आज मोला एक ठन कविता लिखे के मन करत हे। फेर काकर उपर लिखअव ,कइसे लिखअव बड़ असमंजस में हव जी… मोर मन ह असमंजस में हे, बड़ छटपठात हे ।तभे चांटी मन के नाहावन ल देख परेव अउ कविता ह मन ले बाहिर आइस। चांटी मन माटी डोहारत हे भाई… जीव ले जांगर उठावट हे भाई… महिनत करे ल सिखावत हे भाई… हमन छोटे से परानी हरन, तभो ले हमन थिरावन नहीं आज के काम ल, काली बर हमन घुचावन नहीं। महिनत करना हमर करम हे, फल देवाइया ऊपर…
Read MoreMonth: October 2014
मे हा चालीस बछर से रोज कोरट जावत हवव
आज करिया कोट के महिमा ला बतावत हववं, मे हा चालीस बछर से रोज कोरट जावत हववं, ए दारिक तोर फ़ैसला जरूर करवा दू हूं कहिथे, पर मोर नाम आथे तो रोघहा हा घर मा रहिथे, मोर से हर पेसी मा वो दु सौ रुपया पेसगी लेथे,, अउ कोरट बाबू मन संग सन्झा कुन चेपटी पीथे, बिहनिया उकील हा साहब के कुकुर ला घुमाथे, अउ मंझनिया ओखर डौकी बर साग भाझी लाथे , बिरोधी हा भगा गेहे,रात दिन के पेसी से हार के, तभो ले केस ला धरे हे मोर…
Read Moreसेन्ट्रल वर्सेस स्टेट
का फ़रक हवय सेन्ट्रल अउ रज्य सरकार के नौकरी म, एक आफ़िस महल कस,दुसर चलथे निच्चट झोपड़ी म। सेन्ट्रल वाले मन ला अपन तन्खा उप्पर अभिमान होथे, पर स्टेट वाले मन बर तन्खा केवल एक अनुदान होथे। सेन्ट्रल म काम के समय दस से छय कड़ाई से लागू होथे, स्टेट् कार्यालय म असली काम हा छय के बाद चालू होथे। सेन्ट्रल म बाबू बाबू होथे अउ अधिकारी हा अधिकारी होथे, राज्य सरकार म बाबू मन अधिकारी मन उप्पर भारी होथे। सेन्ट्रल म सीएल लेवब म कर्मचारी के प्राण निकल जाथे,…
Read Moreऐसो के देवारी म
[bscolumns class=”one_half”] चारो मुड़ा गियान के उजियार हो जाए अगियान के अंधियारी घलो मिट जाए, दिया जले मया-पिरीत के सबो अंगना अऊ दुवारी म, कुछु अइसन हो जाए ऐसो के देवारी म। समारू के बेटा घलो नवा कपड़ा पहिर सके, मंगलू के नोनी सुरसुरी जलाके फटाका फोर सके, दिखे बबा अऊ डोकरी दाई के चेहरा म खुसी के चिन्हारी न, कुछु अइसन हो जाए ऐसो के देवारी म। घमघम ले बाली के मारे धान के पउधा ह लहस जाए, डोली म फसल ह सोना-चांदी बरोबर चमक जाए, गुलाब अऊ गोंदा…
Read Moreदेवारी तिहार के बधई
[bscolumns class=”one_half”] अँधियारी हारय सदा , राज करय उजियार देवारी मा तयँ दिया, मया-पिरित के बार || नान नान नोनी मनन, तरि नरि नाना गायँ सुआ-गीत मा नाच के, सबके मन हरसायँ || जुगुर-बुगुर दियना जरिस,सुटुर-सुटुर दिन रेंग जग्गू घर-मा फड़ जमिस, आज जुआ के नेंग || अरुण कुमार निगम http://mitanigoth.blogspot.in [/bscolumns][bscolumns class=”one_half_last_clear”](देवारी=दीवाली,तयँ=तुम,पिरित=प्रीत,नान नान=छोटी छोटी,नोनी=लड़कियाँ, “तरि नरि नाना”- छत्तीसगढ़ी के पारम्परिक सुआ गीत की प्रमुख पंक्तियाँ, जुगुर-बुगुर=जगमग जगमग,दियना=दिया/दीपक,जरिस=जले, सुटुर-सुटुर=जाने की एक अदा,दिन रेंग=चल दिए,फड़ जमिस=जुआ खेलने के लिए बैठक लगना,नेंग=रिवाज)देवारी (सं० दावाग्नि) कछारों में दिखाई देनेवाला लुक। छलावा। उदा०: जानहुँ…
