भिनसार (काव्‍य संग्रह) – मुकुंद कौशल

छत्‍तीसगढ़ी काव्‍य संग्रह : भिनसार, रचनाकार : मुकुंद कौशल, प्रकाशक : दिशान्‍त प्रकाशन, दुर्ग. प्रथम संस्‍करण : 1989, मूल्‍य : सात रूपये, मुद्रक : रेजीमेन्‍टल प्रेस, दुर्ग. आवरण : मोहन गोस्‍वामी.

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छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के वेबसाईट

भिलाई म छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के कार्यक्रम म मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह ह छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के वेबसाईट के उदघाटन करिन. येमा छत्तीसगढ़ी भाषा के सम्माननीय साहित्यकार मन के नाम संग, राजभाषा विधेयक, फोटू, समाचार पत्र, माईकोठी योजना, बिजहा कार्यक्रम, छत्तीसगढ़ी पकवान के सुघ्घर जानकारी हावय. येमा छत्तीसगढ़ी शब्दकोस के पाना घलो हावय फेर अभी येमा जानकारी नइ ये, येखर अगोरा हावय. संचार साधन के होवत बिकास ला देखत हमला ये वेबसाईट के बड़ उछाह ले सुवागत करना चाही, राजभाषा आयोग ला ये सुघ्घर काम बर गुरतुर गोठ परिवार डहर ले…

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छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के दू दिनी प्रांतीय सम्मेलन

२३ अउ २४ फरवरी २०१३ स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाविद्यालय, आमदीनगर, हुडको भिलाई. कार्यक्रम विवरण २३.०२.२०१३ बिहिनया ९ बजे ले ११ बजे तक – पंजीयन बिहिनया ११ बजे ले १ बजे तक – जेवन मझनिया १ बजे ले २ बजे तक – महिला साहित्यकार गोष्ठी मझनिया २ बजे ले ५ बजे तक – सुनबो सुनाबो अध्यक्षा – डाॅ. निरूपमा शर्मा, संचालन – श्रीमती शशि दुबे, प्रतिभागी – श्रीमती शकुन्तला शर्मा, डाॅ.संध्या रानी शुक्ल, प्रकृति कश्यप, डाॅ.दुर्गा पाठक, सुधा वर्मा, डाॅ.उर्मिला शुक्ल, श्रीमती आशा शर्मा आदि लोकगीत – संचालन – श्रीमती सुमन…

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छत्तीसगढ़ी भाषा म बाल-साहित्य लेखन के संभावना अउ संदर्भ

आज जोन बाल-साहित्य लिखे जात हे ओला स्वस्थ चिंतन, रचनात्मक दृष्टिकोण अउर कल्पना के बिकास के तीन श्रेणियों म बांटे जा सकत हे। चाहे शिशु साहित्य हो, बाल साहित्य हो या किशोर साहत्य, ये तीनों म आयु के अनुसार मनोविज्ञान के होना जरूरी हे। बाल साहित्य सैध्दांतिक आधारभूमि ले हट के बाल मनोविज्ञान म आधारित हो जाए ले बच्चामन के बिकास बदलत परिवेस म सामंजस्य बइठाये म सहायक हो सकथे, जोन छत्तीसगढ़ी साहित्य अभी हमर आगू म हे ओकर लेखन-विचार प्रक्रिया म विषय वस्तु के रूप म सामाजिक विसंगति, जनचेतना,…

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बसंत गीत : सुशील भोले

बसंती रंग झूम-झूम जाथे… बगिया म आगे हे बहार, बसंती रंग झूम-झूम जाथे पुरवइया छेड़ देहे फाग, मन के मिलौना ल बलाथे मउहा ममहाथे अउ तीर म बलाथे मंद सहीं नशा म मन ल मताथे संग म सजन के सोर करवाथे….बसंती रंग…. परसा दहक गे हे नंदिया कछार झुंझकुर ले झांकत हे मुड़ी उघार लाली-लाली आगी कस जनाथे… बसंती रंग…. अमरइया अइसन कभू नइ सुहाय उल्हवा पाना संग मउर ममहाय कोइली तब मया गीत गाथे… बसंती रंग… लाली-लाली लुगरा के छींट घलो लाल राजा बसंत जइसे छींच दे हे गुलाल…

