उत्तर कांड के एक अंश छत्तीसगढी म

अब तो करम के रहिस एक दिन बाकी कब देखन पाबों राम लला के झांकी हे भाल पांच में परिन सबेच नर नारी देहे दुबवराइस राम विरह मा भारी दोहा – सगुन होय सुन्दर सकल सबके मन आनंद। पुर सोभा जइसे कहे, आवत रघुकुल चंद।। महतारी मन ला लगे, अब पूरिस मन काम कोनो अव कहतेच हवे, आवत बन ले राम जेवनी आंखी औ भूजा, फरके बारंबार भरत सगुन ला जानके मन मां करे विचार अब तो करार के रहिस एक दिन बाकी दुख भइस सोच हिरदे मंगल राम टांकी…

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अपन अपन रुख

[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये खबर ला सुनव”] रुख रई जंगल के , बिनास देख , भगवान चिनतीत रिहीस । ओहा मनखे मन के मीटिंग बलाके , रुख रई लगाये के सलाह दीस । कुछ बछर पाछू , भुंइया जस के तस । फोकट म कोन लगाहीं । भगवान मनखे मन ल , लालच देवत किहीस के रुख रई के जंगल लगाये बर , मनखे ल , मुफत म भुंइया अऊ नान नान पऊधा बितरन करहूं , संगे संग घोसना करीन के , जे मनखे मोर दे भुंईया म बहुत अकन…

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आ, इ, ई, छत्‍तीसगढ़ी हिन्‍दी शब्‍दकोश

आ आँकना (क्रि.)  चिकित्सा के उद्देश्य से शरीर के पीडित भाग को गर्म लोहे से जलाना या दागना। आँकुस (सं.)  1. अंकुश 2. नियंत्रण। आँखी (सं.)  आँख। आँच (सं.)  लौ की गरमी, हल्का ताप। आँजर-पाँजर (सं.)  1. शरीर का पिंजरा, विशेषत: शरीर की नश्वरत्ता संकेतित करने के लिए प्रयुक्त शब्द। दे. “ढाँचा” 2. अंग-प्रत्यंग। आँट (सं.)  1. रस्सी की ऐंठ 2. चबूतरा। आँटना (क्रि.)  1. रस्सी बँटना 12. घुमाना, चलाना। आँटी (सं.)  1. रस्सी बँटने का लकड़ी का बना उपकरण 2. दे. बाँटी 3. खेल की एक स्थिति। आँठ (सं.)…

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अ – छत्‍तीसगढ़ी हिन्‍दी शब्‍दकोश

अँइठी (वि.)  गोल मुड़ी हुई, ऐंठ कर बनाई हुई, एक आभूषण। अइलहा (वि.)  कुम्हलाया हुआ। अइलाना (क्रि.)  कुम्हलाना। (सं.) उबाली गई तिवरा मटर, अरहर आदि की कच्ची फली। अँकरी (सं.)  घास की जाति का एक अनाज जिसमेँ छोटे-छोटे गोल दाने होते हैं। अँकबार (सं.)  1. आलिंगन 2. दोनों भुजाओं के अन्दर भर जानेवाली फसल की मात्रा। अँकवारना (क्रि  आलिंगन करना, अंक में भरना, परस्पर लिपट कर भेंट करना, गले मिलना। अँकुआ (सं.)  ऑंकने, दागने के लिए प्रयुक्त छोटा हँसिया। दे. ‘अँकुआना’ अँकुआना (क्रि.)  मोच या सूजन को जलाने की स्थिति…

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मोर गांव कहां गंवागे

मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनो खोज के लावो। भाखा बोली सबो बदलगे, मया कहां में पावों। काहनी किस्सा सबो नंदागे, पीपर पेड़ कटागे । नइ सकलाये कोनों चंउरा में, कोयली घलो उड़ागे। सुन्ना परगे लीम चंउरा ह, रात दिन खेलत जुंवा । दारु मउहा पीके संगी, करत हे हुंवा हुंवा । मोर अंतस के दुख पीरा ल, कोन ल मय बतावों मोर गांव कहां ………………….. जवांरा भोजली महापरसाद के, रिसता ह नंदागे । सुवारथ के संगवारी बनगे, मन में कपट समागे । राम राम बोले बर छोड़ दीस, हाय…

