मंजूर के गांव मंजूरपहरी : सियान मन के सीख

[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये सीख ला सुनव”] सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! मंजूरपहरी हर मंजूर के गांव आय रे। फेर हमन नई मानन। वि.खं.-बिल्हा, जिला-बिलासपुर के गांव सीपत ले लगभग 18 कि.मी. के दूरी में एक ठन गांव हवै मंजूरपहरी । ए गांव के नाम मंजूरपहरी कइसे परिस ए बारे मा जानकारी मिलस ए गांव के सरपंच श्री मती रमौतिन बाई पति श्री राम नेताम से। ए गांव मा जइसे प्रवेश होथे हमन ला एक सुघ्घर पहाड़ी मिलथे…

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प्रकृति के पयलगी पखार लन

आवव, परकीति के पयलगी पखार लन। धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन। परकीति के पयलगी पखार लन।। धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन।।। रुख-राई फूल-फल देथे, सुख-सांति सकल सहेजे। सरी संसार सवारथ के,, परमारथ असल देथे।। धरती के दुलरवा ला दुलार लन। जीयत जागत जतन जोहार लन।। परकीति के पयलगी पखार लन।।1 रुख-राई संग संगवारी, जग बर बङ उपकारी। अन-जल के भंडार भरै, बसंदर के बने अटारी।। मत कभु टँगिया,आरी,कटार बन। घर कुरिया ल कखरो उजार झन।। धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।2 रुख-राई ला देख बादर, बरसथे उछला आगर।…

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मोला करजा नई सुहावय

सार गोठ (मोर अंतस के सवाल ये हरे कि करजा नई सुहावय त जनम ले दाई-ददा हमर बर जे करे रथे वो करजा मुड म लदाय रथे तेला काबर नई छुटय? अऊ सिरतोन कबे त करजा करे के कोनो ल साद नई लागय फेर अपन लइका बर, परवार बर, जिनगी के बिपत बेरा म करजा घलो करे ल परथे।) एक झन नौकरिहा संगवारी हा, अपन दाई ल मोटर म चघइस। ओ सियानिन हा चिरहा झोला ल मोटराये रहय अऊ मोटर म चघेच के बेरा ओकर पोलखर हा झोला ले गिर…

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असाढ़ के आसरा हे

सूरुज नरायन ला जेठ मा जेवानी चढ़थे। जेठ मा जेवानी ला पाके जँउहर तपथे सूरुज नरायन हा। ताते-तात उछरथे, कोनो ला नइ घेपय ठाढ़े तपथे। रुख-राई के जम्मों पाना-डारा हा लेसा जाथे, चिरई-चिरगुन का मनखे के चेत हरा जाथे। धरती के जम्मों जीव-परानी मन अगास डाहर ला देखत रथें टुकुर-टुकुर अउ सूरज हा मनगरजी मा मनेमन हाँसत रथे मुचुर-मुचुर। सूरुज के आगी ले तन-मन मा भारी परे रथे फोरा,आस लगाय सब करत हें असाढ़ के अगोरा। गरमी के थपरा परे ले सबो के तन मा अमा जाथे अलाली अउ असाढ़…

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घर तीर के रुखराई जानव दवई : बेरा के गोठ

हमर पुरखा मन आदिकाल ले रुख राई के तीर मा रहत अऊ जिनगी पहात आवत हे। मनखे ह जनमेच ले जंगलीच आय। जंगल मा कुंदरा मा रहे।रुख राई बिन ओखर जिनगी नई कटय। हजारो बच्छर बीत गे , मनखे अपन मति ल बऊर के जंगल ले निकल के सहर बना डरिस फेर रुख राई के मोहो ल नई तियाग सकिन।घर मा फुलवारी बनाके जीयत हे। आज गांव अऊ सहर घर ,अरोस परोस म गजबेच रुख राई के दरसन परसन होथे।बर, पीपर, आमा, अमली, लीम, लिमऊ, जाम ( बीही), चिरईजाम (…

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किसानी के दिन आगे

नांगर अऊ तुतारी के जुड़ा अऊ पंचारी के रापा गैंती कुदारी के मनटोरा मोटियारी के मनबोध ला सुरता आगे किसानी के दिन आगे । कबरा लाल धौंरा के खुमरी अऊ कमरा के आनी बानी रंग मोरा के बांटी अऊ भौंरा के भाग फेर जागगे किसानी के दिन आगे । बादर अऊ पानी के खपरा खदर छानी के डोकरा डोकरी कहिनी के लिमऊ आमा चटनी के दिन फेर लकठियागे किसानी के दिन आगे । धान खेती करइया के जामुन लीम छईंया के गीत ददरिया गवइया के गोंदली बासी अमरईया के सबके…

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कन्या भोज (लघुकथा )

आज रमेश घर बरा,सोंहारी,खीर ,पुरी आनी बानी के जिनीस बनत राहे । ओकर सुगंध ह महर महर घर भर अऊ बाहिर तक ममहावत राहे। रमेश के नान – नान लइका मन घूम घूम के खावत रिहिसे । कुरिया में बइठे रमेश के दाई ह देखत राहे, के बहू ह मोरो बर कब रोटी पीठा लाही ।भूख के मारे ओकर जी ह कलबलात राहे ।फेर बहू के आदत ल देखके बोल नइ सकत राहे ।बिचारी ह कलेचुप खटिया में बइठ के टुकुर – टुकुर देखत राहे । थोकिन बाद में पारा…

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