छन्द के छ : अमृत ध्वनि छन्द

जब तँय जाबे जाबे जब तँय जगत ले , का ले जाबे साथ संगी अइसन करम कर, जस होवै सर-माथ जस होवै सर – माथ नवाबे, नाम कमाबे जेती जाबे , रस बरसाबे , फूल उगाबे झन सुस्ताबे , अलख जगाबे , मया लुटाबे रंग जमाबे , सरग ल पाबे, जब तयँ जाबे अमृत ध्वनि छन्द डाँड़ (पद) – ६, ,चरन- १६ , पहिली २ डाँड़ दोहा अउ बाद के ४ डाँड़ ८-८ के मातरा मा यति वाले ३-३ चरन माने कुल २४-२४ मातरा के रहिथे फेर रोला नइ रहाय.…

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छत्‍तीसगढ़ी कवित्‍त म मुनि पतंजलि के योग दर्शन औ समझाईस : डॉ.हर्षवर्धन तिवारी

डॉ.हर्षवर्धन तिवारी के अनुवाद करे छत्‍तीसगढ़ी कवित्‍त म मुनि पतंजलि के योग दर्शन औ समझाईस सेव करें और आफलाईन पढ़ें

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छन्द के छ : कुण्डलिया छन्द

चेत हरियर रुखराई कटिस, सहर लील गिन खेत देखत हवैं बिनास सब, कब आही जी चेत कब आही जी चेत , हवा-पानी बिखहर हे खातू के भरमार , खेत होवत बंजर हे रखौ हवा-ला सुद्ध , अऊ पानी-ला फरियर डारौ गोबर-खाद , रखौ धरती ला हरियर कवि के काम कविता गढ़ना काम हे, कवि के अतकी जान जुग परिबर्तन करिस ये, बोलिन सबो सियान बोलिन सबो सियान , इही दिखलावे दरपन सुग्घर सुगढ़ बिचार, जगत बर कर दे अरपन कबिता – मा भर जान, सदा हे आगू बढ़ना गोठ अरुन…

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छन्द के छ : रोला छन्द

मतवार पछतावै मतवार , पुनस्तर होवै ढिल्ला भुगतै घर परिवार , सँगेसँग माई-पिल्ला पइसा खइता होय, मिलै दुख झउहा-झउहाँ किरिया खा के आज , छोड़ दे दारू-मउहाँ रोला छन्द डाँड़ (पद) – ४, ,चरन – ८ तुकांत के नियम – दू-दू डाँड़ के आखिर मा माने सम-सम चरन मा, १ बड़कू या २ नान्हें आवै. हर डाँड़ मा कुल मातरा – २४ , यति / बाधा – बिसम चरन मा ११ मातरा के बाद अउ सम चरन मा १३ मातरा के बाद यति सबले बढ़िया माने जाथे, रोला के डाँड़…

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छन्द के छ : सोरठा छन्द

देवारी राज करय उजियार, अँधियारी हारय सदा मया-पिरित के बार, देवारी मा तँय दिया, || तरि नरि नाना गाँय , नान नान नोनी मनन, सबके मन हरसाँय , सुआ-गीत मा नाच के || . सुटुर-सुटुर दिन रेंग, जुगुर-बुगुर दियना जरिस, आज जुआ के नेंग , जग्गू घर-मा फड़ जमिस || सोरठा छन्द डाँड़ (पद) – २, ,चरन – ४ तुकांत के नियम – बिसम-बिसम चरन मा, बड़कू,नान्हें (२,१) हर डाँड़ मा कुल मातरा – २४ , बिसम चरन मा मातरा – ११, सम चरन मा मातरा- १३ यति / बाधा…

