करिया बादर

करिया बादर ल आवत देख के, जरत भुइंया हर सिलियागे। गहिर करिया बादर ल लान के अकास मा छागे, मझनिया कुन कूप अंधियार होवे ले सुरूज हर लुकागे, मघना अस गरजत बादर हर सबो डहार छरियागे, बिरहनी आंखी मा पिय के चिंता फिकर समागे। करिया बादर… गर्रा संग बादर बरस के जरत भुइंया के परान जुड़ागे, सोंधी माटी के सुवास हर, खेत-खार म महमागे, झरर-झरर पानी गिरिस, रूख राई हरियागे, हरियर-हरियर खेत-खार मा नवा बिहान होगे। करिया बादर… दूरिया ले आवत बादर हर सबो ला सुख देथे चिरैया हर डुबकी…

Read More

चुपरनहा साबुन

येदे अहि नाहकिस हे तउने देवारी फर्रा के गोठ आए बड़ दिन म अपन गाँव गए रहेंव, जम्मे जुन्ना संगवारी मन सो भेंट होए रहिस, गोठ बात म कतका बेर रात पहागे जाने नई पायेन| बिहनिया होईस तंहा चला तरिया जाबो बड़ दिन हो गए तरिया म नहाय नई हन, जमे संगवारी मन ला उनकर घर ले चला न कतका बेरा जाहा म जाहा त घटौन्धा म बैठे नई पाहा, तभे टेटका ह घर के भीतरी ले चिचिया के कहत हे तैं चल ना मै ह गरुआ ल ठोकान म…

Read More

कोपभवन

दसरथ:- ओ दिन निकल जाथिस चक्का गिर जाथें मैंहर रथ ले दसरथ हो जाथें सिकार मैंहर बइरी के फेर नी होथिस इसने मोर दसा अजुध्या के राजा आज मैंहर नाक औरत के आघू मा रगड़त हावौं आज मैंहर जाने रूप के मोहाई मया नी हावय अभिसाप हावय समहर के कइसने फंॅसात हावय बिफरिन नागिन बन जात हावय जे रूप मा रानी के मरत रहेंव ओकर अंदर भरे अतका कपट जे कमल फूल के आघू मैंहर भंवरा बनके लहरात रहेंव रात मा ओकर भीतर मैंहर बड़ मजा के रह जात रहेंव…

Read More

गज़ल : छत्‍तीसगढ़ी गज़ल संग्रह “बूड़ मरय नहकौनी दय” ले 2

रिमझिम पानी म मन मंजूर हो जाथे काबर बादर के गरजन मोला अब्बड डेरवाथे काबर ? पानी गिरथे तव ए माटी बिकट मम्हाथे काबर रिमझिम पानी ह मोर मन ल हरियाथे काबर? नोनी आही तीजा पोरा म अगोरत हावय महतारी रहि रहि के नोनी के गोड हर खजुआथे काबर? बादर आथे तव मस्त मगन होथे किसान हर तरिया हे मतलाय तभो मोर मन उजराथे काबर ? ‘शकुन’ अगोरत हे मनखे सावन अउ भादो ल धक धक धक सावन आगे मन ल धडकाथे काबर ? शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग…

Read More

गज़ल : छत्‍तीसगढ़ी गज़ल संग्रह “बूड़ मरय नहकौनी दय” ले 3

आम – लीम- बर- पीपर – पहिरे छत्तीसगढ के सबो गॉंव नदिया नरवा पार म बइठे छत्तीसगढ के सबो गॉंव । धान-बौटका कहिथें सब झन किसम किसम के होथे धान हरियर – हरियर लुगरा पहिरे छत्तीसगढ के सबो गॉंव । हर पारा म सुवा ददरिया राग सुनावत रहिथे ओ संझा कन जस गीत ल गाथे छत्तीसगढ के सबो ग़ॉंव । भिनसरहा ले गॉंव के फेरी भजन- मण्डली करथे रोज देश के पोटा म लुकाय हे छत्तीसगढ के सबो गॉंव । ‘शकुन ‘ जगावव जमो गॉंव ल गॉंव म बसथे भारत…

Read More

गज़ल : छत्‍तीसगढ़ी गज़ल संग्रह “बूड़ मरय नहकौनी दय” ले 4

बाबा हर सरकार ल रामलीला ले चुपे-चुप चेताइस हे जनतंत्र के महत्व ल गॉंधी के भाखा म समझाइस हे। बाबा तैं अकेला नइ अस देश तोर संग ठाढे हावय देश ह सत्याग्रह ल आज तोरेच कंठ ले गाइस हे । बाबा तैं फिकर झन कर जनता जाग गए हावय जयप्रकाश के ऑंदोलन हर आज रंग लानिस हे । राज करत – करत आज शासन हर दुस्शासन होगे मिश्र सरिख माहौल आज हमर भारत म आइस हे । ‘ शकुन ‘ जा तहूँ हर गेरुआ टोपी ल पहिर के आ जा…

Read More

गज़ल : छत्‍तीसगढ़ी गज़ल संग्रह “बूड़ मरय नहकौनी दय” ले 5

रंग म बूड के फागुन आ गे बइठ पतंग सवारी म टेसू फूल धरे हे हाथ म ठाढे हावय दुवारी म । भौंरा कस ऑंखी हे वोकर आमा मौर हे पागा म मुच – मुच हॉंसत कामदेव कस ठाढे हावय दुवारी म । मन ह मन मेर गोठियावत हे बुध ह बांदी हो गे आज लाज लुकागे कहॉं कोजनी फागुन खडे दुवारी म । पिंवरा लुगरा पोलका पहिरे मंदिर जावत रहेंव मैं आज दार – भात म करा ह पर गे फागुन खडे दुवारी म । रस्ता देखत रहेंव बरिस…

Read More

गज़ल : छत्‍तीसगढ़ी गज़ल संग्रह “बूड़ मरय नहकौनी दय” ले

आगे बादर पानी के दिन अब तो पानी – पूरा आही बीत गे बोरे – बासी के दिन दार – भात ह अब भाही। फरा अंगाकर रोटी चीला – चटनी संग सब खावत हें खेत – खार म कजरी – करमा भोजली गॉंव-गॉंव गाही । अंगना गली खोर म चिखला नोनी खेलय कोन मेरन सम्हर पखर के बादर राजा सबो झन ल नाच नचाही । संग म पानी के झिपार के गेंगरुआ परछी म आगे भौजी निच्चट छिनमिनही हे ननंद वोला अब डेरवाही । चिक्कन होगे सबके एडी ‘शकुन’ सबो…

Read More

मंदझाला

मन के मतवार मन ला सौंपत हों आपन गोठ बच्चन के बानी ला सुन के मैंहर बचपन ले बया गए रहेंव, उंकर बानी के बान हर मोर हिरदे मा लागे हावय, कतको तीरथों हिटत नीए, एकरे बर तुमन ला बलाय हावौं, देखिहा आस्ते आस्ते तीरिहा, मोर हिरदे के बात हावय, ओकर तीर बने सचेत होके जाहा, कहूँ मोर हिरदे के बान तीरत तीरत कहूँ तुंहर हिरदे मा झन खुसर जाए। मैंहर अतका भारी कवि के कविता ला उधार मा ले हावौं, वो उधार ला मैंहर मोर गुरतुर भाखा, मयारू गोठ…

Read More