एक दिन कुम्हार ह माटी ल सानके चिलम बनावत रहिसे। चिलम बनावत-बनावत जाने कुम्हार ल काय सुझिस कि ओहा ओ चिलम ल मिझार दिस अउ ओ माटी ल सानके चाक ऊपर चढ़ा के मरकी बनाय लागिस। चाक ऊपर माटी ल चघाएच रिहिसे कि माटी बोले लागिस-“मेहा माटी बनके धन-धन होगेव कुम्हार बाबू तोर जय होवय”। कुम्हार माटी ल पूछिस कि तय कइसे धन-धन होगेव कहिथस वो माटी? ता माटी कहिस कि “मोला चिलम कहुं बनाये रहितेस कुम्हार बाबू त खुद जरतेस अउ दूसर के छाती ल घलो जरोतेस। अब तय…
Read MoreMonth: May 2015
संपादकीय : करिया तसमा म आंखी के उतियईल अउ उल्टा लटके के डर ले मुक्ति
करिया तस्मा पहिर के प्रधानमंत्री के सुवागत करई के किस्सा चार दिन मीडिया म छाईस। अपन डहर ले बुद्धिजीवी मन ओखर उपर अपन प्रतिक्रया घलो दीन। कोनो करिया तस्मा के संग खड़े रहिन त कोनों सरकार के कांसड़ा तिरई ल बने कहिन। छत्तीसगढ़ म तस्मा खपई ल, टेस मारे के उदीम कहे जाथे, काबर के छत्तीसगढ़ बर ये सहरी संस्कृति के लक्छन आए। फेर गांव अब सहर लहुटत हवय, अइसन समें म अब गावों म तस्मा खापे मनखे के दरसन होवत हे। ते पाके अब जमो तस्मा वाले मन के…
Read Moreलोक भाखा के सामरथ : छत्तीासगढ़ी म प्रेमचंद के कहिनी
हिन्दी कहिनी के दुनियां म प्रेमचंद ल ‘कथा सम्राट’ कहे जाथे, हम सब प्रेमचंद ल ओखर कहिनी ले जानथन। पंच परमेश्विर, बूढ़ी काकी, नमक के दरोगा जइसे कइयोन कहिनी मन हमला जीवन म सत के संस्कादर अउ समाज ल समझे के विवेक देहे हे। हमर अंतस के कोनो कोना म प्रेमचंद के कहिनी के पात्र मन आज तक ले जीयत हे। उंखर सुरता भले धुंधरा गए होही फेर जब भी प्रेमचंद के कहिनी ल दूबारा पढ़थन त उमन प्रेचंद के सबद संग उठ खड़े होथें। विचार म, सोंच म, जे…
Read Moreबिहाव म खवाव बोरे बासी
हमर छत्तीसगढ़ म किसम किसम के खाई खजाना भरे हे। तस्मई, बरा, भजिया, चिवरा, उखरा, सोंहारी, खुरमी, ठेठरी, अउ नई जानन कतका कन बियंजन हावे। फेर किसान मन अउ छत्तीसगढ़ के मितान मन ल बोरे बासी ह जादा मिठाथे। मोर छत्तीसगढ़ के संगवारीमन ल एक कति काजू,बदाम, पिसता, अखरोट, इटली, दोसा दे देवव अउ दूसर कति एक बटकी म बोरे बासी दे देवव ओमन बोरे बासी ल खाही। काबर, बोरे बासी म बिटामिन के खजाना हे। जेहर बोरे बासी खाथे ओला बिटामिन के टानिक बूढ़ात ले लेहे बर नई परय।…
Read Moreलोक सुराज के परचार म दिखिस छत्तीसगढ़ी भासा
छत्तीसगढ़ी ल सिरिफ प्रचार-प्रसार के भाखा मानथे सरकार, काम-काज अउ पढ़ई-लिखई के नहीं! लोक सुराज के आरो ल छत्तीसगढ़ी भासा म सून अउ पढ़के मन गदगद होगे। चउक-चउक म बड़े-बड़े पोस्टर अउ पोस्टर म छत्तीसगढ़ी के हाना। रेडियो अउ टीवी म छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत। छत्तीसगढ़िया बर सबले बड़े खुसी के बात ये रहिसे के सरकार के योजना के आरो छत्तीसगढ़ी म दे जावत रिहिस हावय। फेर हमला खुसी ले जादा दुख होइसे के सरकार ह छत्तीसगढ़ी ल काम- काज अउ पढ़ई-लिखई के भासा बनाये के बजाय प्रचार-प्रसार के भासा समझत हाबे।…
