छत्तीसगढ़ी साहित्य म अनुवाद के परम्परा ‘कामेडी आफ इरर’ के छत्तीसगढ़ी अनुवाद ले चालू होए हावय तउन हा धीरे बांधे आज तक ले चलत हावय. छत्तीसगढ़ी म अनुवाद साहित्य उपर काम कमें होए हावय तेखर सेती अनुवाद रचना मन के कमी हावय. दूसर भाखा के साहित्य के जब हमर छत्तीसगढ़ भाखा म अनुवाद होही तभे हमन दूसर भाखा के साहित्य अउ संस्कृति ला बने सहिन समझ पाबोन. येखर ले दूसर भाखा के साहित्य के रूप रचना अउ अंतस के संदेसा ला हमन जानबोन अउ अपन भाखा के रचना उन्नति खातिर…
Read MoreYear: 2013
गम्मतिहा : मदन निषाद
छत्तीसगढ़ के नाचा के मान ला देस बिदेस म फैलइया कलाकार मन म रवेली अउ रिंगनी साज के कलाकार मन के बड़ नाम हे। दाउ मदराजी के पंदोली अउ हबीब तनवीर के संगत म हमर पारंपरिक खढ़े साज नाचा के कलाकार मन अपन अभिनय के बल म हमर धरोहर लोक नाट्य नाचा के प्रसिद्धी ला चारो मूड़ा बगराईन हे। हमर कलाकार मन के अभिनय ल देख के बड़का बड़का नाट्य निदेसक मन ह चकरा जावय अउ छत्तीसगढ़ के गोदरी के लाल मन के बारंबार बड़ई करय। हमर पारंपरिक नाचा के…
Read Moreचलव चली ससुरार
एच.एम.टी. के भात ल थोकिन छोड़ दीस अउ मुंह पोंछत उठगे। दुलरवा के नखरा देख के मैं दंग रहिगेंव। जेन दुलरवा ह दू रुपिया किला वाले चाउर के भात खाथे वोह एचएमटी के भात ल छोड़ दीस। साल भर में एकाध बार आमा खावत होही तेन ह आमा ल वापिस कर दीस। जिल्लो के दार खवइया ह राहेरदार ल हीन दीस। वाह रे! दुलरवा तैं तो सही म दमाद बाबू दुलरू हो गेस। दुलार सिंग ह मोर लंगोटिया दोस्त ए। दुलार के रू नाम दुलरवा हे। आज दुलरवा शब्द ह…
Read Moreमन मोर गावे दीदी तपत कुरु तपत कुरु
जब मयं अमरेवं गाँव के मुहाटी लईका खेलत रिहिन भँवरा बांटी पीपर खांदा मा कूदत रिहिन बेंदरा सईंतत गोबर मोल दिखिस मंटोरा जान गयेंव इहीच मोर गाँव ए मन मोर गावे दीदी तपत कुरु तपत कुरु मन मोर गावे दीदी तपत कुरु तपत कुरु || गाड़ी बईला कुदावत भईया घर आवे लोटा पानी धरे भौजी मुसकावे बईहाँ लमाये दाई-ददा आँसू ढारें आँसू खुसी के मोर आँखी ले बरसे पाँव परेंव इहीच मोर धाम ए मन मोर गावे दीदी तपत कुरु तपत कुरु मन मोर गावे दीदी तपत कुरु तपत कुरु…
Read Moreतोर मया
जड़कल्ला म गोरसी आगी कस, पंडवानी के रंगधरी रागी कस जोर जुलूम में बिदरोही-बागी कस, बडे-बुजुरूग में नेवत पै लागी कस, रुस-रुस लागथे तोर मया॥ धपकाला म करसी पानी कस, चन्दा के ओग्गर जवानी कस, सुघ्घर राज के रजधानी कस लाल-लाल कलिन्दर चानी कस, गुरतुर लागथे तोर मया॥ करमा के मांदर थाप कस ददरिया के तान अलाप कस नवां घर म चढ़त सिलाप कस घर पहुंचे म बांचे धाप कस सुर-सुर लागथे तोर मया॥ बर-बिहाव में भड़ौनी गीत कस पुरइन पत्ता म ठाहरे शीत कस बड़ दुरिहा के लागमानी हित…
Read Moreगरीबा महाकाव्य (दसवां पांत : राहेर पांत)
