व्हाट्स एप ग्रुप जनभाषा छत्तीसगढ़ी म भाषा के मानकीकरण के गंभीर बातचीत 02 दिसम्बर ले 07 दिसम्बर 2015 तक चलिस। हम अपन पाठक मन बर ये चरचा ल इंहा प्रकाशित करत हन, आपो मन अपन बिचार देके छत्तीसगढ़ी भाषा के उन्नति म सहयोग देवव। नरेन्द्र वर्मा : मानकीकरण काये ? कोन- कोन भाषाविद् छत्तीसगढ़ी म का-का पुस्तक लिखे हे ? येकर जानकारी होही ह बताहू उही मन ल पढ़ के देखहूँ । अरूण निगम : आदरणीय नरेंद्र भाई, नान्हेंपन ले जउन ला बोलत अउ सुनत आय हौं मोर बर यही…
Read MoreYear: 2015
लक्ष्मण मस्तुरिया के खण्ड काव्य : सोनाखान के आगी
लिखे-पढ़े के सुख कोनो भी देस-राज के तरक्की के मूल म भासा. संस्कृति अउ जनम भुंई के महात्तम माने जाथे। एकर बिना कोनो भी किसम के विकास प्रगति बढ़ोत्तरी अकारथ होथे। छत्तीसगढ़ राज नई बनेरिस वो समे बीर नरायेन सिंह के ए बीरगाथा सुनके नौजवान मन के मन म भारी जोस अउ आत्म गौरव के भाव जागतरिस, कवितापाठ के बीच बीच म जय छत्तीसगढ़ के नारा लगावंय। छत्तीसगढ़ राज बने के बाद एकर महत्व बाढ़गे हे, नवा पीढी ल अपन पुरखा मन के त्याग बलिदान अउ जोम के जानकारी होना…
Read Moreछत्तीसगढ़ी उपन्यास : जुराव
कामेश्वर पाण्डेय ‘कुस’ का बड़बड़ाइस, भीड़ के हल्ला-गुल्ला मं समझ मं नइ आइस। नवटपा के ओहरत सुरुज हर खिड़की मं ले गोंड़ जी के डेरी कनपटी लऽ तमतमावऽथे। भीड़ के मारे सीट मं बइठइया सवारी घलउ मन के जी हलकान हे। देंव हर ओनहा-कपड़ा के भीतर उसनाए कस लगऽथे। ऊपर ले पंखो हर गर्राटेदार तफर्रा लऽ फेंकऽथे। मनखे के मुँह बार-बार सुखावऽथे। कतको झन के दिमाग तो टन्न-टन्न करऽथे। डब्बा हर कोचकिच ले भर गै हे। सीट मं तो खूब करके रिजर्वेसन वाला मद्रासीच मन बइठे हें। छत्तीसगढिय़ा मन बर तमिल, तेलगु, कन्नड़,…
Read Moreतॅुंहर जाए ले गिंयॉं
तॅुंहर जाए ले गिंयॉं श्री कामेश्वर पांडेय जी द्वारा लिखित आधुनिक छत्तीसगढ़ की स्थिति का जीवंत चित्रण तो है ही, संघर्ष की राह तलाशते आम आदमी की अस्मिता के अन्वेषण की आधारशिला भी है। इसे छत्तीसगढ़ की अस्मिता पर लिखित और ‘हीरू के कहिनी’ के बाद प्रस्तुत 21वीँ सदी का श्रेष्ठ औपन्यासिक साहित्य भी कहा जा सकता है। छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र श्री कामेश्वर पांडे पिछले 10 वर्षोँ से लगातार श्रम और शोध के द्वारा इसे परिष्कृत—परिमार्जित करते हुए अब प्रकाशन के लिए तैयार हुए है। उपन्यास मे जहाँ छत्तीसगढ़ी…
Read Moreमोर डांड तो छोटे तभे होही संगी, जब आप बड़का डांड खींचहू
संगवारी हो, आपमन जानत हवव के हमर भाषा के व्याकरण हिन्दी भाषा के व्याकरण ले आघू लिखा गए रहिस। ये बात ह सिद्ध करथे के हमर भाषा अउ ओखर साहित्य तइहा ले मान पावत हे अउ समृद्ध हे। अब तो हमर भाषा राज भाषा बन गए हे अउ अब हमर राज काज के काम छत्तीसगढ़ी भाषा म घलव होही। आप मन ये उदीम करव के अब ले सरकारी चिठ्ठी-पतरी छत्तीसगढ़ी भाषा म लिखव। ये उदीम ले सरकार के कारिंदा मन चिठ्ठी के जवाब देहे खातिर छत्तीसगढ़ी भाषा ल पढ़हिं-समझहीं तो।…
Read Moreसंपादकीय : मोर डांड तो छोटे तभे होही संगी, जब आप बड़का डांड खींचहू
संगी हो, थोकन गुनव, फेर गोठियाहूं..
