संपत अउ मुसवा

उतेरा एसो गजब घटके रहय। माड़ी-माड़ी भर लाखड़ी, घमघम ले फूले रहय। मेड़ मन म राहेर ह घला सन्नाय रहय। फर मन अभी पोखाय नइ रहय, फेर बेंदरा मन के मारे बांचय तब। फुलबासन ह सुक्सा खातिर लाखड़ी भाजी लुए बर खार कोती जावत रहय। मेड़ के घटके राहेर के बीच चिन्हारी नइ आवत रहय। हरियर लुगरा, हरियरेच पोलखा, राहेर के रंग म रंग गे रहय। राहेरेच जइसे वोकर जवानी ह घला सन्नाय रहय। फुलबासन, जथा नाम, तथा गुन। फूल कस सुंदर चेहरा। पातर, दुब्बर सरीर। कनिहा के आवत ले…

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राजा तरिया

भोलापुर गांव के जमीन न तो सरलग अउ सोझहा हे,अउ न चिक्कन-चांदर हे। खोधरा-डिपरा ले पटाय हे, बारा मरोड़ के भूल-भुलइया हे। मंदिर ह डोंगरी के टिप म बने हे त जइत खाम ह खाल्हे तला म। ऊपर डहर ऊपर पारा, खाल्हे कोती खाल्हे पारा अउ बीच म मंझोत पारा। खाल्हे पारा वाले मन बर ऊपर डहर मूंड़ी उचा के देखना तको अपराध रहय,चढ़े के तो बातेच मत सोंच। फेर सारकारी नियम कानून अउ बदलत जमाना के असर के कारण अब बड़े-बड़े खोधरा-डिपरा मन पटावत आ गे हे। ऊच-नींच के…

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डेरहा बबा

मोर गांव के नाम भोलापुर हे। पहिली इहां सौ छानी रिहिस होही। अब कतको छानी के दू-दू , चार-चार टुकड़ा हो हो के गिनती दू सौ ले ऊपर हो गे होही। छानी बंटा गे, खेत-खार घला बंटा गे। मन तो पहिलिच बंटा जाय रहिथे। मन बंटाइस तंहा ले गांव घला बंटा गे। अब घर अउ घर,, आदमी अउ आदमी के बीच बेर्रा बबूर के ढ़ेंखरा रुंधावत कतका देर लगही। पहिली बखरिच बियारा म रुंधना रुंधाय, बोंता बिरवा के रक्छा खातिर। अब तो भाई ह भाई के मुंह देखना नइ चाहे…

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कहानी संग्रह : भोलापुर के कहानी – लेखकीय

सोंचव छत्तीसगढ़ी भाषा – साहित्य-लेखन आज पर्याप्त मात्रा म होवत हे। बड़ा शुभ लक्षण हे। फेर छत्तीसगढ़ी समकालीन साहित्य के बात जब होथे तब हमला मुंह ताके बर पड़ जाथे। साहित्य के प्रवृत्ति अनुसार विद्वान मन वोकर नाम घरथें, जइसे -रीतिकालीन साहित्य, प्रगतिशील साहित्य आदि। अइसनेच समकालीन साहित्य ह घला प्रवृत्ति-विशेष के साहित्य होथे, येकरो अपन लक्षण अउ गुण-धर्म होथे। जइसे कोन्हों घला रचना ल प्रगतिशील रचना नइ कहे जा सके वइसनेच कोन्हों रचना ल समकालीन साहित्य घला नइ केहे जा सके। जउन रचना ह सामकालीन साहित्य के विषेशता से…

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कहानी संग्रह : भोलापुर के कहानी – संपादकीय

भोलापुर के कहानी  के का बतावंव। किताब तुंहर हाथ म हे। पढ़ के खुद देख लव। संगवारी हो ! भोलापुर गांव, जेकर कहानी ये किताब म लिखाय हे, कोन जगा हे? कोन तहसील अउ कोन जिला म हे? उहां के आबादी कतेक हे? उहां के रहवइया मन कइसन हें ? उहां का अइसन घटना घट गे कि जेकर कहानी बन गे? कहानी के कलाकार मन कइस-कइसन हें ? सबो झन विहिंचेच के आवंय कि अनगंइहां घला हें ? अबड़ अकन सवाल हे। लेखक के गांव के नांव भोड़िया हे। मोर…

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कहानी संग्रह : भोलापुर के कहानी

