जब तोर सुरता आथे

दाई ओ! जब तोर सुरता आथे, तब मोला लागथे- तैं ह मोरे तीर म हस, नई गे हावस दुरिहा। जब-जब हताशी म आंसू ढारथंव ते ह अपन अंचरा के कोर म पोंछ देथस। कहिथस- ”झिन रो बेटा, मे ह तोर करा हंव हतास झिन हो। जा, बने पुलकत-कुलकत काम कर।” तोर आशिर्वाद ल पाके, मोर मन ह जुड़ा जाथे मेह भगवान सोज इही गोहरावत रथौं- ”मोर फेर जनम होही त तोरे कोख म जनम लेवां। सिरतोन कहत हांवा दाई!”  राघवेन्द्र अग्रवाल (खैरझटा ),बलौदाबाजार

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‘भोले के गोले” म छूटत गियान के गोला

ये पुस्तक ह पंचमिझरा साग के सुवाद देथे। ये साग के अपन सुवाद होथे। हमर बारी बखरी के हर फर के मान रखे जाथे, एक-एक, दू-दी ठन फर ल मिंझार के अइसना साग बनाये जाथे के मनखे ह अंगरी चाटत रहि जाथे। इही हाल ये ‘भोले के गोले” के आय। अपन हर विधा ल सकेल के सुशील भोले ह गोला फेंके हावय। बियंग म बियंग के गोला हावय, तव लेख म सुग्घर विचार के संग-संग पीरा के गोला हावय। ‘सुरता” म अपन सुरता के गोला फेंके हावय त कहिनी म…

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वाह रे मनखे के मन

वाह रे मन तोर महिमा अपरम्पार। कभू बुडोथच बीच भंवर म कभू नहकाथच पार। तहीं बांध मुसकी बंधना म भवसागर म देथच डार। घर दुवार दुनिया दारी के लमा डरथच बखरी के नार। कभू गुड के गुरतुर भेला कभू नून डल्ला सक्खार। बन बैपारी करे दुकानी तैं भरे तिजोरी कांटा मार। छल कपट ल छूट म बेंचे चारी चुगरी उपराहा डार। खांटी जिनीस के पिटे ढिंढोरा चना म मिंझेरे बटूरी दार। सत ईमान के लिखना टांगे “बादल ” मारे लबारी मुसकीढार। चोवा राम वर्मा बादल नाम- चोवा राम वर्मा”बादल” पता-…

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लोरी

सुत जबे सुत जबे लल्ला रे सुत जबे न एसे मजा के रे बेटा मोर पलना मा सुत जबे सपना के रानी रे बेटा मोर निदिया में आही न मुन्ना राजा बर भैया रे पलना सजाही न चंदा के पलना रे भैया मोर रेशम के डोरी न टिमटिम चमके रे बेटा मोर सुकवा चंदैनी न गजरा गुंथाये रे लल्ला मोर चम्पा चमेली न पलना झुलाही रे बेटा मोर सखी अऊ सहेली न ऐसे के बेरिया म भैया मोर रानी जब आही न लोरी सुना के रे बेटा मोर तोला सुताही…

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मंतर

कंहा गै वो असीस के भाखा बाबू के ददा नोनी के दाई मोर दुलरवा मोर दुलौरीन बहिनी दीदी भईया भाई। गुडमार्निग साॅरी थैंक्यू बोल रे पप्पू  बोल अपन संस्कृति के छाती ल अंगरेजी बंऊसला म छोल। तब अऊ अब मे कतका जादा अंतर हे आई लभ यू अब सबले भारी मंतर हे। पती ह पतनी ल टूरा ह टूरी ल दाई ह बेटा ल बाप बेटी भूरी ल संझा बिहिनिया इही मंतर म एक दूसर ल भारत हें ” बादल”बईगा मरजादा ल इही मंतर म झारत हे। चोवा राम वर्मा…

