेदांत पढ़ाए हे। महतारी के…

Read More