चिनहा

कईसे करलाई जथे मोर अंतस हा बारूद के समरथ ले उडाय चारो मुडा छरियाय बोकरा के टूसा कस दिखत मईनखे के लाश ला देख के माछी भिनकत लाश के कूटा मन चारो मुडा सकलाय मईनखे के दुरगति ला देखत मनखे मन ला कहिथे झिन आव झिन आव आज नही त काल तुहूं ला मईनखे बर मईनखे के दुश्मनी के खतिर बनाये बारूद के समरथ ले उडाई जाना हे हाथ मलत अउ सिर धुनत माछी कस भनकत पुलिस घलो कहिथे झिन आव झिन आव अपराधी के पनही के चिनहा मेटर जाही…

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झांझ – झोला

आगी कस अंगरा, दहकय रे मंझनिया । धूकनी कस धूकथे, संझा का बिहनिया ।। हरके बरजे कस, पाना नई खरके । आंखी तरेंरे जब, कडके मंझनिया ।। आगी कस अंगरा ………………… टूकूर – टूकूर देखे, नवा – नवा बहुरिया । भुकूर – भुकूर लागे, धनी मोर लहरिया ।। आगी कस अंगरा ………………… चूह चुहागे पछीना, सरी अंग अंगिया । जरे घाम भोंभरा, ऐ…ओ परनिया ।। आगी कस अंगरा ………………… पियासे हे तन – मन लेवई अउ चिरईया । डोंगरी पहाड अउ गांव का सहरिया ।। आगी कस अंगरा ………………… झांझ…

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नील पद्म शंख

अघवा: मया के सपना पिछवा: घोर कसमकस परदा भीतरी ले मया आगि हवय, कोन्हों बुता नी सकंय। मया धंधा हवय, कोन्हो जान नी सकंय।। मया मिलाप हवय, कोन्हों छॉंड़ नी सकंय। मया अमर हवय, कोन्हों मेटा नी सकंय।। जान चिन्हार नील – नायिका पद्म – नायिका शंख – नायक रतन – शंख का मितान कैंची – नील के गिंया पिंयारी – पद्म के गिंया मानव – नील के ददा मनुप्रताप – पद्म के ददा आरती – पद्म के दाई बंदन – शंख के दाई अउ आखिर मा बॉंधोसिंह – शंख…

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मेछा चालीसा

मैं पीएचडी तो कर डारे हंव अब डी-लिट के तैयारी में हौं। मोर विषय रही ‘मेंछा के महिमा अऊ हमर देस के इतिहास’ मोला अपन शोध निर्देशक प्रोफेसर के तलाश हे। कई झन देखेंव पर दमदार मेंछा वाले अभी तक नई मिले हे। मेंछा ह शान के परतीक आय अऊ दाढ़ी ह दृढ़ता के। मेंछा चालीसा ल मैं इतिहास से शुरू करत हौं। भगवान मन में बरम्हा जी, शंकर जी, हनमान जी अऊ विस्वकर्मा जी के फोटू म कभू-कभू मेंछा के दरसन हो जथे। मेंछा के महिमा के बखान मेंछा…

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कहिनी : बाढ़ै पूत पिता के धरम

सनेही महराज सब नौकरी के दिन पूरा करके गांव म जाके खेती-पाती करे लागिस। ये महाराज ले ओकर महराजिन हर चार आंगुर आघू रहिस। बिहनिया कहूं चाह पियत म राउत आ जातिस। तब अपन चाह पिआई ल छोड़के ओकर बर चाह बनाके दे लेतिस तब फेर अपन पितिस। अइसने घर भंड़वा करइय्या रउताइन के चेत राखतिस। कुछ खाय-पिये के रोटी- पीठा बनातिस तेमा समझ जावो सब कमिया पोंड़हार के बांटा रहिबे करतिस। पारा परोंस के मन कोनो अथान, कोनो मही, कोनो साग सालन मांगे बर आये रहितिन। सबला मया करके…

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छत्‍तीसगढ़ी कथा कंथली : ईर, बीर, दाउ अउ मैं