जब समाज मं शांति हा बसथय शांति पात जिनगानी। दुख शत्रुता अभाव भगाथय उन्नति पावत प्रानी।। मारपीट झगरा दंगा ले होवत कहां भलाई। मंय बिनवत हंव शांति ला जेहर बांटत प्रेम मलाई।। लगे पेड़ भर मं नव पाना, दसमत फूल फुले बम लाल लगथय – अब नूतन युग आहय, क्रांति ज्वाल को सकत सम्हाल! अब परिवर्तन निश्चय होहय, आत व्यवस्था मं बदलाव पर मंय साफ बात बोलत हंव – नइ दुहरांव पूर्व सिद्धान्त. याने महाकाव्य मं मंय हा, होन देंव नइ हत्या खून जीवन जीयत बड़ मुश्किल मं, तब बढ़…
Read Moreसमारू कका आई पी एल मैच के दिवाना
समारू कका – हालो…हालो…. महराज- हलो…कौन? समारू कका – या मोला भाखा ल नई ओरखत हस का महराज, मय समारू बोलत हवं गांव ले. महराज – समारू कका जय जोहार. समारू कका- जय जोहार महराज. महराज – अब्बड़ दिन म फोन करे समारू कका. समारू कका – हव महराज मोबईल के बच्चादानी म सूजन आगे रहीस त मोबईल नई चलत रहीस एदे नवा बच्चादानी डलवाय हवं. महराज- मोबाईल के बच्चादानी म सूजन, ये का होथे कका? समारू कका – मोबईल के बच्चा दानी माने बैटरी महराज, मोबईल के बैटरी नगत…
Read Moreनाचा के पहिली महिला कलाकार : फिदाबाई मरकाम
फिदा बाई छत्तीसगढ़ के नाच-गान म पारंगत देवार जात के बेटी रहिस। देवार डेरा म जनम के खातिर फिदा बाई बचपन ले अपन डेरा संग गांव-गांव घूम-घूम के नचई अउ गवइ करय, ओखर संग ड़ेरा के बड़े महिला मन तको नाचय-गावंय। देवार डेरा के पुरूष मन बाजा बजावंय अउ महिला मन नाचय, दाउ-गौंटिया अउ बड़े किसान के घर म नाच-गा के इनाम मांगय। फिदा बाई अपन डेरा म सबले सुन्दर अउ कोइली जइसे कंठ वाली रहिस ओखर सोर चारो मूड़ा बगरे लागे रहिस। इही समे मा नाचा के पुरोधा दाउ…
Read Moreछत्तीसगढ़ी गज़ल के कुशल शिल्पी: मुकुन्द कौशल
डॉ. . दादूलाल जोशी ‘फरहद’ जब भी गज़ल विधा पर चर्चा होती है , तब कतिपय समीक्षकों का यह मत सामने आता है कि गज़लें तो केवल अरबी , फारसी या उर्दू में ही कही जा सकती है। अन्य भाषा ओं में रचित गज़लें अधिक प्रभावी नहीं हो सकती । शायद इसीलिए अन्य भाषा ओं और खासकर हिन्दी में कही गई गज़लें सहजता से स्वीकार नहीं की गई। चाहे वह दुश्यन्त कुमार हो या कुँवर बेचैन , रामदरश मिश्र या फिर चन्र्ससेन विराट , सभी को सहमति – असहमति के…
Read Moreबिसवास अउ आसथा के केन्द्र – दाई भवानी , विन्दवासिनी अउ बाबा बन्छोरदेव
इहां होथय सब के मनोकामना पूरन लोकमत हे कि जुन्ना करेला गांव के ” डोंगरी ” म दाई भवानी आदिकाल ले बिराजमान हवै। पर एक ठन कहिनी घलोक बताये जाथे – गाँव पटेल महेन्द्रपाल सिंग के परदादा उमेंदसिंग कंवर गांव के मालगुजार रिहीन। उन हर जेठ के महीना म गांव के कुछ लोगन संग परछी म बइठे रिहीन उही बेरा एक कन्या अइस। ओकर देह भर बड़े माता रिहीस। ओकर चेहरा म तेज अउ माथ म चमक रिहीस। ओहर पड़रा कपड़ा पहिरे रिहीस। ओहर अपन नाव भवानी बतइस अउ मालगुजार…
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