भुंइया के भगवान

मोर छत्तीसगढ़ के किसान जेला कहिथे भुंइया के भगवान | भूख पियास ल सहिके संगी उपजावत हे धान | बड़े बिहनिया सुत उठ के नांगर धरके जाथे | रगड़ा टूटत ले काम करके संझा बेरा घर आथे | खून पसीना एक करथे तब मिलथे एक मूठा धान | मोर छत्तीसगढ़ के किसान जेला कहिथे भुंइया के भगवान | छिटका कुरिया घर हाबे अऊ पहिनथे लंगोटी | आंखी कान खुसर गेहे चटक गेहे बोड्डी | करजा हाबे उपर ले बेचा गेहे गहना सुता | साहूकार घर में आ आके बनावत हे…

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अक्षर दीप जलाबोन

अक्षर दीप जलाबोन संगी निरक्षरता के अंधियार मिटाबोन ज्ञान के मशाल धरके गली गांव तक जाबोन सब कोई पढ़बोन अऊ पढ़ाबोन सब कोई होही साक्षर नइ राहे तब ये जग म भंइस बराबर काला अक्षर नोनी पढ़ही बाबू पढ़ही पढ़ही बबलू के दाई डोकरा पढ़ही डोकरी पढ़ही अऊ पढ़ही मनटोरा माई आगे हवे चैत महीना जंवारा देखे ल जाबोन मां दुर्गा ह खुश होही जब ज्ञान के दीप जलाबोन | a href=”http://archive.gurturgoth.com/wp-content/uploads/2014/10/GG-Mini-Logo.jpg”> रचनाकार प्रिया देवांगन पंडरिया (कवर्धा) मो.- 9993243141

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छत्तीसगढ़ी

हमर बोली छत्तीसगढ़ी जइसे सोन्ना चांदी के मिंझरा , सुघ्घर लरी । गोठ कतेक गुरतुर हे ये ला जानथें परदेसी । ये बोली कस , बोली नइये – मान गे हें बिदेसी ॥ गोठियाय म , त लागथेच – सुने म घला सुहाथे , देवरिहा फुलझरी ॥ मया पलपला जथे सुन के ये दे बोली । अघा जथे जी हा – भर जथे दिल के झोली ॥ मन हरिया जथे धान बरोबर – जइसे , पा के सावन के झड़ी । अऊ बोली मन डारा खांधा – छत्तीसगढ़ी , रूख…

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गीत-“कहां मनखें गंवागे” (रोला छंद)

दिखय ना कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। दिखय ना कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। जंगल झाड़ी खार, डोंगरी मा जा जाके । सहर सहर हर गांव, गीत ला गा गाके ।। इहां उहां खोज, मुड़ी हा मोर पिरागे । खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। रद्दा म मिलय जेन, तीर ओखर जा जा के । करेंव मैं फरियाद, आंसु ला ढरा ढरा के । जेला मैं पूछेंव, ओखरे मतिच हरागे । खोजव संगी…

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सबद के धार : पीरा ल कईसे बतावंव संगी

छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य म अब साहित्‍य के जमो विधा उपर रचना रचे जात हवय. ये बात हमर भाखा के समृद्धि बर बहुत सुघ्‍घर आरो आय. गद्य जइसे पद्य म घलव कविता, गीत, हाईकू के संगें संग उर्दू साहित्‍य के विधा गजल तको ल हमर सामरथ साहित्‍यकार मन छत्‍तीसगढ़ी म रचत हांवय. अइसनेहे साहित्‍यकार जितेन्‍द्र ‘सुकुमार’ जी के छत्‍तीसगढ़ी गजल संग्रह ‘पीरा ल कईसे बतावंव संगी’ पढ़े ल मिलिस. गजल के कसौटी म पद्य कइसे कसाथे अउ काला असल म गजल कहे जाथे ये बात बर मैं जादा जानकार नइ हंव. फेर…

