आगू दुख सहिले

सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। तइहा के सियान मन कहय-बेटा! आगू दुख सहिले रे! पाछू सुख करबे। फेर संगवारी हो हमन उखर बात ला नइ मानन। जम्मो मनखे मन पहिली सुख पाए के मन रखथे। उमन के सोच अइसे रहिथे के बाद मा दुख ला तो भोगने हावय एखर सेती पहिली सुख पा लेथन। संगवारी हो सुख अउ दुख के सीधा संबंध हावै बने अउ बिगडे करम से। गीता मा भगवान हर कहे हावय के मैं हर ए दुनिया मा कोनो ला सुख अउ दुख…

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अड़हा दिमाग के कमाल

आवव संगी तुमन ला सुनावथ हव दशरू बबा के कहानी ला बबा हा निचट अड़हा रहय फेर जिन्दगी मा पढ़े नी रहीस पर कढ़े जरूर रहीस हे दशरू बाबा बड़ गरीब रहय घर मा ढोकरी दाई अऊ बबा रहय दुनो झन बनी भुती करके जिन्दगी चलावय दिन रात हरी गुन ला गावय सुख सुख दिन ला गुजारय। बबा अऊ ढ़ोकरी दाई के कमाये ले कुछ बछर बीते के बात सबो चीज होगे रहय।उही समय गाव मा अड़बड़ चोरी होवय जेकर घर में पावय तेकर घर में चारी करे ला घुस…

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मोर छत्तीसगढ़ के भुंइया

मोर छत्तीसगढ़ भुंइया के,कतका गुन ल मैं गांवव | चन्दन कस जेकर माटी हाबे,मैं ओला माथ नवांवव || ये माटी म किसम किसम के, आनी बानी के चीज हाबे | अइसने भरपूर अऊ रतन, कोनो जगा कहां पाबे || इही में गंगा इही में जमुना, इही में हे चारो धाम | चारों कोती तेंहा किंचजरले, सबो जगा हाबे नाम || आनी बानी के फूल इंहा, महर महर ममहावत हे | हरियर लुगरा धान के पाना, धरती ल पहिनावत हे || आनी बानी के रिती रिवाज, दुनिया ल लुभाथे | गुरतुर…

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कोनजनि मनखे आवस कि राक्षत रे काटजू

कई पईत खाय हव अउ आघू घलो खाहुच्चे कहिथस गऊ माँस प्रोटीन आवय एमा परतिबंध गलत हे कहिथस कोंनजनि मनखे आवस कि राक्षत रे मार्कंडेय काटजू का तै भुला गे हस तय कोन देश म रहिथस? सुन एहा वो देश ए जिहा कृष्णा गउ सेवा बर आय हे बृज म जेखर रक्षा बर गोवर्धन ल अंगरी म उठाय हे जेखर गोबर ल परसाद अउ गऊ मूत्र ल अमरीत केहे गेहे अइसन गउ माता ल तै नीच हा तरकारी समजथस? अउ सुन ,जेन गऊ के छाव परे म कतको रोग मिटा…

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जोहत हाबन गा अउ झन भुलाबे

जोहत हाबन गा नई चाहिबे तभो ले, ये सरकार के बोझ ल ढोए बर पड़थे I अऊ ओकर गलती के सजा, हमर सेना ल भुगते ले पड़थे I न्याय होही कईके जोहत रहिबे, अऊ अन्याय ह सफल होथे I सबर के बाण टूटथे त, माटी ह मोर लहुलुहान होथे I ये कईसन राज काज हे भाई, गूंगा ल भैरा से लड़ाथे I अऊ दुनो कोई अन्धाधुन गोली बरसाथे I मेहा जोहत हौ संगवारी, कभू तो शांत होही दुवारी I ऐ लुका छिपी के खेल में, कब रुकही बहत खून के…

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भुईया दाई करत हे गोहार

भुईया दाई करत हे गोहार भुईया दाई करत हे गोहार छोड़ के झन जा भैईया शहर के द्वार ये नदिया-नरवा, ये रूखराई तोला पुकारत हे मोर भाई चिरई-चिरबुन मया के बोली बोलत हे तुरह जवई जा देख जिहाँ खऊलत हे गाँव के बईला-भैईसा, गया-गरूवामन मया के आसु रोवत हे हमर जतन कराईया हा शहर मा जाके बसत हे भुईया दाई ला छोड़के मनखे हा शहर डहर रेगत हे आज के लईकामन खेती-खार ल छोड़त हे पढ़-लिख के शहरिया बाबू बने के सपना देखत हे गाँव ला छोड़ शहर मा जाके…

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छत्तीसगढ़ी लोककथा : राजा के मया

एकठन राज मा एक राजा के बने-बने राजकाज चलत रहय। तइसने मा राजा ला एक मिट्ठू ले मया हो जाथे। राजा मिट्ठू बर बढ़िया सोना-चांदी रत्न ले गढ़े fपंजरा बनवाइस अऊ मिट्ठू ला पिंजरा मा धांध दिस। राजा मिट्ठू के मया मा रोज, दिन मा तीन बार मिट्ठू ला देखे बर आय अऊ अपन हाथ ले बिहिनिया, संझा खाना खवाय। राजा ला मिट्ठू बर अतेक मया करत देख के राज दरबारी अऊ परजा मन गुनें ला लागय कि अइसने मा राजा के काम-काज कइसे चलही ? फेर राजा ला कोन…

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रोवत हावय महतारी

सहीद के अपमान के एक ठिन अउ घटना …अंतस बड़ हिलोर मारत हे …करेजा म बड़ पीरा…लहू उबाल मारत हे…कोनो के बेटो, कोनो के भाई, कोनो के जोही, कोनो के मया…सहीद होगे….सहीद होगे मोर संगवारी…मोर संगवारी ल समरपित ये गीत…. रोवत हावय महतारी… रोवत हावय महतारी रोवत अंगना-दुवारी हे तोर बिन अब का हे जीना तोर बिन अब का हे जीना सुन्ना मोर फूलवारी हे सुन्ना मोर फूलवारी हे रोवत हावय महतारी…… बहिनी के राखी रोवय रोवय मया के पाखी जोही बिन जिना कइसे जइसे दिया बिन बाती जइसे दिया…

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