Month: April 2015
मैं अक्खड़ देहाती अंव
कोनजनि मनखे आवस कि राक्षत रे काटजू
कई पईत खाय हव अउ आघू घलो खाहुच्चे कहिथस गऊ माँस प्रोटीन आवय एमा परतिबंध गलत हे कहिथस कोंनजनि मनखे आवस कि राक्षत रे मार्कंडेय काटजू का तै भुला गे हस तय कोन देश म रहिथस? सुन एहा वो देश ए जिहा कृष्णा गउ सेवा बर आय हे बृज म जेखर रक्षा बर गोवर्धन ल अंगरी म उठाय हे जेखर गोबर ल परसाद अउ गऊ मूत्र ल अमरीत केहे गेहे अइसन गउ माता ल तै नीच हा तरकारी समजथस? अउ सुन ,जेन गऊ के छाव परे म कतको रोग मिटा…
Read Moreजोहत हाबन गा अउ झन भुलाबे
जोहत हाबन गा नई चाहिबे तभो ले, ये सरकार के बोझ ल ढोए बर पड़थे I अऊ ओकर गलती के सजा, हमर सेना ल भुगते ले पड़थे I न्याय होही कईके जोहत रहिबे, अऊ अन्याय ह सफल होथे I सबर के बाण टूटथे त, माटी ह मोर लहुलुहान होथे I ये कईसन राज काज हे भाई, गूंगा ल भैरा से लड़ाथे I अऊ दुनो कोई अन्धाधुन गोली बरसाथे I मेहा जोहत हौ संगवारी, कभू तो शांत होही दुवारी I ऐ लुका छिपी के खेल में, कब रुकही बहत खून के…
Read Moreभुईया दाई करत हे गोहार
भुईया दाई करत हे गोहार भुईया दाई करत हे गोहार छोड़ के झन जा भैईया शहर के द्वार ये नदिया-नरवा, ये रूखराई तोला पुकारत हे मोर भाई चिरई-चिरबुन मया के बोली बोलत हे तुरह जवई जा देख जिहाँ खऊलत हे गाँव के बईला-भैईसा, गया-गरूवामन मया के आसु रोवत हे हमर जतन कराईया हा शहर मा जाके बसत हे भुईया दाई ला छोड़के मनखे हा शहर डहर रेगत हे आज के लईकामन खेती-खार ल छोड़त हे पढ़-लिख के शहरिया बाबू बने के सपना देखत हे गाँव ला छोड़ शहर मा जाके…
Read Moreछत्तीसगढ़ी लोककथा : राजा के मया
एकठन राज मा एक राजा के बने-बने राजकाज चलत रहय। तइसने मा राजा ला एक मिट्ठू ले मया हो जाथे। राजा मिट्ठू बर बढ़िया सोना-चांदी रत्न ले गढ़े fपंजरा बनवाइस अऊ मिट्ठू ला पिंजरा मा धांध दिस। राजा मिट्ठू के मया मा रोज, दिन मा तीन बार मिट्ठू ला देखे बर आय अऊ अपन हाथ ले बिहिनिया, संझा खाना खवाय। राजा ला मिट्ठू बर अतेक मया करत देख के राज दरबारी अऊ परजा मन गुनें ला लागय कि अइसने मा राजा के काम-काज कइसे चलही ? फेर राजा ला कोन…
Read Moreरोवत हावय महतारी
सहीद के अपमान के एक ठिन अउ घटना …अंतस बड़ हिलोर मारत हे …करेजा म बड़ पीरा…लहू उबाल मारत हे…कोनो के बेटो, कोनो के भाई, कोनो के जोही, कोनो के मया…सहीद होगे….सहीद होगे मोर संगवारी…मोर संगवारी ल समरपित ये गीत…. रोवत हावय महतारी… रोवत हावय महतारी रोवत अंगना-दुवारी हे तोर बिन अब का हे जीना तोर बिन अब का हे जीना सुन्ना मोर फूलवारी हे सुन्ना मोर फूलवारी हे रोवत हावय महतारी…… बहिनी के राखी रोवय रोवय मया के पाखी जोही बिन जिना कइसे जइसे दिया बिन बाती जइसे दिया…
Read Moreमटमटहा टूरा
पढ़ई लिखई में ठिकाना नइहे गली में मटमटावत हे हार्न ल बजा बजा के फटफटी ल कुदावत हे। घेरी बेरी दरपन देख के चुंदी ल संवारत हे आनी बानी के किरीम लगा के चेहरा ल चमकावत हे। सूट बूट पहिन के निकले चसमा ल लगावत हे मुंहू में गुटका दबाके सिगरेट के धुंवा उड़ावत हे। मोबाइल ल कान में लगाके फुसुर फुसुर गोठियावत हे फेसबुक अऊ वाटसप चलाके मने मन मुस्कावत हे। संगी साथी संग घूम घूमके आदत ल बिगाड़त हे फोकट म खाय ल मिलत त बाप के कमई…
Read Moreमोर गाँव के किसान
मोर गाँव के किसान भईयाँ बुता-बनिहारी के करईयाँ अपन बनिहारी के खवईयाँ गाँव घर के रहईयाँ मोर गाँव के किसान भईयाँ। बनिहारी करके फसल उगईयाँ दुनियाँ के पालन करईयाँ बईला तोर मितान भईयाँ धान,गेहूँ, चना, उन्हारी के खेती करईयाँ मोर गाँव के किसान भईयाँ। हमर छत्तीसगढ़ महान हमर छत्तीसगढ़ हवय महान जिहाँ देवी देवता हवय विराजमान साधु सन्यासी सबो के हवय मान हमर छत्तीसगढ़ हवय महान। जिहाँ किसान बेटा के हवय पहचान खेती करईयाँ गाँव के किसान जिहाँ हवय तिहार के अलग पहचान हर तिहार के अलग-अलग मिष्ठान हमर छत्तीसगढ़…
Read Moreमया के मुंदरी
दिरिस्य:- 1 ठान:- दसरथ के महल दसरथ:- बसीगुरू मोला देखके तुंहला कुछु सवनसे नीए। बसीगुरू:- काय कहत हस तेला नी समझत हावौं राजा। दसरथ:- मैंहर बुढ़वा होत जात हावौं, आभी ले मोर लइका नी होइस हावय, मोर राजगद्दी ला कोन संभालही। बसीगुरू:- एला मैंहर बड़ दिन ले सोचत रेहें, सांता रिहिस तेला घलोक सिरिंगी करा बिहाव कर देवा, कहूं ओहर रइथिस ता राज ला कर लेथिस। दसरथ:- मैंहर मोर राज ला नोनी ला दिंहा, मोला बाबू चाही बसीगुरू! चाहे कइसनो करके मिले, बाबूमन राजगद्दी संभालथे ता मजा आथे बसीगुरू महाराज।…
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