दू डांड़ के बोली ठोली 1. हिरदे म घात मया , आंखी म रीस हे । फागुन के महिना म, जस फूले सीरिस है।। 2. सुघ्घर – सुघ्घर दिखथे , जस मंजूर के पांखी । कपाट के ओधा ले , झांकत हे दू ठन आंखी ।। 3. अंइठे हावस मुंह ल , करके टेंड़गा गला । करंग गेहे अंगरा, भीतर म पलपला ।। 4. बाहिर ले बइरी असन , अन्तस म मितान । अइसन म डर लागथे , कइसे के गोठियान ।। सुम्मत के गोठ सुम्मत के तुम गोठ करौ…
Read MoreMonth: March 2013
जानबा : दादूलाल जोशी ‘फरहद’
नाव – दादूलाल जोशी ‘फरहद’ ददा – स्व.खेदूराम जोशी दाई – स्व.पवनबाई जन्मन – 04/01/1952 पढ़ईलिखई – एम.ए.हिन्दी पीएच.डी. जनम जगा-गाँव फरहद पो0 सोमनी, तह. जिला-राजनांदगाँव (छ.ग.) हुनर – कविता कहानी निबन्ध लिखना। हिन्दी छत्तीसगढ़ी दूनों म। सम्पादन, अभिनय, उद्घोषक। किताब – ‘अब न चुभन देते हैं कांटे बबूल के‘ कविता संघरा ‘आनी बानी’ भारतदेश के चउदा राजभाषा म लिखे कविता मन के छत्तीसगढ़ी अनुवाद। सम्पादन – सत्यध्वज, अपन चिन्हारी, आरम्भ, पतरिका अउ किताब के। करतब – छत्तीसगढ़ी लोक कलामंच ‘‘भुईंया के सिंगार’’ दल्लीराजहरा म बारा बछर ले उद्घोशक अउ…
Read Moreबोरे-बासी के दिन आगे..
दही-मही संग बोरे-बासी के लगिन धरागे रे गोंदली संग सुघ्घर झड़के के दिन आगे रे………. http://mayarumati.blogspot.in/2013/03/blog-post_29.html
Read Moreकोन जनी कब मिलही..?
जुग-जुग ले आंखी म आंसू, अउ हिरदे म घाव। कोन जनी कब मिलही तिरिया, जग म तोला नियाव।। होइस कभू तोर अंचरा दगहा, कभू मिलिस बनवास, तइहा जुग ले देवत परीक्षा, जिवरा होगे हदास। कोनो हारथे खेलत पासा, तोला लगाके दांव।। कोन जनी… कोन ल अपन बताबे इहां तैं, कहिबे कोन बीरान, तोर सनमान ल कोनो रंउदथे, लेथे कोनो परान। बनय नहीं कभू सुख के छइहां म, दुखिया तोर थिरभाव।। कोन जनी.. जिनगी म तोर दुख अउ पीरा, पांव-पांव म कांटा, देथस सुख तैं ज मो ल फेर, दुख ह…
Read Moreकहा नहीं : छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह
कहा नहीं (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह) कुबेर प्रथम संस्करण: 2011 आवृत्ति: 300 सर्वाधिकार: लेखकाधीन मूल्य: 125 रु. प्रकाशक: प्रयास प्रकाशन सी – 62, अज्ञेय नगर, बिलासपुर ( छ.ग. ) दूरभाष – सचल: 09229879898 भूमिका : कथात्मकता से अनुप्राणित कहानियाँ समीक्षा : सौंदर्य भी है और सुगंध भी 01 आज के सतवन्तिन: मोंगरा 02 बाम्हन चिरई 03 बसंती 04 दू रूपिया के चाँउर अउ घीसू-माधव: जगन 05 कहा नहीं 06 फूलो
Read Moreलेखकीय मन के बात