Read Moreकवित्त छंद
ऐती तेती चारो कोती, इहरू बिछरू बन, देश के बैरी दुश्मन, घुसरे हे देश मा । चोट्टा बैरी लुका चोरी, हमरे बन हमी ला, गोली-गोला मारत हे, आनी बानी बेश मा ।। देश के माटी रो-रो के, तोला गोहरावत हे, कइसन सुते हस, कब आबे होश मा । मुड़ म पागा बांध के, हाथ धर तेंदु लाठी, जमा तो कनपट्टी ला, तै अपन जोश मा ।। 2-. फेशन के चक्कर मा, दूसर के टक्कर मा, लाज ला भुलावत हे, गांव के टूरा टूरी । हाथ धरे मोबाईल, फोकट करे स्माईल,…
Read Moreनान्हे कहिनी : अच्छा दिन आगे
‘हलो! हलो!! ….. नेता जी, राम राम! मय समे बोलत हंव. हमर त अच्छा दिन आगे नेता जी, नाली साफ करत हन!’ सुन के नेता जी तम तमा के किहीस- ‘तोर आगू के नाली ल तेंह साफ नई करबे त काय मंय करहूं रे? नाली म कचरा तुमन डारत हव त तुही मन साफ करव. अउ सुन रे समें…’ समें ह नेता जी के बात ला काट के फोन ल अंजोरी ला देवत कहिस- ‘येदे अंजोरी घला बोलहूं कहत हे नेता जी’ ‘राम राम नेता जी’ अंजोरी बोले लागिस. ‘..…
Read Moreकविता : जोंधरा
भुईया वाले रे होगे बसुन्दरा । परोसी झोलत हावय जोंधरा ।। लोटा धर आईन मीठ-मीठ गोठियाईन हमरे पीड़हा पानी हमरे ला खाईन कर दीन पतरी मा भोंगरा । घर गय दुवार गय, गय रे खेती खार हमन बनिहार होगेन, उन सेठ साहूकार बांचीस नहीं रे हमर चेंदरा । सुते झन राहव रे अब त जागव चलव संगी जुरमिल हक ला मांगव खेदव रे तपत हॉंवय हुड़का बेंदरा । -राजकमल सिंह राजपूत दर्री – थान खम्हरिया मो. 9981311462
Read Moreकवित्त
हमरेच खेत के वो चना ला उखनवाके हमरेच छानी-मा जी होरा भुँजवात हे अपन महल-मा वो बैठे-बैठे पगुरावै देखो घर-कुरिया हमर गुंगवात हे. जांगर अउ नांगर ला जाने नइ जिनगी-मा सफरी ला छीये नइ दूबराज खात हे असली सुराज के तो मँजा इहि मन पावैं सपना सुराज के हमन ला देखात हे.. अरुण कुमार निगम आदित्य नगर, दुर्ग [छत्तीसगढ़]
Read Moreसरद्धा
बिहिनिया -बिहिनिया जुन्ना पेपर ला लहुटा – पहटा के चांटत – बांचत बिसाल खुरसी म बइठे हे। आजे काल साहर ले आहे गांव म। ज्यादा खेती खार तो नइहे फेर अतेक मरहा तको नइहे। ददा साहर में नौकरी करत रहिस हे। अपनो ह पढ़ई करत -करत इस्कूल म साहेब होगे हे। आना जाना लगे रहीथे। “जय शंकर भोले।” बिसाल दुवारी कोती ला मुड़ के देखथे। चुकचुक ले गोरिया, उंचपुर, छरहरा बदन के मनखे दुवारी म ठाढ़े हे। चक्क सुफेद धोती झकझक ले झोलझोलहा कुरता, देखे म मलमल अस कोवंर। टोटा…
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