बारा महीना के बारा ठन साग-भाजी हमर भुईंया के माटी ह सोन माटी हाबय, कुछु उपजा लेवा उपज जाथे, हमर धरती म के कोरा ह हमन ला हरियर-हरियर बनसपति ले नवांजथे, हम जीब जोहर पइदा करे हाबय, तेकर आतमा के तीरपती बर, जीभ के सुवाद बर अव सरीर के पोसन बर आनी-बानी के अन्न अव साग-सालन पइदा करे हाबय, बारा महीना के कई बारा ठन परकार के साग-भाजी अदल-बदल के बनावा तभो ले मन ह नई जुड़ावय, अव जम्मो ले बिबध परकार के बयनजन बनथे, मय अभी जाड़ महीना के…
Read MoreYear: 2015
मर जबे गा संगवारी
एक मजदूर अऊ किसान के व्यथा अऊ ओकर निःस्वार्थ श्रम ल गीत के माध्यम से उकेरे के कोशिश करे हव – विजेंद्र कुमार वर्मा गाड़ा म बैला फाद के कहा, ले जाथस ग ईतवारी, मत जाबे तै संगवारी मर जाबे तै संगवारी पेट ल फोड़ा पार के तेहा, हाथ म धरे कुदारी मत जाबे तै संगवारी मर जाबे तै संगवारी नईये पुछैया मरहा मन के, भोगाय हे पटवारी मत जाबे तै संगवारी मर जाबे तै संगवारी बनी भूती खेत खार ह सपटथ हे अऊ फूलवारी मत जाबे तै संगवारी मर…
Read Moreवइसन बिहनिया अब कहाँ होथे
होत बिहनिया कुकरा नरियावय रुख म बइठ चिरई-चिरगुन गावय ‘रामसत्ता’के मिसरी कान म घोरावय घर-घर रेडियो रमायन सुनावय मंदिर के घंटी मन ल लुभावय वइसन बिहनिया अब कहाँ होथे? नांगर धर किसान खेत जावय गरुवा बरदी जावत मेछरावय घर-घर अँगना चऊँक पुरावय दीदी बोरींग म पारी लगावय बाबू नहा धोके संख बजावय वइसन बिहनिया अब कहाँ होथे? चूल्हा तीर माई-पिल्ला सकलावय दाई चहा संग अंगाकर बनावय अंगरा म बबा बीड़ी सुलगावय डबररोटी वाले पोप-पोप बजावय परोसिन हउला धर कुआँ ल जावय वइसन बिहनिया अब कहाँ होथे? गंगाअमली म कोयली हर…
Read Moreकविता -खुरसी के खेल
आजकाल के जमाना मे भइया खुरसी के हाबे मांग जेला देखबे तेला संगी खींचत हे खुरसी के टांग | खुरसी के खातिर नेता मन का का नइ करत हाबे अपन सुवारथ सबो साधत कहां ले सुराज लाबे | बड़े बड़े आशवासन देके जनता ल लुभाथे खुरसी के मिलते साठ सबला भुला जाथे | भुखमरी गरीबी बेरोजगारी ल मुद्दा बना देथे जनता ल सब बुध्दु बनाके वोट ल ले लेथे | खुरसी के महिमा भारी हे का का नइ कर देथे जेती मिलथे खुरसी ह उही कोती चल देथे | नेता…
Read Moreवृत्तांत- (1) इंहे सरग हे : भुवनदास कोशरिया
संतरू के अंगना म पारा भर के लइका मन सकलाय हे। आज अकती ये। पुतरी, पुतरा के बिहाव करे बर, आमा डारा के छोटे कन ढेखरा ल मढवा बना के आधा लइका मन पुतरा अउ आधा लइका मन पुतरी के सगा सोदर, ढेडहीन, सुवासिन अउ पगरइत, पगरइतिन बन के बिहाव के नेंग जोग करिस। अब्बड उच्छाह रीहिस लइका मन के मन म। संतरु ह घलो लइका म लइका मिल के लाडू रोटी के बेवसथा कर दीच। कलबल कलबल करत लइका मन के आरो ल पा के अपन दुलौरिन बेटी ल…
Read Moreजय सिरजनहार, जय हो बनिहार