पंचतंत्र अउ हितोपदेश म ज्ञान के भण्डार भरे हे। कथा के जरिया; बिलकुल लोककथा के रूप म; विभिन्न पशु -पक्षी के अटघा (माध्यम ले) तरह-तरह के विशय आधारित ज्ञान ल व्यवहारिक ढंग ले प्रस्तुत करे गे हे; ज्ञान के ज्ञान, शिक्षा के शिक्षा , अउ मनोरंजन के मनोरंजन। एक कथा अइसन हे, – चार भाई रहंय। तीनों बड़े भाई मन गुरू के आश्रम म जा के खूब पढ़िन-लिखिन। ज्ञान-विज्ञान, धर्म-अध्यात्म, संगीत आदि सोलहों कला, इतिहास, ज्योतिष, यंत्र-तंत्र-मंत्र आदि सबके ज्ञान प्राप्त करिन। तीनों भाई मन किताबी ज्ञान म तो प्रवीण…
Read Moreभूमिका : कथात्मकता से अनुप्राणित कहानियाँ
आज या वर्तमान आधुनिकता के अर्थ में अंगीकृत है। आज जो है वह ‘अतीत-कल’ का अगला चरण है और जो ‘भविष्य-कल’ में ‘अतीत-कल’ बन जायेगा, इसलिए आज का अस्तित्व समसामयिक संदर्भों तक सीमित है। परंपरा का अगला चरण आधुनिकता है लेकिन यही रूढ़ हो जाता है तब युग के साथ कदम मिलाकर नहीं चल पाता। जब हम दाहिना चरण बढ़ाते हैं तब वह आधुनिकता या विकास का सूचक है। बायाँ चरण परंपरा का प्रतीक है, लेकिन जब पुनः बायाँ चरण बढ़ाते हैं तब यह आधुनिकता को अंगीकार करती है और…
Read Moreकहा नहीं
चंपा ल आठ बजे काम म जाना हे; वोकर पहिली घर के चौंका-बर्तन करना हे, बहरइ-लिपई करना हे, नहाना-धोना हे अउ येकरो पहिली नवा बाबू के घर जा के चौंका-बरतन करना हे। अँगठा के टीप ले छिनी अँगठी के गांठ मन ल गिन के समय के हिसाब लगाइस; एक घंटा बाबू घर लगही, एक घंटा खुद के घर म लगही, घंटा भर नहाय खाय अउ तैयार होय म लगही; बाप रे! तीन घंटा, तब तो पाँच बजे मुँधेरहच् ले उठे बर पड़ही; बेर तो छै बजे उवत होही? आज पहिली…
Read Moreदू रूपिया के चॉंउर अउ घीसू-माधव: जगन
रेल गाड़ी ह टेसन म छिन भर रूकिस अउ सीटी बजात आगू दंउड़ गिस। छिने भर म टेसन ह थोड़ देर बर बदल जाथे। सइमों-सइमों करे लागथे। सोवत, नींद म बेसुध कोई प्राणी ह जइसे अकचका के, झकनका के जाग जाथे। कोनो चघत हे, कोनो उतरत हे। कोई आवत हे, कोई जावत हे। कोई कलेचुप हे, कोई गोठियावत हे। कोई हाँसत हे, कोई रोवत हे। कोई दंउड़त हे, कोई बइठत हे। चहा बेंचइया, फूटे चना-मुर्रा बेंचइया, केरा-संतरा बेचइया, सबके सब मानों नींद ले जाग जाथें। कुली, आटो वाले अउ रिक्शा वाले…
Read Moreबसंती
आज संझा बेरा पारा भर म सोर उड़ गे – ‘‘गनेसी के टुरी ह मास्टरिन बनगे…………..।’’ परतिंगहा मन किहिन – ‘‘काबर अइसने ठट्ठा करथो जी? ओली म पइसा धरे-धरे किंजरत हें, तिंखर लोग-लइका मन कुछू नइ बनिन; गनेसी के टुरी ह मास्टरिन बनगे? वाह भइ ! सुन लव इंखर मन के गोठ ल।’’ हितु-पिरीतू मन किहिन – ‘‘अब सुख के दिन आ गे ग गनेसी के। अड़बड़ दुख भोगत आवत हे बिचारी ह जनम भर।’’ तिसरइया ह बात ल फांकिस – ‘‘अरे, का सुख भोगही अभागिन ह? बेटी के जात,…
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