बाम्हन चिरई

बिहाव ह कथे कर के देख, घर ह कथे बना के देखा। आदमी ह का देखही, काम ह देखा देथे। घर बनात-बनात मोर तीनों तिलिक (तीनों लोक) दिख गे हे। ले दे के पोताई के काम ह निबटिस हे, फ्लोरिंग, टाइल्स, खिड़की-दरवाज अउ रंग-रोगन बर हिम्मत ह जवाब दे दिस। सोंचे रेहेन, छै-सात महीना म गृह-प्रवेश हो जाही। फेर गाड़ी अटक गे। मुसीबत कतको बड़ होय, माई लोगन मन बुलके के रास्ता खोजिच् लेथें; घर वाली ह कहिथे – ‘‘करजा ले-ले के कतिक बोझा करहू , आखिर हमिच ल तो…

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आज के सतवंतिन: मोंगरा

बाम्हन चिरई ल आज न भूख लगत हे न प्यास । उकुल-बुकुल मन होवत हे। खोन्धरा ले घेरी-बेरी निकल-निकल के देखत हे। बाहिर निकले के चिटको मन नइ होवत हे। अंगना म, बारी म, कुआँ-पार म, तुलसी चंवरा तीर, दसमत, सदा सोहागी, मोंगरा, गुलाब, अउ सेवंती के फुलवारी मन तीर, चारों मुड़ा वोकर आँखी ह मोंगरा ल खोजत हे; मने मन गुनत हे, हिरदे ह रोवत हे। मोंगरा ह आज काबर नइ दिखत हे भगवान? कहाँ गे होही? घर भर म मुर्दानी काबर छाय हे? कतको सवाल वोकर मन म,…

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फूलो

फगनू घर बिहाव माड़े हे। काली बेटी के बरात आने वाला हे। जनम के बनिहार तो आय फगनू ह, बाप के तो मुँहू ल नइ देखे हे। राँड़ी-रउड़ी महतारी ह कइसनों कर के पाले-पोंसे हे। खेले-कूदे के, पढ़े-लिखे के उमर ले वो ह मालिक घर के चरवाही करत आवत हे। फूटे आँखी नइ सुहाय मालिक ह फगनू ल, जनम के अँखफुट्टा ताय हरामी ह; गाँव म काकर बहू-बेटी के इज्जत ल बचाय होही? फगनू ह सोचथे – वाह रे किस्मत! जउन आदमी ह हमर बहिनी-बेटी के, दाई-माई के इज्जत लूटथे;…

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छत्तीसगढ़ी लघुकथा संग्रह – करगा

शकुन्तला शर्मा भिलाई, छत्‍तीसगढ़ शिक्षा – एम.ए.(संस्‍कृत, हिन्‍दी), बी.एड.(सिद्धॉंतालंकार) ब्लाॅग – http://shaakuntalam.blogspot.in कृतियॉं – 1. चंदा के छॉंव म (छत्‍तीसगढ़ी कविता संग्रह), 2. ढ़ाई आखर (कविता संग्रह), 3. लय (गीत संग्रह), 4. शाकुन्‍तल (खण्‍ड काव्‍य), 5. कठोपनिषद् (गीतिमय व्‍याख्‍या), 6. संप्रेषण (गीत संग्रह), 7. इदं न मम (निबंध संग्रह), 8. रघुवंश (महाकाव्‍य), 9. कोसला (चम्‍पू), 10. कुमारसम्‍भव (छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य) अलंकरण – राजभाषा प्रशस्ति पत्र, कुवर वीरेन्‍द्र सिंह सम्‍मान, ताज मुगलिनी अलंकरण, भारती रत्‍न अलंकरण, पं.माधव राव सप्रे साहित्‍य सम्‍मान, दीपाक्षर सम्‍मान, रोटरी क्‍लब द्वारा सम्‍मानित, द्विज कुल गौरव अलंकरण, आचार्य…

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गरीबा : महाकाव्य – तीसर पांत : कोदो पांत

छत्तीसगढ़ी गरीबा महाकाव्य रचइता – नूतन प्रसाद प्रथम संस्करण – 1996 मूल्य – पांच सौ रुपये स्वत्व – सुरेश सर्वेद आवरण – कृष्णा श्रीवास्तव गुरुजी डिजाइन एवं टाईपसैट – जैन कम्प्यूटर सर्विसेज, राजनांदगांव प्रकाशक सुरेश सर्वेद मोतीपुर, राजनांदगांव वर्तमान पता सुरेश सर्वेद सांई मंदिर के पीछे, तुलसीपुर वार्ड नं. – 16, तुलसीपुर राजनांदगांव छत्तीसगढ़ मोबाईल – 94241 11060 गरीबा महाकाव्य (तीसर पांत : कोदो पांत)

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गरीबा महाकाव्य (तीसर पांत : कोदो पांत)

३. कोदो पांत अपन स्वार्थ बर सब झन जीथंय परहित बर कम प्राणी। पर के सुख बर जउन हा जीयत ते प्रणाम अधिकारी ।। विनती करों शहीद के जेमन हमला दीन अजादी । संस्कृत – साहित्य अउ समाज ला उंकरे लहू बचाइस ।। “”चलो चलो दीदी ओ आगू आओ बहिनी मन काम करे बर हम जाबो । धरती के सेवा करबो तब खाबो अउ खवाबो ।। घर बइठे मं काम बरकथय देह हलाए परथय कामिल मनसे के आए ले आलस पट ले मरथय. टोर के जांगर – गिरा पसीना झींक…

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गरीबा : महाकाव्य (दूसर पांत : धनहा पांत)

गरीबा महाकाव्य नूतन प्रसाद 2. धनहा पांत ठेलहा बइठे मं तन लुलसा-ऊपर ले बदनामी । काम करे मं समय व्यवस्थित-ऊपर मिलत प्रशंसा ।। काम के पूजा करिहंव जेकर ले होथय जग आगे । महिनत मं तन लोहा बनथय-बनन पाय नइ कामी ।। समय हा रेंगत सुरधर-सरलग, मौसम घलो पुरोथय काम ओसरी पारी पुछी धरे अस, वर्षा ऋतु-जड़काला-घाम. नेत लगा-अब पानी गिरगे, अड़बड़ कृपा करिस बरसात अपन बुता मं किसान भिड़गें, फुरसुद कहां करे बर बात! छोड़ बिस्कुटक कथा कंथली, नांगर ला सम्हरात किसान बइला मन ला मसक खवा अब, जावत…

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गरीबा : महाकाव्य – दूसर पात : धनहा पांत

छत्तीसगढ़ी गरीबा महाकाव्य रचइता – नूतन प्रसाद प्रथम संस्करण – 1996 मूल्य – पांच सौ रुपये स्वत्व – सुरेश सर्वेद आवरण – कृष्णा श्रीवास्तव गुरुजी डिजाइन एवं टाईपसैट – जैन कम्प्यूटर सर्विसेज, राजनांदगांव प्रकाशक सुरेश सर्वेद मोतीपुर, राजनांदगांव वर्तमान पता सुरेश सर्वेद सांई मंदिर के पीछे, तुलसीपुर वार्ड नं. – 16, तुलसीपुर राजनांदगांव छत्तीसगढ़ मोबाईल – 94241 11060 मंय छत्त्तीसगढ़ी म गरीबा महाकाव्य काबर लिखेवं ? आज आप ल जउन कहिना हे, एक वाक्य म कहो। समे “गागर म सागर” भरे के हे। आप बड़े ले बड़े बात ल नानकून…

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