– डॉ. दादूलाल जोशी ‘फरहद’ लोक कथाओं के लिए छत्तीसगढ़ी में कथा कंथली शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह वाचिक परम्परा की प्रमुख प्रवृत्ति है। कथा कंथली दो शब्दों का युग्म है। सामान्य तौर पर इसका अर्थ कहानी या कहिनी से लिया जाता है किन्तु वास्तव में इसके दो भिन्न भिन्न अर्थ सामने आते हैं। इसका ज्ञान तब होता है, जब कथा वाचक लोक कथा कहना शुरू करता है। छत्तीसगढ़ में प्रायः लोक कथाकार बतौर भूमिका निम्नांकित पक्तियों को दीर्घ कथा प्रस्तुत करने के पूर्व बोलता हैः- कथा आय…

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बरछाबारी – 19

भाई चन्‍द्रशेखर चकोर के ‘बरछाबारी’ के 19 वॉं अंक ला हम हमर पाठक मन बर इहॉं प्रकाशित करत हावंन, संगी मन ला हमर ये उदीम कइसे लागिस बताहू. आपमन के उछाह होही त, भाई चन्‍द्रशेखर चकोर ले, ये खातिर अनुमति लेके आघू के अंक मन ला हम अइनेहे प्रकासित करे के सरलग उदीम करबोन … संपादक. पाना खुले म थोरकुन बेरा लगही त अगोर लेहू..

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भाषांतर : एक महिला के चित्र (मूल रचना – खुशवंत सिंह. अनुवाद – कुबेर )

छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य म अनुवाद के परम्‍परा ‘कामेडी आफ इरर’ के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद ले चालू होए हावय तउन हा धीरे बांधे आज तक ले चलत हावय. छत्‍तीसगढ़ी म अनुवाद साहित्‍य उपर काम कमें होए हावय तेखर सेती अनुवाद रचना मन के कमी हावय. दूसर भाखा के साहित्‍य के जब हमर छत्‍तीसगढ़ भाखा म अनुवाद होही तभे हमन दूसर भाखा के साहित्‍य अउ संस्‍कृति ला बने सहिन समझ पाबोन. येखर ले दूसर भाखा के साहित्‍य के रूप रचना अउ अंतस के संदेसा ला हमन जानबोन अउ अपन भाखा के रचना उन्‍नति खातिर…

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छत्तीसगढ़ी के उपन्यास : मोर बिचार

मानुस समाज म हजारों साल ले डोकरी दाई के मुह ले कहिनी कहे के परम्परा रहे हे. हमर पारंपरिक कहिनी मन म देबी-देंवता, जादू-मंतर, विरह-परेम के अचरज मिंझरा किस्सा रहय. वो समें म हमर सियान मन ये कहिनी मन के सहारा लेके समाज ला सीख देहे के उदीम करंय. समें के अनुसार कहिनी के ये रूप के बिकास होइस, सियान मन हा कहिनी के ये रूप के रोचकता ला बनाए खातिर नवा उदीम करत कहिनी के बिसय ला समें के संग जोरे खातिर येखर पद्य रूप ल धीरे धीरे समाज…

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गोठ बात अउ चिन्हारी सम्मान के आयोजन भिलाई म.

छत्तीसगढ़ साहित्य समिति, जिला इकाई दुर्ग ह राजभाषा आयोग के अध्यक्ष भगवताचार्य पंडित दानेश्वर शर्मा के चिन्‍हारी सम्‍मान करही. ये कार्यक्रम 12 मई, इतवार के दिन संझा 4 बजे, स्वामी स्वरूपानंद कालेज हुडको म राखे गए हावय. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सांसद सरोज पांडेय जी हांवय अउ अधियक्‍छता पद्मश्री डा. सुरेंद्र दुबे जी करहीं. ये कार्यक्रम म पंडित दानेश्वर शर्मा जी के ‘व्‍यक्तित्‍व अउ कृतित्‍व’ उप्‍पर  डॉ.व्‍यास नारायण दुबे, डॉ.विद्या चंद्राकर, डॉ.जीवन यदु ‘राही’, बल्‍दाउ राम साहू अउ सुजानुक सियान मन अपन बिचार राखहीं. दुर्ग जिला छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य समिति के…

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