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हमर भाखा – छत्तीसगढ़ी : श्रीमती हेमलता शर्मा

हमर भाखा छत्तीसगढ़ी के विकास बर अऊ ओला राजभाखा बनाए बर हम सब छत्तीसगढ़िया मन ला अऊ कतका रद्दा देखे बर परही, तेन हर एक ठन सोचे के बिसय आय। छत्तीसगढ़ ला अलग राज बनाए बर भी हमन ला अब्बड़ मेहनत करे बर परे रहीस तइसने अब छत्तीसगढ़ी ला राजभाषा बनाए बर सबो झन ला एकजुट होए बर परही तभे कुछू रसता निकलही तइसे लागथे। छत्तीसगढ़ के सब ले बड़े दुरभाग ऐ खुद छत्तीसगढि़या मन ऐला बोले मा लजाथे, अउ पढ़े मा घलो अलकरहा लागथे अइसे मन बना ले हें,…

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पढ़ई-लिखई : सरला शर्मा

मुगल बादशाह हुमांयू ल हरा के शेरशाह सूरी जब दिल्ली के गद्दी म बइठिस त उपकारी भिश्ती ल एक दिन के राज मिलिस चतुरा भिश्ती राज भर म चमड़ा के सिक्का चलवा दिस एला कहिथें नवा प्रयोग। आजकल हमर देस म पढ़ई-लिखई के ऊपर अइसनेहे नवा-नवा प्रयोग होवत रहिथे। आजादी मिले साठ बरिस पूर गे फेर आजो सिक्छा के सरुप हर जनकल्याणकारी नई होये हे। सन् 1993 म 14 साल तक के लइका मन बर मुफ्त अउ अनिवार्य सिक्छा ल मौलिक अधिकार के दर्जा मिल गइस। उत्ता धुर्रा गांव-गांव म…

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काम काजी छत्तीसगढ़ी, स्वरूप, अउ संभावना

शुरूवात ला पहिले देखे जाये तो छत्तिसगढ़ ला अलग राज बनाये खतिर बहुत पसीना बहाइन, जउन मन मेहनत करीन अपन सब काम काज, घर गृहस्थी के व्यवस्था ला छोड़-छोड़ के। आखिर सफल होइन अउ छत्तिसगढ़ राज्य बना के दम लेइन। अब ध्यान गेइस राज भाषा बनना चाही, उहू हमर सियान मन के प्रयास से आखिर बन गे। इहॉं तक कि छत्तिसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तिसगढ़ शासन के गठन भी होगे। ऐ हर तो ओखर दर्पण जैसे स्वरूप बन के तैय्यार होगे। स्वरूप के दर्पन ला खाली देखे में काम नई चलय,…

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छत्तीसगढ़ी के मानकीकरन अउ एकरूपता : मुकुन्द कौशल

बिलासा कला मंच कतीले सन् दू हजार एक म छपे, डॉ पालेश्वरशर्मा के लिखे छत्तीसगढ़ी शब्दकोश के भूमिका म छत्तीसगढ़ी के बैंसठ मानक शब्द मन के मायने अउ ओकरे सँग वर्ण /संज्ञा/वचन/सर्वनाम/विशेषण/क्रिया अउ कृदन्त ले संबंधित ब्याकरन के गजब अकन जानकारी, डॉ. रमेशचंद्र मेहरोत्रा जी ह अगुवा के लिख डारे हवैं। डॉ. चित्तरंजनकर अउ डॉ. सुधीर शर्मा के सँधरा किताब “छत्तीसगढ़ी भाषा, स्वरूप और संभावनाएँ” जउन सन् दू हजार म छप चुके हे, ते मा घलो ये बिसय उपर बनेकन अँजोर डारे गे हवै। हकीकत म मानकीकरन ह, छरियाए बोली…

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