दोहा हिन्दी साहित्य के जुन्ना विधा आय। भक्तिकाल में कबीर, सूर, तुलसी, रसखान, रहीम आदि कवि मन दोहा के माध्यम ले जन जागरण के काम करिन। बिहारी तो सतसई लिख के अमर होगिन, बिहारी के सतसई परंपरा ल छत्तीसगढी म आगू बढाय के काम श्री बुधराम यादव जी अपन दोहा सतसई “चकमक चिंगारी भरे” म करे हवय। चार चरण अउ दू डांड म कहे जाने वाला दोहा लिखना गगरी म सगरी भरे के चुनौती भरे काम आय। दिखब म जतका सरल दिखथे लिखे म वोतके कठिन काम आय दोहा लिखना,…
Read MoreMonth: March 2017
कहाँ गंवा गे सिरतोन के मनखे
एक दिन के बात आय एक ठन कुकुर पिला दिनभर हमर गाँव के रद्दा म किंजरत रीहिस अऊ ओ रद्दा म बिक्कट गाड़ी मोटर चलत रथे। पिला बड़ सुग्घर धवरी रंग के गोल मटोल दिखत रीहिस जेन देखे तिही ओखर संग खेले के जतन करे लागे। फेर कोनहो वोला रद्दा ले नई टारीन अऊ ओखर माई हा घलो कभू तिर म आये ताहन फेर आने कोती चल देवय। अईसन दिनभर होईस। फेर रतिहा के आठ बजे अलहन होगे ओ पिला ल एक ठन गाड़ी वाला हा रेत के भाग गिस।…
Read Moreमंहगाई
मंहगाई के मार से , बच न सके अब कोय, जेकर जादा लइका रही, तेला मरना होय। का अमीर अऊ का गरीब, सबके एके हाल, चक्की में पिसावत हे, सबके हाल बेहाल । दौलत खातिर लड़त हे, भाई भाई आज, घर परिवार ल दुख देके, अपन करत राज। दौलत ही सब कुछ हे, महिमा अपरंपार, कतको ग्यानी ध्यानी होही, कोनों न पावे पार। जेकर पास दौलत हे, उही करत हे राज , कुछू भी करही तब ले, ओला नइहे लाज । कतको पढ लिख के, घूमत हे बेरोजगार, जब तक…
Read Moreव्यंग्य : नावा खोज
डोकरी दई के छोटे बेटा ला परदेस मे रहत बड़ दिन होगे। चिट्ठी पतरी कमतियागे। बेटा ल बलाये खातिर, खाये, पहिरे अऊ रेहे के निये कही के सोरियावय, डोकरी दई। को जनी काये मजबूरी म फंसे रहय, बेटा नी आवय। तभे मोबाइल जुग आगे, बेटा ओकर बर, मोबाइल पठो दीस। दई पूछीस ये काबर? बेटा बतइस - तोर खाये पिये अऊ रेहे के, सबो समसिया येकरे आगू म गोहनाये कर, समाधान हो जही। दई समझीस के अतेक काम के आय, त येला जतन के राखना चाही। फुला म मढ़हाहूं त,…
Read Moreअसम में जीवंत छत्तीसगढ़
हाल ही में श्री संजीव तिवारी के वेब मैगज़ीन गुरतुर गोठ में एक लेख पढ़ा था जिसमे लोटा के चलन के विलुप्त होने की बात कही गयी थी। चिंता सही हैं क्योंकि अब लोटे का चलन पारंपरिक छत्तीसगढ़ी घरो में उस तरीके से तो कम ही हो गया है जैसा शायद यहाँ पर पहले होता रहा होगा। पर संयोग से इस लेख के पढ़ने के तुरंत बाद ही एक ऐसे इलाके में जाने मिला जहाँ लोटे की उपयोगिता वहां के छत्तीसगढ़ी समाज में देखने मिला। लगता है शायद वह भी…
Read Moreहोरी हे रिंगी चिंगी : रंग मया के डारव संगी