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छत्तीसगढ़ म मउत “अमर” हे 

छत्तीसगढ़ म मउत “अमर” हे  कोनो मरत हे त कसूर हमर हे आंखी फूटिस, गरभ फूटिस  उल्टी-दस्त म परान ह छूटिस पीलिया-डायरिया म मरगे झारा-झारा बता भला का जिम्मेदारी हमर हे छत्तीसगढ़ म मउत “अमर” हे  कोनो मरत हे त कसूर हमर हे मै थोड़ेव मांगे रहेव सीएम ले पूछ स्वास्थ बिभाग म होवय चाहे कुछ न डाक्टर, न डाक्टरी, मै सिरिफ मंतरी बता भला येमा का दोस हमर हे छत्तीसगढ़ म मउत “अमर” हे  कोनो मरत हे त कसूर हमर हे मोला न दुख न गम हे मोला का…

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फुदुक-फुदुक भई फुदुक-फुदुक….

(छत्तीसगढ़ी भाषा के इस बालगीत को मैं अपनी मझली बेटी के लिए तब लिखा था, जब वह करीब एक वर्ष की थी, और थोड़ा-बहुत चलने की कोशिश कर रही थी। उस समय भी आज की ही तरह ठंड का आगमन हो चुका था, और वह बिना कपड़ा पहने घर के आंगन में इधर-उधर खेल रही थी….) फुदुक-फुदुक भई फुदुक-फुदुक खेलत हे नोनी फुदुक-फुदुक…. बिन कपड़ा बिन सेटर के जाड़ ल बिजरावत हे। कौड़ा-गोरसी घलो ल, एहर ठेंगा देखावत हे। बिन संसो बिन फिकर के, कुलकत हे ये गुदुक-गुदुक…… कभू गिरथे,…

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अगहन महीना के कहानी

मेकराजाला अउ फेसबुकिया, जम्मो संगवारी मन ल जय -जोहर, राम -राम …। संगवारी हो हमर छत्तीसगढ़ तीज तिहार के राज हे, बारहो महीना कुछु न कुछु तिहार आथे। हमर सियान मन बड़ गुनी, दूरदर्शी ज्ञानी रहिन। धरती मैय्या, बहु -बेटी, सियान, नोनी- बाबू, झाड़-झडऊखा, प्रकृति के जम्मो जिनिस के महत्व ल परख ले रहिन। मनुस के स्वभाव ल घलो पढ़ डले रहिन। घर-परिवार में खुशियाली बने रहए, धरती मैय्या हरियर रहए। उंखर गोठ बात, सभ्यता-संस्कृति अवइया पीढ़ी मन तक पहुँचत रहय। तेखर बर तीज तिहार सुरु करिन, किस्सा-कहनी के माध्यम…

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वंदे मातरम…

घर-घर ले अब सोर सुनाथे वंदे मातरम लइका-लइका अलख जगाथें वंदे मातरम… देश के पुरवाही म घुरगे वंदे मातरम सांस-सांस म आस जगाथे वंदे मातरम रग-रग म तब जोश जगाथे वंदे मातरम…. उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम मिलके गाथें कहूं बिपत आये म सब खांध मिलाथें तब तोर-मोर के भेद भुलाथे वंदे मातरम…. हितवा खातिर मया लुटाथे वंदे मातरम बैरी बर फेर रार मचाथे वंदे मातरम अरे पाक-चीन के छाती दरकाथे वंदे मातरम… सुवा-ददरिया-करमा धुन म वंदे मातरम भोजली अउ गौरा म सुनथन वंदे मातरम तब देश के खातिर चेत जगाथे वंदे मातरम… सुशील…

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बहिरी ह इतरावत हे

जम्मोझन ऐके जगह जुरियाये, बहिरी धरे मुस्कियात फोटू खिंचावत हे, अउ बहिरी मन के बीच, मंजवा मचावत हे। कचरा के होगे हे बकवाय ऐती जाय कि ओती जाय, पुक बरोबर उड़ियावत हे। एइसन तो स्वच्छ्ता अभियान ल आगू बढ़ावत हे, वेक्यूम क्लीनर ह कुड़कुड़ावत हे बहिरी ह इतरावत हे।         वर्षा ठाकुर

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