छत्तीसगढ़ के रीति-रिवाज ह खोज अउ शोध के बिसे आय। काबर कि इहां के जम्मो संस्कृति ह कृषि संस्कृति ले गुंथाय हे। यहू बात के परमान मिलथे कि इहां के कतको संस्कृति, रीति-रिवाज ह रामायण अउ महाभारत काल ले जुड़े हे। कतको रीति-रिवाज अउ परम्परा जउन ह जनम ले लेके मरन तक गुंथाय हे वोमा सब ले बड़े हे बर-बिहाव। जिनगी के गाड़ी ल चलाय बर नर अउ नारी दूनो के होना जरूरी हे। नर-नारी के रूप म जिनगी भर एक बंधना म बंधाय के पक्का बंधना होथे बिहाव। ये…
Read MoreYear: 2013
इतवार तिहार
एक दिन के बात आय। मैं हर जावत रहेंव आलू बिसाय। झालो घर रटपिट-रटपिट रेंगत हबक ले एक झन मनसे मेर लड़ई खागे। काय-काय समान धरे रहिस। बंदन-चंदन झंडा ला साडा करिया। कस बाबू तैं अतका जल्दी-जल्दी काबर रेंगत हावच बइगा मोला पूछिस। मैं हर न बइगा, आलू बिसाय जावत हवं। झालो घर रांधे बर बेरा होत हावय कहिके जल्दी-जल्दी रेंगत हंव फेर तैं काय-काय धरे हावच। बइगा कहां जावत हस। जगमोहन बइगा कहिबे तै निच्चट बुध्दू हावच जी। आज तो इतवार आय अउ हमार गांव म इतवार तिहार मानत…
Read Moreआवत हे राखी तिहार
आवत हे राखी तिहार सजे हे सुग्घर बाजार, रकम रकम के राखी हर डाहर राखी के बहार. रेशम धागा के दिन पहागे चांदी और सोना के राखी आगे मया के तिहार म घलो देखो बाजारवाद ह कइसे छागे.
Read Moreअनुवाद : आखिरी पत्ता (The Last Leaf)
मूल रचना – The Last Leaf लेखक – ओ हेनरी अनुवादक – कुबेर वाशिंगटन स्क्वायर के पश्चिम म एक ठन नानचुक बस्ती हे जेकर गली मन बेढंग तरीका ले, येती ले ओती घूम-घूम के, एक दूसर ल छोटे-छोटे पट्टी म काटत निकले हे, जउन (पट्टी) मन ह ‘प्लेसिज’ (पारा या टोला) कहलाथे। ये जम्मों ‘प्लेसिज’ मन ह अजीब कोण वाले अउ चक्करदार हें। एके ठन गली ह खुद ल दू-तीन घांव ले काटे-काटे हे। एक घांव एक झन कलाकार ह अनमोल कल्पना करके अपन ये गली मन के खोज करे…
Read Moreपतरेंगी
ये कड्ी ले आप ये किताब डाउनलोड कर सकत हव
Read Moreरितु बरनन
ये कड़ी ले रितु बरनन डाउनलोड करव
Read Moreदू पीढ़ी के लिखे अनमोल कृति
मैं ह अपन बहिनी (चचेरी बहन) घर बिहाव म गे रहेंव। ऊहां मोर भेंट होईस पंथराम वर्मा जी ले। कुछु घरेलू बात चलिस। मड़ई म ऊंखर कई ठन कविता छपे रहिस हे, ये बात के खुसी परगट करत रहिन हें। छत्तीसगढ़ी भासा अऊ मड़ई ऊपर गोठबात चलिस। गोठबात के बेरा म पता चलिस एक पुस्तक के बारे म ‘रामचरित्र मानस रामलीला’। ये ह छत्तीसगढ़ी नाटक आय। ये ह पूरा रमायन के नाटय रूप आय।
Read Moreउत्छाह के तिहार हरेली
कोन्हों भी राज आरुग चिन्हा वोकर संस्कृति होथे। संस्कृति अइसन गोठ आय जेमा लोककला अउ लोकपरब के गुण लुकाय रहिथे। छत्तीसगढ़िया मन अपन सांस्कृतिक गहना ल बड़ सिरजा के रखे हे। जेकर परमाण आज तक वोकर भोलापन अउ ठउका बेरा मं मनाय जाय तिहार मं बगरथे। सियान से लेके लइकामन परम्परा ल निभाय खातिर घेरी-बेरी अघुवाय रिथे। माइलोगन के भागीदारी तव घातेच रिथे। चाहे रोटी-पीठा बनाये म हो, सगा-सोदर के मानगौन मं, लोकगीत मं, नहीं तो लोक नाचा मं सब्बो जघा आघु रिथे। छत्तीसगढ़ी मं त्योहार ल तिहार कहे जाथे।…
Read Moreतपत कुरू भइ तपत कुरू
असीस देवे वो देवारी अउ दुकाल-अकाल बेटी के बिदा पन्द्रह अगस्त मडई देखे जाबो उँकरे बर सनमान मडइके के मया इही किसम होना चाही तपत कुरु लछमी – पारवती गोठ ले दे मोर खर लुगरा भज लेबे गा तोरेच खातिर अन्नपुरना गउरी सास डोकरी लेवना चोरी निक लागय चन्दा लेहूं अरझ गेहे तुलसी के कहिनी सारी गुरु नानक सारा छत्तीसगढ महतारी गउरी साँही भउजी बिजली चमकथय मोरो मन कहिथय मैं बुडे हाबँव दरस नई नागिन के फन ल तैय चल नई बाँचय तील्मती-चाँउरमती ढेरा घूमत चलबों संगे संग गारव असें…
Read Moreगुरमटिया म सावन अउ महतारी
सावन के का बात हे भाई सावन तो मन भावन ए सबो महीना आथे- जाथे फेर सावन तो सावन ए । आघू के गीत शकुन्तला शर्मा जी के छत्तीसगढ़ी ब्लॉग गुरमटिया म पढ़व. महतारी हर महतारी ए देवी – देवता मन ले बड़े माँ के जनम ह पर बर होथे ओकर त्याग हे सब ले बड़े | आघू के गीत शकुन्तला शर्मा जी के छत्तीसगढ़ी ब्लॉग गुरमटिया म पढ़व.
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