“डोकरा भइन कबीर “-बुधराम यादव (डॉ अजय पाठक की कृति “बूढ़े हुए कबीर ” का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ) के एक बानगी जिनगी के बेताल एक सवाल के जुवाब पाके अउ फेर करय सवाल विक्रम के वो खाँध म बइठे जिनगी के बेताल ! पूछय विक्रम भला बता तो अइसन काबर होथे ? अंधवा जुग म आँखी वाला जब देखव तब रोथें सूरुज निकलय पापी के घर दर -दर मारे फिरय पुन्न घर जाँगर टोर नीयत वाले के काबर हाल बिहाल ? राजा अपन राज धरम ले करंय नहीं अब…
Read MoreYear: 2014
गाँव कहाँ सोरियावत हें (छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह के कुछ अंश )
जुन्ना दइहनहीं म जब ले दारु भट्ठी होटल खुलगे टूरा टनका मन बहकत हें सब चाल चरित्तर ल भूलगें मुख दरवाजा म लिखाये हावय पंचयती राज जिहाँ चतवारे खातिर चतुरा मन नई आवत हांवय बाज उहाँ गुरतुर भाखा सपना हो गय सब काँव -काँव नारियावत हें देखते देखत अब गाँव गियाँ सब सहर कती ओरियावत हें ! कलपत कोयली बिलपत मैना मोर गाँव कहाँ सोरियावत हें ! -बुधराम यादव
Read Moreहम जम्मो हरामजादा आन… (डॉ.मुकेश कुमार के हिन्दी कविता के अनुवाद)
पुरखा मन के किरिया खा के कहत हंव के हम जम्मो झन हरामजादा आन आर्य, शक, हूण, मंगोल, मुगल, फिरंगी द्रविड़, आदिवासी, गिरिजन, सुर-असुर कोन जनि काखर काखर रकत बोहावत हावय हमर नस मन म उही संघरा रकत ले संचारित होवत हावय हमर काया हॉं हमन जम्मो बेर्रा आन पंच तत्व मन ल गवाही मान के कहत हंव- के हम जम्मो हरामजादा आन! गंगा, जमुना, ब्रम्हपुत्र, कबेरी ले लेके वोल्गा, नील, दलजा, फरात अउ थेम्स तक अनगिनत नदियन के पानी हलोर मारथे हमर नारी मन म ओखरे मन ले बने…
Read Moreकविता संग्रह : रउनिया जड़काला के
रचनाकार चोवाराम वर्मा ‘बादल’ कवि परिचय नाम श्री चोवाराम वर्मा “ बादल “ पिता स्व. श्री देवfसंग वर्मा जन्मतिथि 21मई सन् 1961 जन्म स्थान ग्राम कुकराचुंदा, जिला – बलौदाबाजार,छ.ग. शिक्षा एम.ए. हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र साहित्य सृजन 1984 से निरंतर विधा काव्य,कहानी,एकांकी भाषा हिन्दी,छत्तीसगढ़ी प्रकाशित कृतियां रउनिया जड़काला के अप्रकाशित कहानी संग्रह हिन्दी अप्रकाशित एकांकी संग्रह हिन्दी अप्रकाशित काव्य संग्रह हिन्दी सम्प्रति व्याख्याता, उच्च. माध्य. विद्यालय केसदा जिला – बलौदाबाजार (छ.ग.) मो.नं. – 9926195747 कोन मेर का हे 1- गनपति गनेश 2- गुरू वंदना 3- गुनत रइथौं न 4- वाह…
Read Moreमनोज कुमार श्रीवास्तव के गियारा कविता
1. झन ले ये गॉंव के नाव जेखर गुन ल हमन गावन, जेखर महिमा हमन सुनावन, वो गॉंव हो गेहे बिगड़हा, जेला देख के हम इतरावन, कहत रहेन शहर ले बने गॉंव , बाबू एखर झन ले नाव, दूसर के चीज ल दूसर बॉंटय, उल्टा चोर कोतवाल ल डॉंटय, थोरकिन म झगरा होवत हें, दूसर मन बर्राय सोवत हें, अनपढ़ मन होशियार हें, साक्षर मन गॅंवार हें, लइका मन हें अतका सुग्घर, दिन भर खावंय मिक्चर, दिन के तो पढ़े ल नई जावंय, रात के देखयं पिक्चर, गॉंव बिगड़इया मनखे…