Read Moreदिया बन के बर जतेंव
दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥ अंधियारी हा गहरावथे , मनखे ला डरूहावथे । चोरहा ला उकसावथे , एकड़ा ला रोवावथे ॥ बुराई संग जूझके , अंगना म तोर मर जतेंव । दाई ! तोर डेरौठी म दिया बन के बर जतेंव ॥ गरीबी हमर हट जतिस , भेदभाव गड्ढा पट जतिस । जम्मो गांव बस जतिस , सहर सुघ्घर सज जतिस ॥ इंखर सेवा करके , महूं घला तर जतेंव । दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥…
Read Moreवृत्तांत-9 मोला तो बस, येकरेच अगोरा हे
टूर- बुर गुठियावत हे।घासी के आंखी म नींद नइ आवा ते।काक सती ? तेला, सफुरा ह ,अपन दादी ल बतावत हे। बाहरा डोली म, होय घटना ल सुनावत हे। मछरी ह ,तो कब के मर गे हे ।अठुरिया के ह, पंदरही होगे हे।अंधियारी पाख ह पहा गे हे, अंजोरी लग गे हे ।फेर दादी ! तोर नाती दमांद ह ,अभीच ल फडफडावत हे।ओ…..! सुघ्घर मछरी के खेलई ह, तउरई ह, फडफडई ह , तडफ-तडफ के मरई ह, ओकर नजरे -नजर म झूलत हे ।अब तो मछरी ह, का ? तोरो…
Read Moreबजारवाद के नाला म झन बोहावव
मिरिग मरिचका ल पानी समझके झन ललावव, अंधरा बन ‘बजारवाद’ के नाला म झन बोहावव. नई होवय गोरिया चाहे कतको चुपर फेरन लबली सब ल बतावव, 3 दिन म चंदवा के चुंदी जागही, रेटहा मोटाही झन पतियावव, अरबो रूपिया लूटत हे झूठ अउ भरम के कारोबार म, एखर चक्कर म पछीना के कमइ ल झन गंवावव, करिया-गोरिया जउन मिले हे ओमा संतोस करेबर सीखव, कखरो चोला के मजाक बना भगवान के मजाक झन उड़ावव, जउन चमकथे तउन जम्मो हीरा नै होवय ये बात ल समझव, बतर कीरा कस बजारवाद के…
Read Moreचल रे चल संगी चल
चल रे चल संगी चल बेरा के संगे—संग चल। ऐतेक अलाल झन बन, बेरा के संगे—संग चल। नई तो बेरा ला गवा देबे, ते जवाना ले पिछवा जाबे। बुता हा बाढ़ जाही, बेरा हा अपन रद्दा निकल जाही। बाद में ते पछताबे, अपन संगी ले दुरिहा जाबे। जेन बेरा के संग चले, ओला दुनिया पसंद करे। तोर अलाली ले दिन पहागे, देख काम बुता हा कतका बाढ़गे। बेरा के संगे—संग बुता ला कर ले, बेरा बचा के दुसर का मा भीड़ ले। बेरा के संगे—संग चलबे, त दुनिया ला पाछु…
Read Moreछत्तीसगढ़ी के पीरा
गवां गेंहव अपने घर म बनगे मंय जिगयासा हौं खोजत हौं अपन आप ल मंय छत्तीसगढ़ी भासा औं। सहर म पूछारी नइ हे गांव के मन भगवारत हे कोन बचाही मोला संगी अंगरेजी अडंगा डारत हे कहुं कति ठऊर नइ हे ढुलत जुआ के पासा औं खोजत हौं अपन आप ल मंय छत्तीसगढ़ी भासा औं। अधिकारी सरमावत हे त चपरासी ह डरावत हे बदल गेहे दुनिया ह अब कोनो मोला नइ भावत हे धरमदास के गुरतुर बानी सुंदरलाल के गाथा औं खोजत हौं अपन आप ल मंय छत्तीसगढ़ी भासा औं।…
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