दाई (चौपई छंद) दाई ले बढ़के हे कोन। दाई बिन नइ जग सिरतोन। जतने घर बन लइका लोग। दुख पीरा ला चुप्पे भोग। बिहना रोजे पहिली जाग। गढ़थे दाई सबके भाग। सबले आखिर दाई सोय। नींद घलो पूरा नइ होय। चूल्हा चौका चमकय खोर। राखे दाई ममता घोर। चिक्कन चाँदुर चारो ओर। महके अँगना अउ घर खोर। सबले बड़े हवै बरदान। लइका बर गा गोरस पान। चुपरे काजर पउडर तेल। तब लइका खेले बड़ खेल। कुरथा कपड़ा राखे कॉच। ताहन पहिरे सबझन हाँस। चंदा मामा दाई तीर। रांधे रोटी रांधे…
Read MoreMonth: May 2017
महतारी दिवस विशेष : महतारी महिमा
महतारी महिमा (चौपई/जयकारी छन्द 15-15 मातरा मा) ईश्वर तोर होय आभास, महतारी हे जेखर पास। बनथे बिगङी अपने आप, दाई हरथे दुख संताप।।१ दाई धरती मा भगवान, देव साधना के बरदान। दान धरम जप तप धन धान, दाई तोरे हे पहिचान।।२ दाई ममता के अवतार, दाई कोरा गंगा धार। महतारी के नाँव तियाग, दाई अँचरा बने सुभाग।।३ काशी काबा चारों धाम, दाई देवी देवा नाम। दाई गीता ग्रंथ कुरान, मंत्र आरती गीत अजान।।४ भाखा बोली हे अनमोल, दाई मधुरस मिसरी घोल। महतारी गुरतुर गुलकंद, दाई दया मया आनंद।।५ दाई कागज…
Read Moreबिचार : नैतिकता नंदावत हे
आज में ह बजार कोती जात रहेंव, त रसता म मोर पढ़ाय दू-झिन लईका मिलिस, वोमा के एक झिन लईका ह मोला कहिथे- अउ गुरूजी, का चलत हे ? त तूरते दूसर लईका कहिथे- अउ का चलही जी, फाग चलही| अतका कहिके दुनोंझिन हांसत हांसत भगागे, में ह तो ये सब ल देख-सुन के सन्न रहिगेंव, देख तो! ये लईका मन ल, गुरूजी ल घलो नइ घेपत हे, मोर करा ये हाल हे त दूसर करा अउ का नइ कहत-करत होही| एक हमर जमाना रहिसहे, जब गुरूजी ल दुरिहा ले…
Read Moreलगिन फहराही त बिहाव माढ़ही
बर बिहाव के दिन म जम्मों मनखे इहिच गोठ म लगे रथे, अऊ ठेलहा मनखे हा तो ये मऊका म जम्मों झन के नत्ता जोरे बर अइसे लगे रथे जइसे ओखर नई रेहे ले दुनिया नई चलही, इंजीनियर, डागटर ल घलो ऊखर मन के गोठ सुने ल परथे। छोकरी-छोकरा मन के दाई-ददा ले ज्यादा ओखर घर के सियान मन ल संसो रथे, ओमन तो छोकरी-छोकरा के काच्चा ऊमर ले पाछू परे रथे, ओमन सोचथे के परलोक सिधारे के पहिली नाती-पोता मन के बर-बिहाव देख लेवन। बड़ कन समाज म छोकरी…
Read Moreबेरा के गोठ : गरमी म अईसन खावव पीयव
जेवन ह हमर तन अऊ मन बर बहुतेच जरुरी हे।खानपियन ल सही राखबो त हमर जिनगी ह सुघ्घर रही।भगवान घलो हमर जनम के पहिली ले हमर खायपिये के बेवस्था कर देते।अभी गरमी के मऊसम चलत हे ऐ मऊसम म सबला खाय पीये के धियान रखना चाही।सबले जादा हमर काया ल गरमी म पानी के जरुरत पड़थे।तन अऊ मन ल ठंढा राखे के अऊ पोसक तत्व के बहुतेच जरुरत हे। एकरे सेती हमनल धियान रखना हे कि कोन जिनिस ल खायपिये म संघेरन।हमर सियान गियानिक मन गरमी के दिन म खायबर…