Read Moreमेरी क्रिसमस
बुधिया बीहिनिया ले हक बकाये हे कालि रात ओकर झोपड़ा में लागथे सांता क्लाज़ आये हे साडी साँटी औ कम्बल चुरी मुंदरी औ सेंडल घर भर में कुढाय हे गेंदू कहिस बही नितो समान ल देख के झन झकझका अब ता हर रात आहि सांता कका चुनाव तिहार ले खुलगे हे क़िसमत बोट के डालत ले रही रोजेच तेरी मेरी क्रिसमस अनुभव शर्मा
Read Moreनकाब वाले मनखे
अभीन के समे हॅ बड़ उटपटॉग किसम के समे हे। जेन मनखे ल देख तेन हॅ अपन आप ल उॅच अउ महान देखाए के चक्कर म उॅट उपर टॉग ल रखके उटपटॉग उदीम करे मा मगन हे। ंअइसन मनखे के उॅट हॅ कभू पहाड़ के नीचे आबेच नइ करय। आवस्कता अविस्कार के महतारी होथे ए कथनी ल मथानी म मथके अइसन मनखे मन लेवना निकाले बर गजब किसम किसम के उदीम करत रहिथे। मिहनत करइया मन के कभू हार नइ होवय सही बात घलो ए। इन मन हॅ आजकल अहसनेच…
Read Moreकविता : हुसियारी चाही रे
नाली चाही बिजली पानी चाही रे। कोनो होवय नेता मा दमदारी चाही रे।। नान-ना काम बर घूमेल झन लागय, भसटाचारी मन दुरीहा भांगय, गरीब के संगवारी चाही रे। जाम झन होवय रद्दा मोटर गड़ी मा , दिया छोड़ कुछू माढ़य झन दुवारी मा। हमला ता रोड खाली-खाली चाही रे।। नाचय झन जेन हा पईसा मा, सोसन बर लड़य चढ़ भईसा मा, नांग नथैया बनवारी चाही रे।। लिखव, पढ़व, सोचव अपन भाखा मा, कतका दिन छलही सकुनी के पासा हा, हावव हुसियार फेर हुसियारी चाही रे।। राजकमल सिंह राजपूत, दर्री (थान…
Read More😜चल संगी चुनाव आगे😜
चल संगी चुनाव आगे,नेता मन हा फेर बऊरागे कोनो बाँटय साल-सेटर कोनो बने हे मयारू कोनो बाँटय लुका-लूका के गली गली मा दारु स्वारथ ला साधे बर सबो बादर कस छागे! चल संगी चुनाव……………. घर-घर मा नेता दिखय मतदाता हा नंदागे भाई,भाई संग लड़त-भिड़त हे नता हा गँवागे पइसा झोंकेव बोट ला दे बर तभे तो बिकास देखे तोर जिनगी हा पहागे! चल संगी चुनाव………… तरिया सुखागे बिन पानी के नदिया हा अटागे फुदकी उड़य गाँव गली म नाली हा पटागे सोंच समझ के दुहु बोट ला बने…
Read Moreछत्तीसगढ़ी गजल
काकर नाँव लिखत रहिथस तैं नँदिया तिर के कुधरी मा। राखे हावस पोस के काला तैंहर मन के भितरी मा। डहर रेंगइया ओकर कोती कभू लहुट के नई देखै, लटके रहिथे चपके तारा जे कपाट के सकरी मा। नाली कतको उफना जावै नँदिया कब्भू बनै नहीं, नहर बने नइ चाहे कतको पानी उलदौ डबरी मा। बादर तोपे हे अँजोर ला घाम म बरसत हे पानी, निहुरे-निहुरे सूरुज रेंगै मूड़ लुकाए खुमरी मा। मनखे देंह घलो के संगी होथे जुन्ना ओनहा कस, थिगरा उप्पर थिगरा जइसे चिरहा-फटहा कथरी मा। फुटहा दोना…
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