चेत हरियर रुखराई कटिस, सहर लील गिन खेत देखत हवैं बिनास सब, कब आही जी चेत कब आही जी चेत , हवा-पानी बिखहर हे खातू के भरमार , खेत होवत बंजर हे रखौ हवा-ला सुद्ध , अऊ पानी-ला फरियर डारौ गोबर-खाद , रखौ धरती ला हरियर कवि के काम कविता गढ़ना काम हे, कवि के अतकी जान जुग परिबर्तन करिस ये, बोलिन सबो सियान बोलिन सबो सियान , इही दिखलावे दरपन सुग्घर सुगढ़ बिचार, जगत बर कर दे अरपन कबिता – मा भर जान, सदा हे आगू बढ़ना गोठ अरुन…
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