नारी अऊ पुरूस दो परमुख स्तंभ

मनखे रूप म बंदनीय हावय इकर कोमल भाव मातृत्व म सागर के हिलोर हे, त कर्तव्य म हिमालय परबत के समान हावय एक दुसर के पुरक हावय, नारी के अंर्तमन के थाह नई हावय ईसवर के देहे बरदान हे नारी, ऐमा सिरजन के अदभुत छमता होथे, पीरा, व्यथा संघर्स विलछनता, सहनसीलता, परिवार बर समरपन सब्बो ल एकजुट करके चलना, हर बिपरीत परीस्थिती म चट्टान के जइसे अडिग रहना, नारी के जनमजात गुन हावय नारी यदि ईसवरीय रूप म पुजित हे त मनखे रूप म बंदनीय हावय इकर कोमल भाव मातृत्व…

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ऊँचई

(पूर्व प्रधानमंत्री, भारतरत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता *ऊँचाई* का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद) ऊँच पहार म पेंड़ नइ जामय नार नइ लामय न कांदी-कुसा बाढय़। जमथे त सिरिफ बरफ जेन कफन कस सादा अउ मुरदा कस जुड़ होथे हांसत-खुखुलावत नरवा जेकर रूप धरे अपन भाग ऊपर बूंद-बूंद रोथे। अइसन ऊँचई जेकर पारस पानी ल पखरा कर दय अइसन ऊँचई जेकर दरस हीन भाव भर दय गर-माला के अधिकारी ये चढ़इया बर नेवता ये वोकर ऊपर धजा गडिय़ाये जा सकथे। फेर कोनो चिरई उहां खोंधरा नइ छा सकय न कोनो रस्ता…

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चॉकलेट के इतिहास

चॉकलेट बनाय के मुख्य जिनिस कोको के खोज 2000 वर्ष पूर्व होइस। अइसे माने जाथे कि जब 1528 म स्पेन के राजा हर मेक्सिको म विजय हासिल करके कब्जा कर लीस त ओ हर अपन साथ भारी मात्रा म कोको के बीजा लेके अइस तभे स्पेन के रसोई मन म चॉकलेट ड्रिंक प्रसिद्व होगे। फेर चॉकलेट हर पहली बिकट तीखा रहीस हवय, अमेरिका के मन एमा बहुत अकन मसाला मिलावय। एला मीठा बनाय के श्रेय यूरोप ल जाथे जेन हर एमा ले मिरचा निकाल के दूध अउ शक्कर के प्रयोग…

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हमर माटी हमर गोठ

1. भगवान के पूजा करथव सही रद्दा मा चलथव। सब्बो झन ला अपन समझथव ज्ञान के संग ला धरथव अपन अज्ञानता ला भगाथव दाई ददा के गुन गाथव। 2. ईश्वर के मया, कृपा अऊ दुलार हे छत्तीसगढ़ माटी के पहचान हे। किसान बेटा के नाम हे बुता बनिहारी के काम हें। हेमलाल साहू मोर नाम हे। 3. मोर बाबुजी गरीब किसान ये बुता बनिहारी ओकर काम यें मोर नाम ओकर पहचान यें बैसाखू ओकर नाम हे। 4. मोर दाई ममता के बखान ये घर चलाना ओखकर काम ये मया अऊ…

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छत्तीसगढ़ी कुण्डलियां

छत्तीसगढ़ी हे हमर, भाखा अउ पहिचान । छोड़व जी हिन भावना, करलव गरब गुमान ।। करलव गरब गुमान, राज भाषा होगे हे । देखव आंखी खोल, उठे के बेरा होगे हे ।। अड़बड़ गुरतुर गोठ, मया के रद्दा ल गढ़ी । बोलव दिल ला खोल, अपन ये छत्तीसगढ़ी ।। भाखा गुरतुर बोल तै, जेन सबो ल सुहाय । छत्तीसगढ़ी मन भरे, भाव बने फरिआय ।। भाव बने फरिआय, लगय हित-मीत समागे । बगरावव संसार, गीत तै सुघ्घर गाके । झन गावव अष्लील, बेच के तै तो पागा । अपन मान…

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निराला साहित्‍य समिति, थान खम्‍हरिया के आयोजन

