फेसबुक में छत्तीसगढ़ी, छत्तीसगढ़िया और छत्तीसगढ़ जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर हम आत्ममुग्ध हुए जा रहे हैं। इन शब्दों के सहारे हम अपनी छद्म अस्मिता से खिलवाड़ कर रहे हैं और अपनी पीठ खुद थपथपा रहे हैं। मुखपोथी में सक्रिय छत्तीसगढ़ी भाषा के योद्धा नंदकिशोर शुक्ल जी लगातार जिस बात को दोहराते रहे हैं यदि उनकी बातों को ध्यान में नहीं रखा गया तो यह निश्चित है कि हमारी फेसबुकाइ हुसियारी धरी रह जायेगी और आपके देखते-देखते ही छत्तीसगढ़ी नंदा जायेगी। उनका स्पष्ट कहना है कि छत्तीसगढ़ी भाषा को प्राथमिक…
Read MoreMonth: December 2016
दोहा के रंग : दोहा संग्रह
छत्तीसगढ़ मा छन्द-जागरण ये जान के मन परसन होईस कि नवागढ़ (बेमेतरा) के कवि रमेश कुमार सिंह चौहान, दोहा छन्द ऊपर “दोहा के रंग” नाम के एक किताब छपवात हे। एखर पहिली रमेश चौहान जी के किताब “सुरता” जेमा छत्तीसगढ़ी कविता, गीत के अलावा कई बहुत अकन छंद के संग्रह हे, छप चुके हे. कुछ दिन पहिली ईंकर छत्तीसगढ़ी के कुण्डलिया छंद संग्रह ““आँखी रहिके अंधरा” के विमोचन घलो होय हे। हमर देश के साहित्य अमर साहित्य आय. कई बछर पहिली गढ़े रचना मन ला आज भी हमन पढ़त औ…
Read Moreकहानी : पछतावा
एक गाँव में एक झन बुधारू नाम के मनखे राहे ।वोहा बचपन से अलाल रहे।ओकर दाई ददा ह ओला इस्कूल जाय बर अब्बड़ जोजियाय ।त बुधारू ह अपन बस्ता ल धर के निकल जाय,अऊ चरवाहा टूरा मन संग बांटी भंवरा खेलत राहय।छुट्टी होय के बेरा में फेर बस्ता ल धरके अपन घर आ जाय । बुधारू ह जइसे – जइसे बाढ़त रिहिस ओकर आदत ह बिगड़त जात रिहिस ।वोहा अपन संगवारी मन संग लुका – लुका के बिड़ी अऊ गांजा पीये ।तम्बाकू अऊ गुटखा घलो खाय।कोई कोई लइका मन ह…
Read Moreछत्तीसगढ़ी साहित्य में काव्य शिल्प-छंद
– रमेशकुमार सिंह चौहान छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ प्रांत की मातृभाषा एवं राज भाषा है । श्री प्यारेलाल गुप्त के अनुसार ‘‘छत्तीसगढ़ी भाषा अर्धभागधी की दुहिता एवं अवधी की सहोदरा है।’’1 लगभग एक हजार वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ी साहित्य का सृजन परम्परा का प्रारम्भ हो चुका था। अतीत में छत्तीसगढ़ी साहित्य सृजन की रेखायें स्पष्ट नहीं हैं । सृजन होते रहने के बावजूद आंचलिक भाषा को प्रतिष्ठा नहीं मिल सकी तदापि विभिन्न कालों में रचित साहित्य के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। छत्तीसगढ़ी साहित्य एक समृद्ध साहित्य है जिस भाषा का व्याकरण हिन्दी के पूर्व…
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