पुनिया दादी अउ सफुरा आज असनान्दे बर पुन्नी घाट गेहे।पुन्नी घाट ल कोन नइ जानही ? राज-राज के मन इंहा सिरपुर मेला देखे बर आथे। महानदी के खड म बने हे ,बडे-बडे मंदिर हे,घंटा घुमर बाजत रइथे, पूजा- पाठ करइया मन के जमघट लगे रहिथे।दरस करइया मन के रेम लगे रहिथे ।मंदिर म हार-फूल,पान-परसाद,मेवा-मिष्ठान अउ पइसा-कउडी,नरियर के बडे-बडे भेला चढे रहिथे । पुन्नी घाट म तो पंडा पुजारी मन कोरी खइरखा ल भरे पडे रहिथे । कोनो करत हे असनान, ध्यान कोनो करत हे , पाठ, पूजा, कोनो करत हे, दान…
Read MoreYear: 2015
नान्हें बियंग कहिनी: मोला कुकुर बना देबे
पक्का मकान के आघू म एक ठन झोपड़ी म औरत ह अपन लईका ल भुलवार भुलवार के हड़ीया म सीथा ह चिपके रिहिस हे,तेला खवावत रहायI लईका ह नानुक अघाय भूखाय सीथा म पेट ह नई भरत रिहिस,अऊ घेरी बेरी दौड़त दौड़त पक्का मकान ल झांक के आवय Iओकर माई ह काहते रहाय काबर घेरी बेरी येती वोती भागत हस बेटा,त लईका ह बोलथे,माई एक ठन सवाल पुछव,पूछ बेटा फेर ज्यादा इतरा मत जेन हे वोला चुपे चाप खा Iलईका ह बोलथे माई,माई मनखें मन के अऊ दुबारा जनम होथे…
Read Moreकहिनी: तारनहार
परेमीन गली म पछुवाएच हे, धनेस दउड़त आके अंगना म हॅफरत खड़ा होगे। लइका के मिले लइका, सियान के मिले सियान..। नरेस ह धनेस ल देख खुसी के मारे फूले नई समइस। चिल्लावत बताइस-दाइ ! बुवा मन आगे। भगवनतीन कुरिया ले निकलके देखथे डेढ़सास परेमीन अउ भॉचा धनेस अंगना म खडे हे। भगवन्तिन लोटा भर पानी देके परेमीन संग जोहार भेंट करिस। धनेस के पाँव छूवत चउज करत हॉंसत कहिथे – अलवइन भाँचा फेर आगे दई। भगवन्तिन के गोठ ल सुन के जम्मो झन हाँस भरिन। पाँव छूते साठ भगवन्तिन…
Read Moreकविता: फूट
वाह रे हमर बखरी के फूट फरे हाबे चारों खूंट बजार में जात्ते साठ आदमी मन लेथे सबला लूट | मन भर खाले तेंहा फूट खा के झन बोलबे झूठ फोकट में खाना हे त आजा उतार के अपन दूनों बूट वाह रे हमर बखरी के फूट फरे हाबे चारों खूंट | लट लट ले फरे हे एसो फूट राखत रहिथे समारु ह पी के दू घूंट चोरी करथे तेला तो देथे गारी छूट मिरचा अऊ लिमऊ ल बांधे हों मारे झन कोनो मूठ जतका खाना हे खाले तेंहा फूट…
Read Moreकबिता : घाम जनावत हे
बितगे जाड़ आगे गरमी घाम जनावत हे। तात तात आगी असन हवा बोहावत हे कोयली मइना सुआ परेवा नइ गुनगुनावत हे छानही खपरा भिथिया भूंइया जमो गुंगुवावत हे कुकरी बोकरी गरवा बइला बछरू नरियावत हे बितगे जाड़ आगे गरमी घाम जनावत हे। गली खोल गांव सहर घर सिनिवावत हे नल नहर नदिया समुंदर तरिया सुखावत हे बिहनिया मझनिया रथिया ले लइका चिल्लावत हे कूलर पंखा एसी फिरिज सबला भावत हे बितगे जाड़ आगे गरमी घाम जनावत हे। सुरूज देव अपन ताकत ल सबला बतावत हे घर के बाहिर भीतरी म…