लोक की कहानी (भोलापुर के कहानी, प्रथम संस्करण की समीक्षा; विचार वीथी, नवंबर10-जनवरी11) डॉ. गोरे लाल चंदेल आंचलिक भाषा पर कहानी लिखने की हमारी परंपरा बहुत लंबी है। इंशा अल्ला खाँ की ‘रानी केतकी की कहानी’ यों तो हिन्दी खड़ी बोली की कहानी मानी जाती है पर उस कहानी में आंचलिकता बोध स्पष्ट दिखाई देता है। रेणु की ‘परती परिकथा’ बिहार की लोक बोली के रस से सराबोर दिखाई देती है। उनकी कहानियों में भी इस आंचलिक रंग को आसानी से देखा जा सकता है। बहुत से हिन्दी कहानियों में…

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कहानी संग्रह : भोलापुर के कहानी

पूर्वावलोकन डॉ. नरेश कुमार वर्मा कुबेर की छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह ‘भोलापुर के कहानी’ में कुल चौदह कहानियां संग्रहित हैं। ये कहानियां वास्तव में किसी एक गांव की कहानी नहीं है अपितु छत्तीसगढिया लोगों की पीड़ा, शोषण , अस्मिता, संघर्ष और स्वाभिमान से ओतप्रोत कहानियां हैं जिनमें डेरहा बबा, राजा तरिया, संपत अउ मुसुवा, लछनी काकी, सुकारो दाई, घट का चौंका कर उजियारा, चढ़ौतरी के रहस, सरपंच कका, पटवारी साहब परदेसिया बन गे, साला छत्तीसगढ़िया, पंदरा अगस्त के नाटक, अम्मा हम बोल रहा हूं आपका बबुआ, मरहा राम के जीव अउ…

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भोलापुर के कहानी : कहानी संग्रह

भूमिका भोलापुर के कहानी : उपन्यास के सुवाद वाला कहानी संग्रह डॉ. जीवन यदु चाहे संस्कृत भासा होय के चाहे हिन्दी भासा होय – कविता के रचना पहिली होइस। पाछू कहिनी-लेख-नाटक लिखे गे हे। संस्कृत म त आने-आने गियान के पोथी मन ल घलो कविता म लिखे के परंपरा रहिस। बइद-गुनिया मन के ग्रंथ ल कविच मन ह उल्था करंय, हाथ-नारी देखांय, जड़ी-बुटी घला बतावंय। तउने सेती बइदराज मन ल जुन्ना जुग म कविराज घलो कहंय। छत्तीसगढ़ी भासा म कविता के लिखइ ह कहिनी ले पहिली होय हे। कविता के…

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गरीबा : महाकाव्य (पहिली पांत : चरोटा पांत)

साथियों, भंडारपुर निवासी श्री नूतन प्रसाद शर्मा द्वारा लिखित व प्रकाशित छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य “ गरीबा” का प्रथम पांत “चरोटा पांत” गुरतुर गोठ के सुधी पाठकों के लिए प्रस्‍तुत कर रहा हूं। इसके बाद अन्य पांतों को यहॉं क्रमश: प्रस्‍तुत करूंगा। यह महाकाव्य दस पांतों में विभक्त हैं। जो “चरोटा पांत” से लेकर “राहेर पांत” तक है। यह महाकाव्य कुल 463 पृष्ट का है। आरंभ से लेकर अंत तक “गरीबा महाकाव्य” की लेखन शैली काव्यात्मक है मगर “गरीबा महाकाव्य” के पठन के साथ दृश्य नजर के समक्ष उपस्थित हो जाता है।…

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गरीबा : महाकाव्य (पहिली पांत : चरोटा पांत)

गरीबा महाकाव्य नूतन प्रसाद 1. चरोटा पांत बिना कपट छल के प्रकृति ला मंय हा टेकत माथा । बुद्धिमान वैज्ञानिक मन हा गावत एकर गाथा ।। बाढ़ सूखा अउ श्रृष्टि तबाही जन्म मृत्यु मन बाना । बेर चन्द्रमा नभ पृथ्वी अंतरिक्ष सिंधु मन माला ।। बालक के हक हे दाई संग कर ले लड़ई ढिठाई । बायबियाकुल शक्तिहीन के प्रकृति करय भलाई ।। बेर करिस बूता बेरा तक, बड़बड़ाइस नइ ठेलहा बैठ बद्दी मुड़ पर कहां ले परही, बढ़ा डरिस जब करतब काम. बूता के छिन सिरा गीस अब, ब्यापत…

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