Read Moreबुद्ध-पुन्नी
बईसाख के अंजोरी पाख के पुन्नी के दिन ल बुद्ध-पुन्नी काबर कहे जाथे ? त एखर उत्तर म ये समझ सकत हन के आज ले लगभग अढ़ई हजार बछर पहिली इही दिन भगवान बुद्ध ह ये धरती म जनम धरके अईस, अउ पैतीस बछर के उमर म इही दिन ओला पीपर रूख के नीचे म बईठे रहिस त ओखर तपस्या के फल माने सच के गियान ह अनुभव म अईस, अउ इहीच्च दिन अस्सी बछर के उमर म वो ह अपन देह ल छोड़ के ये दुनिया ले चल दिस|…
Read Moreस्मृति शेष डॉ.विमल कुमार पाठक के श्रद्धांजली सभा, रामनगर मुक्तिधाम, सुपेला भिलाई के वीडियो
ये पाना ल देखते रहव संगी हम लउहे डॉ.जे.आर.सोनी जी अउ एक ठन अउ वीडियो अपलोड करबोन.
Read Moreसुरता : डॉ. विमल कुमार पाठक
डॉ. विमल कुमार पाठक सिरिफ एक साहित्यकार नइ रहिन। उमन अपन जिंदगी म आकाशवाणी म उद्घोषक, मजदूर नेता, कॉलेज म प्रोफेसर, भिलाई स्टील प्लांट म कर्मचारी, पत्रकार अउ कला मर्मज्ञ संग बहुत अकन जवाबदारी निभाईन। आकाशवाणी रायपुर के शुरुआती दौर म उंखर पहिचान सुगंधी भैया के रूप म रहिस अउम केसरी प्रसाद बाजपेई उर्फ बरसाती भैया के संग मिलके किसान भाइ मन बर चौपाल कार्यक्रम देवत रहिन। एखर ले हटके एक किस्सा उमन बताए रहिन -27 मई 1964 के दिन आकाशवाणी रायपुर म वोमन ड्यूटी म रहिन अउ श्रोता मन…
Read Moreमोर भाखा अङबङ गुरतुर हे
मोर भाखा अङबङ गुरतुर हे मोर भाखा म हाँस गोठियालव ग, करमा ददरिया सुआ पंथी संग म नाच लव गा लव ग। मोर भाखा अङबङ गुरतुर हे मोर भाखा म हाँस गोठियालव ग।। रसगुल्ला कस मोर छत्तीसगढी भाखा बने सुहाथे ग, छत्तीसगढी हाँसी ठिठोली मन ला सबके भाथे ग। अंग्रेजी के तुँहर घर अंगना म हमरो भाखा के रंग उठियालव ग मोर भाखा अङबङ गुरतुर हे मोर भाखा म हाँस गोठियालव ग।। साग म जैइसे डुबकी कढही अमटाहा भाँटा मिठाथे ग, उसने हमर भाखा बोली म सुवाद गजब के आथे…
Read Moreहीरा मोती ठेलहा होगे
चंदू गजबेच खुस रहिस जब ओकर धंवरी गाय ह जांवर-जियर बछरु बियाईस।लाली अऊ सादा, दुनों बछवा पिला ल देख चंदू के मन हरियागे ।दुनों ल काबा भर पोटार के ऊंखर कान म नाव धरिस- हीरा अऊ मोती।ओकर गोसाईन समारीन ह पेऊंस बनाके अरोस-परोस म बाटीस ।चंदू के अब रोज के बुता राहय बिहनिया उठके गोबर कचरा फेंकय ,धंवरी ल कोटना मेर बांधके ओकर खायपिये के बेवस्था करय,फेर कलेवा करके खेती बारी में कमायबर जाय । लहुटके संझौती म हीरा-मोती संग खेलय।ओखर चार बछर के लईका संतोष घलो संगेसंग खेलय। समारीन…
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