Read Moreसरला शर्मा के उपन्यास : माटी के मितान
सरला शर्मा का यह छत्तीसगढ़ी उपन्यास अपनी विशिष्ट शैली के कारण पठनीय है। यह उपन्यास यात्रा- संस्मरण का पुट लिए हुए सास्कृतिक-बोध के लिए आधार-सामग्री प्रदान करता है। छतीसगढ़ की सास्कृतिक चेतना का स्वर उपन्यास के पात्रों, स्थलों और उसकी भाषा में गूंजता दिखाई देता है। इस उपन्यास में शासन के स्तर की अनेक योजनाओं का प्रचार-पसार है तो दूसरी ओर गाँवों के समग्र विकास का सपना भी है। इस सपने को हकीकत में बदलने की कोशिश की कुछ झलक भी इसमे प्रदर्शित है। छत्तीसगढ़ की जांज़गिरी मिठास इस उपन्यास…
Read Moreटिकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’ के छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह : ठूठी बाहरी
भूमिका : टीकेश्वर सिन्हा के कविता संकलन “ठूठी बाहरी ” ल पढे कं वाद सोचें बर परिस आखिर ठूठी बाहरी काबर? बाहरी ह ठूठी कब होथे? जब बाहरी ह घर दूवारी के कचरा ल बाहर के सकेला करथे। ओखर वाद ओला घर गोसइन ह र्फकथे। वइसनेने ये टीकेश्वर के कलम ह बाहरी बनके घर द्वार, गाँव, त्तरिया, खेतखार, समाज सब ल बाहर के साफ करे हावय। … सुधा वर्मा.
Read Moreकाबर बेटी मार दे जाथे
कतको सबा,लता,तीजन ह मउत के घाट उतार दे जाथे देखन घलो नइ पावय दुनिया,गरभे म उनला मार दे जाथे बेटा-बेटी ल एक बरोबर नइ समझय जालिम दुनिया ह बेटा पाए के साध म काबर बेटी कुआँ म डार दे जाथे? काबर बेटी मार दे जाथे? नानपनले भेद सइथे बेटा ल ‘बैट’ एला ‘बाहरी’मिलथे काम-बुता म हाथ बटाथे तभो ले बेटी आघू रहिथे नाव बढ़ाथे दाई-ददा के अपन मेहनत ले बपरी मन तभो ‘हीनता’ के दलदल म काबर इहि डार दे जाथे? काबर बेटी मार दे जाथे? दूनो कुल के मान…
Read Moreओहा मनखे नोहय
जेन ह दुख म रोवय नइ मया के फसल बोवय नइ मुड़ ल कभू नवोवय नइ मन के मइल ल धोवय नइ ओहा मनखे नोहय जी। जेन ह जीव के लेवइया ए भाई भाई ल लड़वइया ए डहर म कांटा बोवइया ए गरीब के घर उजरइया ए ओहा मनखे नोहय जी। जेन ह रोवत रोवत मरे हे भाग ल अगोरत खरे हे बेमानी के दऊलत धरे हे जलन के भाव ले भरे हे ओहा मनखे नोहय जी। जेन चारी चुगली करत हे दाई ददा के घेंच धरत हे पइया के…
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