निराला साहित्‍य समिति, थानखम्‍हरिया हा अपन उपजे बछर ले हर बछर, साहित्‍यकार अउ कलाकार मन के सनमान करत आवत हे। इहू दरी स्‍व.विसम्‍भर यादव ‘मरहा’ के सुरता मा सनमान कार्यक्रम हे अउ निराला साहित्‍य समिति के मयारू श्री धर्मेन्‍द्र निर्मल के छत्‍तीसगढ़ी गज़ल संग्रह ‘कोन जनि का होही’ के विमोचन के कार्यक्रम घलाे हे। जेमा जम्‍मो झन ल झारा-झाारा नेवता हे। माई पहुना – श्री विनयकुमार पाठक जी, वरिष्‍ठ साहित्‍यकार, बिलासपुर – श्री खुमान साव जी, सुर साधक चंदैनी गोंदा, ढेकवा, राजनांदगांव सियानी     – श्री बलदेव भारती जी, साहित्‍यकार, भाठापारा…

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पंच-पंच कस होना चाही

पंच पंच कस होना चाही, साच्छात परमेस्वर के पद, पबरित आसन येकर हावै, कसनो फांस परे होवे, ये छिंही-छिंही कर सफा देखावै। दूध मा कतका पानी हे, तेला हंसा कस ये अलग्याथे। हंड़िया के एक दाना छूके, गोठ के गड़बड़ गम पाथे।। छुच्छम मन से न्याव के खातिर, मित मितान नइ गुनै कहे मा। पाथै ये चरफोर गोठ म, कला छापाना है का ये मा। एकरे बर निच्चट निमार के, बढ़िया बीज बोना चाही। पंच-पंच कस होना चाही। पंच चुनाई करत समे मे, रिस्ता नता मया झन देखा। चाहे अनबन…

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51 शक्तिपीठ म सबले बडे़ ज्वाला जी

ये पवित्र स्थान के मान्यता 51 पीठ म सबले जादा हवय। लोगन के मान्यता के अनुसार भगवती सती के जीभ ल श्री हरि हर अपन चक्र से काट के धौलगिरि पहाड़ म गिरइस हवय अउ महादेव हर खुद भैरव बाबा के रूप म एमेर विराजमान हवय। देवी के दर्शन करे बर करोड़ो श्रद्वालु मनखे इहाॅं पहुचथें। इहाॅं नौ जगहा म दिव्य योति बिना ईंधन के स्वयं जलत रहिथे जेखर कारण से देवी ल वाला जी कहिके पुकारे जाथे। श्री ज्वाला जी मंदिर के निर्माण के विषय म एक ठन दंत…

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महंगइ के चिंता

तइहा के बात ला बईहा लेगे, समे ह बदल गे अउ नवा जमाना देस म अपन रंग जमा डारे हे। एकअन्नी-दूअन्नी संग अब चरन्नी नंदा गे हे। सुने हन सरकार ह अब पांच रूपिया ला घलो बंद करईया हे, अब हमर रूपिया दस ले सुरू होही। पहिली हमर सियान मन खीसा भर पईसा म झोला भर जिनिस बिसा डारत रहिन, अब झोला भर रूपिया म खीसा भर जिनिस मिलत हावय। मंहगई के अहा तरा मुह फरई ला देख के नेता अउ मीडिया वाले मन अड़बड़ चिंता करत दिखथें, उंखर चिंता…

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कहां नंदा गे सब्बो जुन्ना खेलवारी मन

पहिली चारों मुड़ा लइका मन के कोलाहल सुनात रहै संझा के बेरा घर ले बाहिर निकलते तहां जगा-जगा झुण्ड के झुण्ड लइका खेलत दिख जावै। अब तो लइका मन बाहिर खेले सफा भुला गिन अउ कहूं थोर बहुत खेले बर बाहिर जाहीं बेट बाल धर के किरकेट खेले बर। आजकल ठंडा के दिन कोनो-कोनो मेर बेडमिंटन खेलत घलो दिख जाथें। घर भीतरी खेले बर आजकल लुडो, केरम, सांप सीढ़ी, जइसे साधन हावय फेर ओला खेलय कोनो नहीं। आजकाल के लइका मन दिनभर टीवी, कम्प्यूटर, मोबाइल जइसे जिनिस भुलाय रथें। स्कूल-कॉलेज…

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