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छन्द के छ : दोहा छन्द

बिनती बन्दौं गनपति सरसती, माँगौं किरपा छाँव ग्यान अकल बुध दान दौ, मँय अड़हा कवि आँव | जुगत करौ अइसन कुछू, हे गनपति गनराज सत् सहित मा बूड़ के , सज्जन बने समाज रुनझुन बीना हाथ मा, बाहन हवे मँजूर जे सुमिरै माँ सारदा, ग्यान मिलै भरपूर लाडू मोतीचूर के , खावौ हे गनराज सबद भाव वरदान मा, हमला देवौ आज हे सारद हे सरसती , माँगत हौं वरदान सबल होय छत्तीसगढ़ , भाखा पावै मान स्वच्छ भारत अभियान सहर गाँव मैदान – ला, चमचम ले चमकाव गाँधी जी के…

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छन्द के छ : यहू ला गुनव ….

छन्द के बारे में जाने के पहिली थोरिक नान-नान बात के जानकारी होना जरूरी है जइसे अक्छर, बरन, यति, गति, मातरा, मातरा गिने के नियम , डाँड़ अउ चरन, सम चरन , बिसम चरन, गन . ये सबके बारे मा जानना घला जरूरी हे. त आवव ये बिसय मा थोरिक चर्चा करे जाये. आपमन जानत हौ कि छत्तीसगढ़ी भाखा हर पूरबी हिन्दी कहे जाथे. हिन्दी के लिपि देवनागरी आय अउ छत्तीसगढ़ी भाखा घला देवनागरी लिपि मा लिखे अउ पढ़े जाथे.जेखर बरनमाला मा स्वर अउ बियंजन रहिथे. ये बरन मन ला…

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छन्द के छ : दू आखर

सुग्घर कविता अउ गीत, चाहे हिन्दी के हो, चाहे छत्तीसगढ़ी के, सुन के मन के मँजूर मस्त होके नाचना सुरु कर देथे. इही मस्ती मा महूँ अलवा-जलवा कविता लिखे के उदीम कर डारेंव. नान्हेंपन ले साहित्यिक वातावरन मिलिस. कविता अउ गीत त जइसे जिनगी मा रच-बसगे. बाबूजी के ज्यादातर कविता छन्द मा लिखे गये हें ते पाय के मोरो रुझान छन्द बर होना सुभाविक हे. अलग-अलग छन्द के बारे मा जाने के, सीखे के अउ लिखे के बिचार करके दुरूग, भिलाई, रइपुर, बिलासपुर के किताब दुकान मन ला छान मारेंव…

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सुजान कवि के सुजानिक छन्द कविता : छन्द के छ

छत्तीसगढ़ी के परथम समरथ कवि पंडित सुन्दर लाल शर्मा के बाद कवि श्री कोदूराम दलित तक छन्द म लिखइया पोठ साधक कवि रहिन. उंकर छन्द म लिखे छत्तीसगढ़ी कविता म जीवन के संदेस समाए हे कवि श्री कपिल नाथ कश्यप जी दोहा चौपाई के भरपूर उपयोग करे हें. दूसर जतका छन्द के समझ वाले छत्तीसगढ़ी कवि हें, वोमन रिसी मुनि के समान हे, वोमन के अपन छन्द विधान हे. कहे हें दोहा, फेर दोहा के कोनो लच्छन नइ दिखे. चौपाई घलो म चलन के भटकाव हे. कहे के माने दू…

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तेजनाथ के गजल

छोटे छोटे खड़ म तो , दुनिया बट जाही , अउ छोटे छोटे करम ले संगी , दुनिया सज जाही । “अकेल्ला मैं का कर सकथौ” झन सोंच, तोर मुस्कुराये ले सबके खुसी बढ़ जाही । दुख दरिदरी , परसानी पहाड़ जस हे भले, फेर किरचा किरचा म संगी ,पहाड़ टर जाही | तैं नहीं त कोन ,तहीं बता तोर घर के सजईया ? देखा हिजगी म दुनिया , दुख दरिदरी ले अउ पट जाही । खुद ल समझ ले अउ दुसरो ल समझ ले, सुख समरिद्धि ले मनखे मनखे…

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