पहार काट के रद्दा बनइया भुइंया ले पानी ओगरइया भट्टी म तै देह तपइया ईंन्टा-पखरा के डोहरैया खदान ले कोइला निकलइया बिल्डिंग अउ महल के बनइया तभो ले ओदरे घर म रहइया तै बिस्करमा के सन्तान जय सिरजनहार,जय हो बनिहार अंगरक्खा के तेहा धरैया धोती-बनवई के पहनइया दू जोड़ी बंडी म मुस्कइया चटनी अउ बासी के खवइया सबले गुरतुर गोठ बोलइया खान्ध में रापा-गैती अरोईया सबके घर म अंजोर करइया खुद चिमनी म रतिहा बितइया तोर कारज हवय महान जय सिरजनहार,जय बनिहार अतियाचार शोषन के सहइया आश्वाशन के चटनी चटइया…
Read Moreये दुनिया हे गोल तैय कुछ मत बोल
ये दुनिया हे गोल तैय कुछ मत बोल ये आधुनिक युग के जावाना तैय झन पछताना कान मा सुन आँखी मा देख अपन रद्दा चुपचाप रेग। जिन्दगी होगे सुखियार काम बुता मा मन नईय लागे जबले आलस्य हा डाले डेरा जागर मा पड़गे किड़ा। झुण्ठ बोलय पैसा कमावय भ्रष्टाचार ला अपन व्यवसाय बनावय लईका से लेकर सियानमन चपरासी से लेकर नेतामन सबो भ्रष्टाचार मा डूबे दु पैसा के खातिर अपन ईमान ला बेचे। यहाँ तो मिठ लबरा के वाह वाही हे मिठ मिठ बात मा जनता लुटाये नेता हा जनता…
Read Moreसियान मन के सीख : चोला माटी के हे राम
सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। तइहा के सियान मन कहय-बेटा! चोला माटी के तो आय रे। फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नइ पाएन। संगवारी हो जब.जब अक्ति के तिहार आथे अउ माटी के पुतरा.पुतरी मन बजार मा दिखथे तब सियान मन के गोठ.बात हर सुरता आए लगथे। का सिरतोन हमर चोला हर ए माटी के पुतरा.पुतरी कस हरै ए बात हर अडबड सोचे के आय। संगवारी हो अक्ति के दिन नान.नान लइकन मन माटी के पुतरा.पुतरी के कतका सुघ्घर…
Read Moreमुर्रा के लाड़ू : नान्हे कहिनी
घातेच दिन के बात आय। ओ जमाना म आजकाल कस टीवी, सिनेमा कस ताम-झाम नई रहिस। गांव के सियान मन ह गांव के बीच बइठ के आनी-बानी के कथा किस्सा सुनावयं। इही कहानी मन ल सुनके घर के ममादाई, ककादाई मन अपन- अपन नाती-पोता ल कहानी सुना-सुना के मनावयं। लइका मन घला रात-रात जाग के मजा ले के अऊ अऊ कहिके कहानी सुनयं। ओही जमाना के बात ये जब मैं छै-सात बरस के रहे होहूं । हमन तीन भाई अऊ ममा के तीन झन लइका। ममादाई ले रोज सांझ होतीस…
Read Moreगजानंद प्रसाद देवांगन जी के कविता
चूनी के अंगाकर कनकी के माढ़ । खा के गुजारत हे जिनगी ल ठाढ़ । कभू कभू चटनी बासी तिहार बार के भात । बिचारा गरीब के जस दिन तस रात । चिरहा अंगरखा कनिहा म फरिया । तोप ढांक के रहत छितका कस कुरिया । उत्ती के लाली अउ बुड़ती के पिंवरी । दूनो गरीब के डेरौठी के ढिबरी । गीता पुरान होगे करमा ददरिया । गंगा गदवरी कस पछीना के तरिया । कन्हार मटासी ल खनत अउ कोड़त । धरती अगास ल एके म जोड़त । फेर तरी…
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