मेक इन इंडिया के सपना ल साकार करत हे देवांगन समाज : डॉ. रमन सिंह

मुख्यमत्री ह मां परमेश्वरी महोत्सव म संघरिन देवांगन समाज के भवन के बढ़ोतरी बर 20 लाख रूपया के सहायता के करिन घोषणा रायपुर, 01 फरवरी 2017। मुख्यमत्री डॉ. रमन सिंह ह कहिन हे कि हाथकरघा बुनकरी के परम्परागत कुटीर उद्योग के संग छत्तीसगढ़ के देवांगन समाज प्रधानमत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ’मेक-इन-इंडिया’ के सपना ल साकार करत हे। डॉ. सिंह हर आज जिला मुख्यालय राजनांदगांव स्थित पद्मश्री गोविंद राम निर्मलकर सभागृह म देवांगन समाज कोति ले आयोजित मां परमेश्वरी महोत्सव ल सम्बोधित करत ए आशय के विचार व्यक्त करिन। उमन…

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राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष श्री चन्द्रशेखर साहू ह मुख्यमंत्री संग करिन सौजन्य मुलाकात

रायपुर, 01 फरवरी 2017। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह मेरन आज इहां ऊंखर निवास कार्यालय म छत्तीसगढ़ वित्त आयोग के अध्यक्ष श्री चन्द्रशेखर साहू ह सौजन्य मुलाकात करिन। उमन राज्य वित्त आयोग के कार्याकाल ल एक साल बर अउ बढाए के निर्णय बर मुख्यमंत्री के प्रति आभार प्रकट करिन। आपमन जानत होहू के वित्त आयोग के कार्याकाल म बढोत्तरी के अधिसूचना काली 31 जनवरी को जारी करे गए रहिस हे। श्री साहू ह प्रदेश म पंचायतीराज संस्था अऊ नगरीय निकाय मन के वित्तीय सशक्तिकरण खातिर राज्य वित्त आयोग कोति ले जउन…

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रूख-राई ला काटे ले अड़बड़ पाप होथे

सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। तइहा के सियान मन कहय-बेटा! रूख-राई ला काटे ले अबड पाप होथे रे। फेर हमन नई मानेन। बिन आँखी-कान के जम्मों रूख-राई ला काटेन। सियान मन कहय-बेटा! रूख-राई लगाए ले संतान बाढथे रे! सही तो आय। अब के संतान मन के खाए पिए बर साग-भाजी घलाव कम होवत हे। का सोंच के हमन तइहा के बात ला नई मानेन। अब मुड घर के पछतात हन। अभी भी कुछु नई बिगड़़े हे। हिन्दी मा कहावत हवै-जभी जागो तभी सवेरा। अभी भी…

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लक्ष्मी नारायण लहरे ‘साहिल’ के कविता

माटी के मितान ! जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान ए कविता ले मिलते जुलत एक कविता सीजी स्‍वर म प्रकाशित हे फेर ये कविता ह ओ कविता ले अलग हे ते खातिर से ये कविता ल कवि के गिलौली के संग छापे जात हे – संपादक माटी के मितान ! जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरवा खेत – खलिहान के मितान जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान नागर बैला हे तोर संग संगवारी हाँथ म तुतारी मुड़ म पागा खान्द म नागर फभे हे तोला सुग्घर हावे तोर…

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बसंत बहार : कोदूराम “दलित”

हेमंत गइस जाड़ा भागिस ,आइस सुख के दाता बसंत जइसे सब-ला सुख देये बर आ जाथे कोन्हो साधु-संत. बड़ गुनकारी अब पवन चले,चिटको न जियानय जाड़ घाम ये ऋतु-माँ सुख पाथयं अघात, मनखे अउ पशु-पंछी तमाम. जम्मो नदिया-नरवा मन के,पानी होगे निच्चट फरियर अउ होगे सब रुख-राई के , डारा -पाना हरियर-हरियर. चंदा मामा बाँटयं चाँदी अउ सुरुज नरायन देय सोन इनकर साहीं पर-उपकारी,तुम ही बताव अउ हवय कोन ? बन,बाग,बगइचा लहलहायं ,झूमय अमराई-फुलवारी भांटा ,भाजी ,मुरई ,मिरचा-मा , भरे हवय मरार-बारी. बड़ सुग्घर फूले लगिन फूल,महकत हें-मन-ला मोहत हें…

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बसंत के बहार

सुघ्घर ममहावत हे आमा के मऊर जेमे बोले कोयलिया कुहूर कुहूर । गावत हे कोयली अऊ नाचत हे मोर, सुघ्घर बगीचा के फूल देखके ओरे ओर। झूम झूम के गावत हे नोनी मन गाना, गाना के राग में टूरा ल देवत ताना । बच्छर भर होगे हे देखे नइहों तोला, कहां आथस जाथस बतावस नहीं मोला । कुहू कुहू बोले कोयलिया ह राग में, बैठे हों पिया आही कहिके आस में । बाजत हे नंगाड़ा अऊ गावत हे फाग, आज काकरो मन ह नइहे उदास । बसंती के रंग में…

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