येदे गरमी के दिन आगे चारो कुती घाम हा बाड़ गे घाम के झाँझ मा तन हा लेसागे तन ले पसीना पानी कस चुचवागे रूख-राई के छैईहा सिरागे येदे गरमी के दिन आगे। पानी के बिना काम नी चले चारो कुती पानी के तगई छागे तरिया-डबरी, नरवा-डोगरा जम्मो सुखागे गरमी के घाम ला देख के जी थरागे येदे गरमी के दिन आगे। चिरई-चिरबुन, जानवरमन पानी बर तरसे चिराई-चिरबुन, जानवरमन छैइहा खोजे पानी के तिर मा जाके बसेरा डाले चिरई-चिरबुन, जानवरमन छैईहा मा आके बैठे माझनिया के घाम ला कोनो नई…
Read MoreYear: 2015
पद्मश्री डॉ.सुरेन्द्र दुबे के वेबसाईट
कविसम्मेलन मंच के चर्चित अंतर्राष्ट्रीय कवि पद्मश्री डॉ.सुरेन्द्र दुबे के वेबसाईट म उंखर कवि सम्मेलन के नवा वीडियो संघारे गए हे। संगी मन अब पद्मश्री डॉ.सुरेन्द्र दुबे जी के वीडियो उंखर वेब साईट ले देख सकत हावंय। उंखर वेब साईट के पता हे – http://www.surendradubehasyakavi.com
Read Moreसमारू के दु मितान कालू-लालू
ये कहानी हा हमर छत्तीसगढ़ के किसान अऊ ओकर मितान बईला के हरय। कईसे येक किसान हा अपन मितान ला जतन के रखथे त ओकर मितान बईला हा ओकर कईसे साथ देथे। ऐकठन गाँव मा बड़ गरिबहा किसान रहाय ओ किसान के नाम रहय समारू। समारू ह बड़ गरीब रहय बेचारा हा बनी करके खाय कमावय। समारू घर दुठीन गाय रहय दोनो गाय हा गाभीन तको रहय। समारू हा अपन लक्ष्मी के सेवा जतन बड़ सुघ्घर करय। समारू हा अपन कोनो गरवा ला कभू नी बाधय हमेशा ओला कोठा मा…
Read Moreसियान मन के सीख- चुप बरोबर सुख नहीं
सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! चुप बरोबर सुख नही रे। फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नइ पाएन। आज के जमाना म मनखे मन बोले बर अतका ललाइत रहिथे के उनला पते नइ चलय के उमन बोलत-बोलत का बोल डारिन। जउन ला देखौ तउन गरजे बर तियार रहिथे काबर के उनला ए लगथे के मय बोल-बोल के सारी दुनिया ला जीत लेहूॅ। मोरे चलती रही अउ मोर आगू म फेर कोनो के बोले…
Read Moreगांव होवय के देश सबो के आय
मनखे जनम जात एक ठन सामाजिक प्राणी आवय । ऐखर गुजारा चार झन के बीचे मा हो सकथे । एक्केला मा दूये परकार के मनखे रहि सकथे एक तन मन ले सच्चा तपस्वी अउ दूसर मा बइहा भूतहा जेखर मानसिक संतुलन डोल गे हे । सामाजिक प्राणी के सबले छोटे इकाई घर परिवार होथे, जिहां जम्मोझन जुर मिल के एक दूसर के तन मन ले संग देथें अपने स्वार्थ भर ला नई देखंय कहू कोनो एको झन अपन स्वार्थ ला अपन अहम ला जादा महत्व दे लगिन ता ओ परिवार…
Read Moreविजेंद्र कुमार वर्मा के कविता
नेता के गोठ नेता ह अड़जंग भोगाय हे, घुरवा कस बेशरम छतराय हे I किसान मन के लहू चूस के, येदे कस के बौराय हे I देख के मजदूर अऊ किसान ह, मरत ले मुरझाय हे I उज्जर उज्जर कुरता पहिन के, दाग ल घलो छुपाय हे I नेता ह अड़जंग भोगाय हे I नेतागिरी अऊ दादागिरी करके, लोगन ल गोड़ तरी दबाय हे I जात अऊ पात में बाटके, भाई ल भाई से लड़ाय हे I चापलूसी करत बाबू अफसर ह, गजब के पोट्ठाय हे I अब तो कुछ…
Read Moreछत्तीसगढ़ी तांका
1. का होगे तोला मन लइ लागे हे काम बुता मा कोनो चोरा ले हे का मया देखा के। 2. मया के फांदा मैं हर फसे हंव आंखी ला खोले निंद मा सुते हंव देखत ओला । 3. तोर आंखी मा उतर के देखेंव थाह नइ हे डूबत हंव ओमा मया के मारे । 4. दिल हरागे मया मा सना के गा बेजान देह गारी देवा के गल्ला का मतलब । रमेशकुमार सिंह चौहान मिश्रापारा नवागढ, जिला-बेमेतरा मो 9977069545
Read Moreदूध म दनगारा परगे…
(पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी की हिन्दी कविता *दूध में दरार पड़ गई* का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद : सुशील भोले) लहू कइसे सादा होगे भेद म अभेद खो गे बंटगें शहीद, गीत कटगे करेजा म कटार धंसगे दूध म दनगारा परगे… मयारू माटी म येला पढ़व इंहा..
Read Moreराजभासा छत्तीसगढ़ी के फैइलाव बर कोसिस
बर अऊ पीपर के छोटकन बीजा म बड़का बर, अऊ पीपर रूख तियार हाे जाथे वइसने बोलियों हर आय। बोली एक बेरा म छोटकन जघा म बोले जाथे अऊ बोलईया मइनखे मन के संख्या ह बाढ़त चले जाथे, अऊ धीरे-धीरे भासा के रूप ले लेथे। हिन्दी के महतारी अपभ्रंस हर आय वइसनहे छत्तीसगढ़ी के महतारी अर्द्ध मागधी अपभ्रंस आय जेला बाद म पूरवी हिंदी घलो कहे गईस। छत्तीसगढ़ी के जनम 1000 ई. म अर्द्धमागधी अपभ्रंस ले हाेइस तब ले छत्तीसगढ़ी बोले जावत हावय। अवधी अऊ बघेली ह छत्तीसगढ़ी के बहिनी…
Read Moreकिसानी के गीत
आवा आवा रे आवा ना, किसान अऊ बनिहार मन आवा ना। आगे आगे रे आगे ना, बारीश के दिन बादर आगे ना। चलव चलव रे चलव ना, खेती अऊ खार चलव ना। आवा आवा रे आवा ना, किसान अऊ बनिहार मन आवा ना। धरव-धरव रे धरव ना, नागर अऊ बैइला ला धरव ना। बोवव-बोवव रे बोवव ना, धान गेहूँ ला बोवव ना, आवा आवा रे आवा ना किसान अऊ बनिहार मन आवा ना। निदव-निदव रे निदव ना, बन अऊ कचरा ला निदव ना। डालव डालव रे डालव ना खातू अऊ…
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