Read Moreजप तप पुन के भूंइया ए हमर छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ के माटी के महक ह न सिरफ भारत म बल्कि पूरा बिस्व म फइले हे। ए भूंइया ह तप अऊ पुन के भूंइया ए। इहां एक ले बड़के एक संत, रिसि अऊ मुनि पइदा होय हे। महानदी, सिवनाथ अऊ इंदरावती छत्तीसगढ़ के पबरित बोहात नदिया ए जेकर तीर म रहिके कइझन तप करइया होइस। महानदी ल छत्तीसगढ़ के गंगा कहे गयहे। छत्तीसगढ़ के अलग अलग बेरा म अलग अलग नाव परिस। रामायन काल म एला दक्छिन कोसल, महाभारत काल म प्राककोसल अऊ गुप्त काल म दक्छिनापथ कहे गिस। नाव…
Read Moreकबिता: पइधे गाय कछारे जाय
भेजेन करके, गजब भरोसा । पतरी परही, तीन परोसा । खरतरिहा जब कुरसी पाइन, जनता ल ठेंगवा चंटवाइन । हाना नोहे, सिरतोन आय, पइधे गाय, कछारे जाय ॥ ऊप्पर ले, बड़ दिखथे सिधवा, अंतस ले घघोले बघवा । निचट निझमहा, बेरा पाके, मुंहूं पोंछथें, चुकता खा के । तइहा ले टकरहा आय, पइधे गाय कछारे जाय ॥ गर म टेम्पा, घंटी बांधव, चेतलग रहि के बखरी राखव । रूंधना टोरिस हरहा गरूवा, घर के घला, बना दिस हरूवा । हरही संग, कपिला बउराय । हाना नोहे, सिरतोन आय, पइधे गाय,…
Read Moreबियंग: अच्छे दिन
हे भगवान , मोर जिनगी म अच्छा दिन कब आही । कोन्हो मोला , पूछे – गऊंछे काबर निही ? कोन्हो बड़का मनखे मोर कोती झांक के काबर नि देखे ? में भूख , गरीबी अऊ बेरोजगारी के बीच जियत , असकटा गेंव । मोला उबार भगवान इहां ले । भगवान हांसिस । तैं झोपड़ी अस बेटा , अच्छा दिन तोर बर नोहे । तोर बांटा म जेन परे हे तिही ल समेट , अऊ उही म सुख खोज । तेंहा एकर ले अच्छा दिन के हिच्छा झिन कर ।…
Read Moreसुनिल शर्मा “नील” के दू कबिता : कइसे कटही जेठ के गरमी अउ हर घड़ी होत हे दामिनी,अरुणा हा शिकार
कइसे कटही जेठ के गरमी लकलक-लकलक सुरूज बरत हे उगलत हवय अंगरा बड़ेेफजर ले घाम उवत हे जरत हवय बड़ भोंभरा पानी बर हहाकार मचे हे जम्मो जीव परानी म कईसे कटही जेठ के गरमी दुनिया हे परशानी म तरिया-डबरी म पानी नइहे नदिया घलो अटागेहे पारा के पारा चढ़गेहे ,रुख-राई मन अइलागेहे मनखे घरघुसरा होगेहे अपन कुरिया- छानी म नई देखे हे कभु कोनो अइसन गरमी जिनगानी म पनही घलो चट-चटजरथे,कूलर-पंखा फेल हवय देह उसने असन लागथे कुदरत तोर का खेल हवय पछीना पानी असन ओगरथे आगी के झलकानी…
Read Moreनान्हे कहिनी: धन होगे माटी(अनुवाद)
एक दिन कुम्हार ह माटी ल सानके चिलम बनावत रहिसे। चिलम बनावत-बनावत जाने कुम्हार ल काय सुझिस कि ओहा ओ चिलम ल मिझार दिस अउ ओ माटी ल सानके चाक ऊपर चढ़ा के मरकी बनाय लागिस। चाक ऊपर माटी ल चघाएच रिहिसे कि माटी बोले लागिस-“मेहा माटी बनके धन-धन होगेव कुम्हार बाबू तोर जय होवय”। कुम्हार माटी ल पूछिस कि तय कइसे धन-धन होगेव कहिथस वो माटी? ता माटी कहिस कि “मोला चिलम कहुं बनाये रहितेस कुम्हार बाबू त खुद जरतेस अउ दूसर के छाती ल घलो जरोतेस। अब तय…
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