आज मोला एक ठन कविता लिखे के मन करत हे। फेर काकर उपर लिखअव ,कइसे लिखअव बड़ असमंजस में हव जी… मोर मन ह असमंजस में हे, बड़ छटपठात हे ।तभे चांटी मन के नाहावन ल देख परेव अउ कविता ह मन ले बाहिर आइस। चांटी मन माटी डोहारत हे भाई… जीव ले जांगर उठावट हे भाई… महिनत करे ल सिखावत हे भाई… हमन छोटे से परानी हरन, तभो ले हमन थिरावन नहीं आज के काम ल, काली बर हमन घुचावन नहीं। महिनत करना हमर करम हे, फल देवाइया ऊपर…
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