नकाब वाले मनखे

अभीन के समे हॅ बड़ उटपटॉग किसम के समे हे। जेन मनखे ल देख तेन हॅ अपन आप ल उॅच अउ महान देखाए के चक्कर म उॅट उपर टॉग ल रखके उटपटॉग उदीम करे मा मगन हे। ंअइसन मनखे के उॅट हॅ कभू पहाड़ के नीचे आबेच नइ करय। आवस्कता अविस्कार के महतारी होथे ए कथनी ल मथानी म मथके अइसन मनखे मन लेवना निकाले बर गजब किसम किसम के उदीम करत रहिथे। मिहनत करइया मन के कभू हार नइ होवय सही बात घलो ए। इन मन हॅ आजकल अहसनेच…

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छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के तीसर प्रान्तीय सम्मलेन 2015

दिनाँक-20 अउ 21 फरवरी, 2015 समय – बिहनिया 08:00 बजे ले ठउर – देवकी नंदन सभाकक्ष, लाल बहादुर शास्त्री स्कूल, कोतवाली चौक, बिलासपुर (छ.ग.)

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छत्तीसगढ़ महिमा

रंग ले रंग जिनगानी छत्तीसगड़ के भाए अबड़ के पानी बानी अउ कहानी रंग ले रंग जिनगानी बड़का बड़का हावय खदान किसम किसम के होथे धान तगड़ा तगड़ा हवय किसान मेहनत मया हे जिंकर मितान नोहय लबारी नइए चिनहारी भूख पियास बादर पानी गहिरी गहिरी नरवा बोहाथे उंचहा उचहा पहाड़ सोभाथे हर्रा बहेरा तन सिरजाथे नून चटनी संग बासी सुहाथे तीजा तिहारे बर बिहाव रे बाजे बाजा आनी बानी मंदिर मंदिर इतहास हवय कन कन म एकर सुवास हवय भगवान इहां बनवास सहय रिसि मुनियन के सुॅंवास हवय कतेक बखानौ…

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मनोज कुमार श्रीवास्तव के सरलग 41 कविता

1. झन ले ये गॉंव के नाव जेखर गुन ल हमन गावन, जेखर महिमा हमन सुनावन, वो गॉंव हो गेहे बिगड़हा, जेला देख के हम इतरावन, कहत रहेन षहर ले बने गॉंव, बाबू एखर झन ले नाव, दूसर के चीज ल दूसर बॉंटय, उल्टा चोर कोतवाल ल डॉंटय, थोरकिन म झगरा होवत हें, दूसर मन बर्राय सोवत हें, अनपढ़ मन होशियार हें, साक्षर मन गॅंवार हें, लइका मन हें अतका सुग्घर, दिन भर खावंय मिक्चर, दिन के तो पढ़े ल नई जावंय, रात के देखयं पिक्चर, गॉंव बिगड़इया मनखे के,…

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चिरई बोले रे

घर के छान्ही ले चिरई बोले रे… घर के दाई अब नइ दिखे रे… अंगना ह कईसे लिपावत नइ हे…. तुलसी म पानी डरावत नइ हे…. सूपा के आरो घलो आवत नइ हे…. ढेकी अउ बाहना नरियावत नइ हे…. जांता ह घर में ठेलहा बइठे हे…. बाहरी ह कोंटा म कलेचुप सुते हे…. चूल्हा म राख ह बोजाये हबे…. राख के हेरइया दिखत नइ हे…. कोठा ह घर के सुन्ना होगे हे…. खूंटा म गेरवा लामे हबे रे…. डंगनी ह लत्ता के अगोरा म हे…. सिल अउ लोड़हा बइरी होगे…

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सरग म गदर

बिसनू लछमी के सादी के सालगिरह रहय।उन दोनो सरग म बइठे बिचार मगन रहिस हे। बिग्यान के परगति कहव के, सुस्त मस्त अउ पस्त खुपिया बिभाग के चमाचम कारसैली के कमाल कहव, के कुकुर मन संग बिस्कुट खावत खावत संगत के असर कहव चाहे तुहर मन करय ते इतफाक से कहव बिसनू लछमी के दिमाक के बात ल पिरथीवासी मन पिहिलीच ले सुंघिया डरिन। सब लोक ले एकक झिन प्रतिनिधि पहुचगे।मिरितलोक म खलक उजरगे।एक करोड़ मनखे पेल दिन बेसरम फूल धरे धरे। जेमा सब के सब भारत के राहय। भारत हॅं…

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कबिता : नवा साल म

 सुकवि बुधराम यादव के रचना  “डोकरा भइन कबीर ” (डॉ अजय पाठक के मूल कृति “बूढ़े हुए कबीर” का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ) के एक ठन बड़ सुघर रचना- नवा साल म  सपना तुंहर पूरा होवय, नवा साल म ! देस दुवारी म सुरुज बिकास  बरसावय संझा सुख सपना के मंगल गीत सुनावय अक्षत रोली दीया अउ चंदन, लेहे थाल म! कल्प रुख म नवा पात मन सब्बर दिन उल्होवंय सकल मनोरथ फल सिरजे बर भुइंया उरबर होवय फूल फुले होवंय रुखुवा के सब डगाल म!  लइकन मन के चेहरा म मुसकान ह छावय अउ सरलगहा नवा सरग के…

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कबिता : नवा बछर के गाड़ा -गाड़ा बधाई

नवा बछर के गाड़ा -गाड़ा  बधाई पाना – डारा  के फुलगी म ओकमे झुलना झूलत सीत ल गोरसी भरे  दंदकत डोकरी के आनी-बानी गीत ल   संगी जंवरिहा अउ अलकरहा हीत-मीत ल   सुख़-दुःख म पोटारे रोवईया मया पिरीत ल          … नवा बछर के गाड़ा -गाड़ा  बधाई  जंगल के रुख-राई, बेंदरा, भालू , बिघवा ल  चतुरा  कोलिहा ल अउ कोटरी निमगा  सिधवा ल  फूल के मछेव ल, डारा के मेकरा ल  पानी के मछरी अउ बिला  के केकरा ल     … नवा बछर के गाड़ा -गाड़ा  बधाई  पानी-बादर, घाम-पियास, म कमावत बनिहार ल  रोजी-रोटी बर निकले…

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ग़ज़ल : सुकवि बुधराम यादव

सुर म तो सोरिया सुघर – सब लोग मन जुरिया जहंय तैं डगर म रेंग भर तो – लोग मन ओरिया जहंय का खड़े हस ताड़ जइसन – बर पीपर कस छितर  जा तोर छइंहा घाम घाले – बर जमो ठोरिया जहंय एक – दू मछरी करत हें – तरिया भर ल मतलहा आचरन के जाल फेंकव – तौ  कहुं फरिया जहय झन निठल्ला बइठ अइसन – माड़ी  कोहनी जोर के तोर उद्दीम के करे – बंजर घलव हरिया जहय देस अऊ का राज कइठन – जात अऊ जम्मो धरम सुमत अऊ बिसवास के बिन –…

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