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दाई

जिनगी के पहिली भाखा, सबले सजोर साखा आवस दाई| अंधियार म उजास, जेठ म जुड़ हवा के अभास आवस दाई| बंजर म उबजैया बीज, हर नजर ले बचैया ताबीज आवस दाई| ममता के ऊंच अकास, लईका के अटूट  बिश्वास आवस दाई| सागर कस बिशाल, चन्दन,चाऊर,रोली,गुलाल आवस दाई| सावन के पहली पानी, त्याग अउ ममता के कहिनी आवस दाई| तीरथ कस पावन, चन्दन-धुप कस ममहावन आवस दाई| गीता के सीख, कुरान के आयत सरीख आवस दाई| जाड़ के कुनकुन घाम, बिहनिया के राम-राम आवस दाई| दया के भंडार, असीस अउ दुआ…

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वृत्तांत- (2) पंग पंगावत हे रथिया : भुवनदास कोशरिया

पंग पंगावत हे, रथिया के चंउथा पहर ह पहावत हे ।सुकवा उगे हे, खालहे खलस गे हे । चिर ई चिरगुन मन चिव चांव ,चिंव चांव करत हे। कुकरा ह बास डरे हे। ये संत महुरत के बेरा ये । ये बेरा म योगी जोगी ,ज्ञानी ध्यानी ,विज्ञानी सियानी अऊ जाग जथे कर इया खेती किसानी । जे ह ये बेरा म, जाग के अपन कछु पाये के उदिम करथे ओ ह अपन मंतब म जरूर पूरा होथे । घासी म ज्ञानी हे , ध्यानी हे , मानवता के ऊपर…

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वृत्तांत- (3) कोई उही म दहावत हे, कोई इही म भंजावत हे : भुवनदास कोशरिया

कुंवार लग गेहे ।सब धान के बाली ह, छर छरा गे है ।बरखा रानी के बिदाई होगे हे ।जगा- जगा काशी के फूल ह, फूल गे हे ।मेढ ह ,भक- भक ल बुढवा के पाके चुंदी बरोबर दिखत हे।ऊपर खेत म दर्रा फाट गे हे ।धान ल, ठन ठन ल पाके बर एक सरवर पानी के अउ असरइया हे ।अब का गिरही ? रथिया तो छिटिक चंदैनी अंजोर रीहिस हे ।बदली ह छट गे हे ।एक पिछौरी के जाड शुरू होगे हे ।शीत बरसे लग गेहे ।रुस- रुस, रुस -रूस…

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वृत्तांत- (4) न गांव मांगिस ,न ठांव मांगिस : भुवनदास कोशरिया

अठुरिहा ह पहागे हे।जब ले बाहरा डोली म होय ध्यान ह,घासी के मूड म माढे हे तब ले अचकहा रोज ओकर नींद ह उचक जथे ।कभु सोपा परत , कभु अधरतिया , त कभु पहाती ।ताहन नींद ह न्इच पडय ।समुच्चा रथिया ह आंखीच म पहाथे ।टकटकी आजथे …… ये सोच म कि “ओ दिन क इसे बाहरा डोली म तउरत ,खेलत मछरी ह पानी के सिराते ,फड फडा य लग गे,तडफे लग गे ,आखिर म हालय न डोलय ,चित होगे ।का चीज रहिस कि मछरी ह खेलत रहिस ,अब…

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जइसे उनखर दिन फिरिस

आज के बैवस्था ल देख ले गुस्साये मय बडबड़ात रहेव तभे मुस्टी आगे, कइथे का होगे म? कुछु नई मुस्टी, सासन, परसासन के बवस्था ल देख के गुस्ता आत हे। बात करत बीच म रोक के मुस्टी ह मोला कइथे, तय ह गुस्सा झन हो बल्कि सान्तचीत हो के मोर बात ल सुन। मय ह एक किस्सा सुनात हव। एक राजा रहीस । राजा के चार लईका रहीस। रानी कई ठीक रहीस। पर बड़की रानी ह अन्य सबों रानी के लईका मन ल जहर दे के मार दे रहीस। अउ…

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