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माटी मुड मिंजनी

हमर गाव जुनवानी के माटी मुडमिंजनी चिटिक सुन लव संगी डहर चलती एकर कहनी आधातेच प्रसिद्ध पथरा- माटी हवे शोर अडताफ म भारी उडथे अचरुज हे पथरा मन के कथा गांव म जे मुह ते सुनले गजब गाथा अभी तो सुनव माटी के महिमा पांच किसिम के हवे करिश्मा कन्हार -दोमट हवे मटासी लाल मुरम अउ पिवरी छुही ऊपजे धान कत्कोन ओन्हारी जाके देखव मंदिर अस खरही चुंगडी-बोरा भरके गौतरिहा मन अपन-अपन घर ले जाथे माटीच लेगे बर जेठ बैसाख म घरोघर सगा मन आथे दही म रातभर भिंजो के…

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नरसिंह दास वैष्‍णव के शिवायन के एक झलक

आइगे बरात गांव-तीर भोला बाबा जी के देखे जाबो चल गीयॉं संगी ल जगाव रे डारो टोपि, मारो धोति, पॉंव पयजामा कसि गरगल बांधा अंग कुरता लगाव रे हेरा पनही, दौड़ंत बनही कहे नरसिंहदास एक बार छूंहा करि सबे कहूँ धाव रे पहुँच गये सुक्खा भये देखि केंह नहिं बाबा नहिं बब्बा कहे प्राण ले अगाव रे कोऊ भूत चढ़े गदहा चढ़े कूकूर म चढ़े कोऊ-कोऊ कोलिहा म चढि़ आवत कोऊ बिघवा म चढि़ कोऊ बघवा म चढि़ कोऊ घुघुवा म चढि़ हाँकत-उड़ावत सर्र-सर्र सांप करे गर्र-गर्र बाघ रे हॉंव-हॉंव…

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हमर भाग मानी ये तोर जईसन हितवा हे

आज के समे म कोनो ककरो नई होवय तईसे लागथे,मनखे के गोठ बात बिना सुवारथ के दूसर मनखे नई सुनय I अऊ बात बने सही रईहीं तभो वोकर बात ल कोनों नई गुनय, भाई मन बाटें भाई परोसी होगे हे, एक दूसर बर बईरी का कहिबे एक दूसर ल फूटे आँखी नई सुहावय Iसमे बदल गेहे अऊ मनखे मन बदल गेहे फेर ईतवारी बड़ा के मंझिला लईका मालचु ह नई बदलीच, भागमभाग अऊ बयसायीकरन के पल्ला दौड़ म लोगन मन अंधिरियागे हे फेर ईतवारी के संसकार ह मालचु ल अईसे…

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भोरमदेव – छत्तीसगढ़ के खजुराहो

हमर देश में छत्तीसगढ़ के अलग पहिचान हे। इंहा के संस्कृति, रिती रिवाज, भाखा बोली, मंदिर देवाला, तीरथ धाम, नदियां नरवा, जंगल पहाड़ सबके अलगे पहिचान हे। हमर छत्तीसगढ़ में कोनों चीज के कमी नइहे। फेर एकर सही उपयोग करे के जरुरत हे। इंहा के परयटन स्थल मन ल विकसित करे के जरुरत हे। बहुत अकन परयटन स्थल के विकास अभी भी नइ होहे। जब तक सरकार ह एकर ऊपर धियान नइ दिही तब तक एकर विकास नइ हो सके। कबीरधाम जिला में एक जगा हे भोरमदेव एला छत्तीसगढ़ के…

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कबीर जयंती : जाति जुलाहा नाम कबीरा बनि बनि फिरै उदासी

[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये खबर ला सुनव”] परमसंत कबीर दास जी अईसन कलम के बीर हरे जे ह अपन समय के समाज म चलत धरम अउ जाति के भेदभाव, कुरीति, ऊंचनीच,पाखंड, छूवाछूत अउ आडंबर के बिरोध म अपन अवाज ल बुलंद करिस अउ समाज म समता लाय खातिर अपन पूरा जीवन ल लगा दीस । ओ समय म लोग-बाग मन एक तरफ तो मुस्लिम राजा मन के अत्याचार म त्रस्त राहय त दूसर तरफ हिंदू पंडित मन के कर्मकांड, पाखंड अउ छुवाछुत ले। वईसे तो कबीर दास जी ह पढ़े-लिखे…

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