व्यंग्य : छत मा जल सग्रंहण

-वीरेन्द्र सरल एकेच दो साल पहिली बने नवा सरकारी भवन के छत उपर गर्मी भर मनमाने बोरझरी और बमरी कांटा ला बगरा के राखे गे रिहिस हावे । रद्दा म रेगंइया ओती ले रेंगें तब छत उपर कांटा ला देख के अचरज मे पड जाय।कारण जाने के उदिम करे फेर कारण समझ मा आबे नई करे। फेर जइसे बरसात लगिस तइसे वो कांटा ला टार के छत उपर खपरा चढ़ाय जात रिहिस। अब तो देखइया मन के अचरज के ठिकाना नई रिहिस ।सब के दिमाग घूमगे ।सबे सोचे -अरे! अहा…

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हमर पूंजी व्यवस्था में चीनी सेंधमार

लिखइया सरला शर्मा आज हमर विदेशी मुद्रा भण्डार 278.6 अरब डालर है जेहर छय सात महीना के आयात बर पुरही। फेर सुरता करिन तो सन् 1991 मं एहर 60 करोड डालर तक गिर गये रहिस। तभो गुने बर परत हे आघूं अवइया गर्रा धूंका हर हमर का हाल करही? दूसर बात के कारखाना मन के कम होवत उत्पादन, घटत पूंजी निवेश, बाढ़त महंगाई अऊ संसार के बजार मां रूपिया के घटत कीमत ये सबो के सीधा असर आम आदमी उपर परत हे। ए तरह के बिगड़त हालत मं घटत औद्योगिक…

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मोर मयारू गणेश

दोहा जऊन भक्त शरण पड़े, ले श्रद्धा विश्वास । श्रीगणेश पूरन करे, ऊखर जम्मो आस ।। चैपाई हे गौरा गौरी के लाला । हे प्रभू तू दीन दयाला । । सबले पहिली तोला सुमरव । तोरे गुण गा के मै झुमरव ।।1।। तही तो बुद्धि के देवइया । तही प्रभू दुख के हरइया वेद पुराण तोरे गुण गाय। तोर महिमा ल भारी बताय ।।2।। दाई धरती ददा ह अकास । ऐ बात कहेव तू मन खास तोर बात ले गदगद महेष । बना दिहीस ग तोला गणेश ।।3।। शुरू करय…

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तीन कबिता

1 ब्रम्ह मुहूरत में उठ जाबे . धरती माँ ल कर लेबे परनाम . सुमिरन करबे अपना कुल देवता ल , लेबे अपन इष्ट देव के नाम . बिहिनिया बिहिनिया नहाके , तुलसी मैया मा दिया बारबे . एक लोटा जल , अरपन कर . एक परिकरमा लगाबे .. घर म होही, लड्डू गोपाल . विधि पूर्वक वोला पूजन करबे . अंगना दुवार बने बहार के . सुग्घर चौक पुरबे.. लईका लोग के नाश्ता पानी , अपन सुहाग के दाना पानी . बने मया लगाके रान्धबे. सिरतोन के लक्ष्मी तै…

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पहुँचगिस संसद

1.- मोर ऑंसू झन गिर/ एकर पिवइया/ नी जनमिस हावय वोहर अजन्मा हावय/ ऑंखी मा भरभर भरे र सागर साही/ बोहागे ता दिखबे खाली गागर साही/ कंकड़ के चोट ले/ छलक जाए/ सागर की परिभाशा/ गलत हो जाही/ अउ तोला बोहाय के लत पड़ जाही/ कोन इहें आपन/ कोन हावय पर/ सबो एकेठन दाई/ के हावय जन्माय/ बॉंस एक दूसर ले घिसाके/ पैदा करथे आगि/ सबो जंगल हो जाथे राख/ राख होय हर सबो के नियति हावय/ करम ले फर के सोच अति हावय/ जादा फर के सोच मा /…

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छत्तीसगढ़िया होटल

कवि – कुबेर छत्तीसगढ राज म एक ठन, छत्तीसगढ़िया होटल बनाना हे। चहा के बदला ग्राहक मन ल, पसिया-पेज पिलाना हे। सेव के बदला ठेठरी-खुरमी, इडली के बदला मुठिया-फरा, दोसा के बदला चिला रोटी, तुदूरी के बदला अंगाकर रोटी खवाना हे। मंझनिया तात पेज, संग म अमारी भाजी, रात म दार-भात अउ इड़हर के कड़ही, बिहिनिया नास्‍ता म आमा के अथान संग, दही बरा के बदला, दही-बासी खवाना हे। कुर्सी के बदला मचोली, टेबल के बदला पिड़हा, प्‍लेट के बदला बटकी, कप के बदला कटोरी, बेयरा ल बस्‍तर के, बस्‍तरिहा…

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सात हायकू सावन के

00 बादर आगे किसान के मन कुलकुलागे। 00 नांगर धरे चलिस नगरिहा खेत बोआगे। 00 कीरा झपागे बतरकीरी आगे जी कनझागे। 00 छेना सिरागे लकडी गुंगवाय ऑंखी पिरागे। 00 दिया बुतागे कडकिस बिजली बया भुलागे। 00 बोहाय पानी खेत छलछलागे बियासी आगे। 00 होगे बियासी खेत हरियागे जीव जुड़ागे। अजय ‘अमृतांशु’ हथनीपारा वार्ड,भाटापारा जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा (छ.ग. ) मोबा. 99261.60451

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जयलाल कका के नाच

जयलाल कका ह फुलझर गॉव म रहिथे। वोहा नाचा के नाम्हीं कलाकार आय। पहिली मंदराजी दाउ के साज म नाचत रिहिस। अब नई नाचे । उमर ह जादा होगे हे। बुढ़ुवा होगे हे त ताकत अब कहां पुरही । संगी साथी मन घलो छूट गे हे। कतको संगवारी मन सरग चल दिन। एक्का दुक्का बांचे हे, तउनो मन निच्चट खखड़ गेहें। गॉव के जम्मों लोगन वोला कका कहिथें। सब छोटका बड़का वोला गजब मान देथें। कतरों झन रोजाना वोकर तीर म संकलाथें अउ वोकर गोठ बात ल सुनथें। तईहा जमाना…

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