फागुन के महिना रिंगी चिंगी रंगरेलहा अउ बेलबेलहा बरोबर हमर जिनगी मा समाथे। जिनगी के सुख्खा और कोचराय परे रंग मा होरी हा मया-पिरीत,दया-दुलार,ठोली-बोली,हाँसी-ठिठोली के सतरंगी रंग ला भरथे। बसंत रितु हा सरदी के बिदा करे बर महर-महर ममहावत-गमकत गरमी ला संगवारी बनाके फागुन के परघनी करथे। फागुन के आये ले परकीति मा चारों खूँट आनी-बानी के रिंगी-चिंगी रंग बगर जाथे। गहूँ के हरियर रंग,सरसों के पिंयर रंग,आमा मँउर के सोनहा रंग,परसा के आगी बरन लाली रंग,जवाँ,अरसी फूल अउ अँगना मा गोंदा, गुलाब,किसिम-किसिम के फूल घलो छतनार फुले फागुन के…
Read Moreमया के होरी
आवव संगी खेलबो सुग्हर होली, एके जगा जुरिया के करबो हँसी ठिठोली। कोनो ल लगाबो लाली कोनो ल पीला, पिरित के रंग होथे गहिर नीला। एसो के होरी म जुड़ा ले संगी, अपनेच हिरदे के पीरा ल। न ककरो घर बिरान रहय, न कोनो लईका अनाथ होवय। मया के होली पिरित के होली, इही हमर पहिचान रहय। मनखे मनखे मिलके गुलाब बनव , कोनो कतको पियय अईसने शराब बनव। ककरो बर पाँव बनन, त ककरो बर छाँव। फेक दे अध्ररा के आगी ल, जेन सुलगा के रखे हे अतेकन नाव।…
Read Moreनानपन के होरी
नानपन म होरी खेले म अड़बड़ मजा आवय, खोर गली के चिखला म, जहुंरिया मन घोन्डावय। पहिली संझा होली के लकड़ी घर घर ले लावन। सियान संग पूजा करके होली हमन जलवावन। अधरतिया ले नंगारा बजाके अंडबंड गीत गावन। कभू कभू परोसी घर के, झिपारी, लकड़ी चोरावन। उठ बिहनिया बबा संगधरके होली डांड़ जावन। लकड़ी छेना नरियर डारन ऊद बत्ती जलावन। बबा पाछू करीस ताहन नरियर ल खोधियावन। फोरके नरियर खुरहोरी ल झपट-झपट के खावन। पिचकारी म पानी भरके रेंगईया ऊपर पिचकन। कनकन पानी दुसर पिचके त एती ओती बिदकन।…
Read Moreहोली हे भइ होली हे
होली हे भई होली हे , बुरा न मानों होली हे । होली के नाम सुनते साठ मन में एक उमंग अऊ खुसी छा जाथे। काबर होली के तिहार ह घर में बइठ के मनाय के नोहे। ए तिहार ह पारा मोहल्ला अऊ गांव भरके मिलके मनाय के तिहार हरे। कब मनाथे – होली के तिहार ल फागुन महीना के पुन्नी के दिन मनाय जाथे। एकर पहिली बसंत पंचमी के दिन से होली के लकड़ी सकेले के सुरु कर देथे। लइका मन ह सुक्खा लकड़ी ल धीरे धीरे करके सकेलत…
Read Moreबेटी की हत्या : संस्मरण
वाह रे निष्ठुर आदमी बेटे की चाहत में दो दो बेटियों को माँ की कोख में ही मार डाला, तीसरी जब बेटी पैदा हुई तो उस अभागिन की माँ चल बसीI पिता ने फिर दूसरी शादी रचा ली, दूसरी बीवी से एक बेटा हुआ,पिता और माँ का पूरा ध्यान उस अभागिन पलक से हट कर बेटे पर हो गया I पलक धीरे धीरे बड़े होने लगी और वो अपनों के बीच में उसे परायेपन का एहसास होने लगा,चार साल की उम्र में उसकी सौतेली माँ ने वहीं पास के सरकारी…
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