हमर बोली-भासा

मोला नीक लागे जी,हमर भासा-बोली । पुरखा के सिरजाये,हंसी अउ ठिठोली ।। मोला नीक लागे जी……….. गुरतुर मिठास हावै,बोली अउ जुबान मा। कतको परदेशिया, रिझगे गा ईमान मा।। बोली छत्तीसगढ़िया ,भरे मिठ झोली । मोला नीक लागे जी…………… बनत हावै भासा जी, छत्तीसगढ़ राज म। करबो बोली-बात,सरकारी काम-काज म।। हमर भासा ले भरही , सरकारी खोली । मोला नीक लागे जी……………. हमर भासा में दया-मया,परेम ह बरसथे। सिधवा होथे मनखे,इंहा परदेसी लपकथे।। घुल-मिल के सबो भाई ,रहिथे हम जोली। मोला नीक लागे जी….. बोधन राम निषाद”राज” स./लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.) [responsivevoice_button voice=”Hindi…

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झगरा रोज मताथे

ननद नोनी तोर भईया हा रोज पी के आथे। ओखी करके बात बात मा झगरा रोज मताथे। ननद नोनी तोर.. पीरा ला मोर मन के नोनी,कोन ला मंय हा बतावंव। नइ माने मोर बात ला बहिनी,कइसे मंय समझावंव। दू दिन बर आना नोनी अपन भईया ला समझा दे। नंनद नोनी तोर.. नइ बताय हंव मइके में,मोर पति के हिंता होही। ददा हा तरूवा पीटही,दाई बमफार के रोही। झन पी दारू ला कहि परथंव,कुट कुट ले मोला ठठाथे। नंनद नोनी तोर… काम बुता मा नइ ठिकाना,ठेलहा घुमत रहिथे। दारू पिये बर…

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गऊ माता ल बचाओ – सुख समृद्धि पाओ

गाय ह एक पालतू जानवर हरे । एला हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई अऊ संसार में जतका धरम हे , सब धरम के आदमी मन एकर पालन पोसन करथे । काबर कि गाय से बहुत आमदनी होथे । गाय ही एक अइसे जानवर हरे जेहा जीयत में तो काम आथे, अऊ मरे के बाद भी एकर चमड़ा अऊ हड्डी तक ह काम आथे । हर परकार के उपयोगी होय के कारन हिन्दू धरम में एला गऊ माता कहे जाथे । गाय ल विस्व के सबो देस में पाले जाथे । भोजन…

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फांदा मा परगे किसानी

फांदा मा परगे किसानी नुन मिरचा अउ बासी भात सुते नई हंव कतको रात खेती नई हे बहुत असानी फांदा मा परगे किसानी रगड के हमन बुता करेन बुता करके बिमार परेन ए बछर काबर बरसत नई हे पानी फांदा मा परगे किसानी कोन समझ ही पीरा ला कइसे भगई धान के कीरा ला हमर ले होगे नदानी फांदा मा परगे किसानी किसानी होगे दुखदाई फलत फुलत हे रूखराई सावन के होगे मनमानी फांदा मा परगे किसानी मुड धरके बइठे हन भुख मा हमन अइठे हन पीरा हरा दुर्गा रानी…

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मोर छत्तीसगढ़ कहां गंवागे

मोर छत्तीसगढ़ कहां गंवागे संगी कोनो खोज के लाववं भाखा बोली सबो बदलगे मया कहां के मैंय पाववं कहानी किस्सा सबो नंदागे पीपर पेड़ कटागे नई सकलाय कोनो चाउंरा म कोयली घलोक उड़ागे सुन्ना परगे लीम चाउंरा म रात दिन खेलत जुंआ दारु महुरा पीके संगी करत हे हुंआ हुंआ मोर अंतस के दुख पीरा ल कोनो ल मैंय बतावं मोर छत्तीसगढ़ कहां गंवागे संगी कोनो खोज के लाववं जंवारा भोजली महापरसाद के रिसता ह नंदागे सुवारथ के संगवारी बनगे मन म कपट समागे राम-राम बोले बर छोड़ दिस हाय्…

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एकलव्य के द्रोनाचार्य बनगे गांधीजी

हमन हर बच्छर 2 अक्टूबर के दिन देस के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जनमदिन मनाथन अउ ओकर देखाय रद्दा अउ कामबुता के सुरता करथन। देस ले अंगरेज मन ल भगाय बर कइसे अपन नीति ल भुंइया मा उतारिन ओला अवइया पीढ़ी ल बताथन। ओकर बताय रद्दा ह आज गांधीवाद बनगे। अहिंसा, सत्याग्रह, अछूत उद्धार,कुटीर उद्योग, बुनियादी सिक्छा , परदेसी जिनिस के बिरोध, गरीब के सेवा, सौचालय स्वच्छता, अउ नानम परकार के बुता करे के रद्दा देखाइन। आज के इस्थिति मा देखथन त जतका मनखे, लोग -लइका, माई लोगिन ( राजनीतिक…

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व्‍यंग्‍य : रोटी सेंकन मय चलेंव………

छत्तीसगढ़िया मन के आदत कहां जाही। बिगन भात बोजे पेट नी भरय। फेर कुछ समे ले मोर सुवारी ला को जनी काये होगे रहय, कोन ओकर कमपयूटर कस बोदा दिमाग ला हेक करके, रोटी नाव के वाइरस डार दे रहय, फकत रोटीच सेंके के गोठ करथय। भाग के लेखा ताय, अनपढ़, निच्चट सिधवी अऊ नरम सुभाव टूरी संग बिहाव होय रिहीस मोर। फेर कुछ समे ले, होटल के रोटी कस चेम्मर, टेड़गा, पेचका होवत जात रिहीस । अखबार म कोन जनी काये पढ़हय, फकत इहीच पूछय, हमर देस म, अतेक मनखे मन रोटी सेंकत…

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व्‍यंग्‍य कविता : सफई अभियान

चलव आज फेर, अरछी परछी, कुरिया दुवारी के ,जाला ल झार लेथन। बाहिर कहूं चिकना गिस होही त, अब अंतस ल बहार लेथन ।। गांधी बबा ल घलो , अब देखाए ल परही। एक दिन बर सफई के, ढोंग लगाए ल परही। अपन घर ल बहार के, परोसी के मुंहाटी म फेंक । तब अहिंसा के पाठ ल, डंंडा अउ तलवार म देख ।। गांधी बबा के तीनो बेंदरा मन घलो, उतर जथे लड़ाई मा। अउ दू अक्टूबर के दिन नारा लगवाही, अपने बढ़ई मा।। बड़े बड़े गांधीवादी मन के,…

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सरसी छंद : जनकवि कोदूराम “दलित” जी

धन धन हे टिकरी अर्जुन्दा,दुरुग जिला के ग्राम। पावन भुँइया मा जनमे हे,जनकवि कोदूराम। पाँच मार्च उन्नीस् सौ दस के,होइस जब अवतार। खुशी बगरगे गाँव गली मा,कुलकै घर परिवार। रामभरोसा ददा ओखरे,आय कृषक मजदूर। बहुत गरीबी रहै तभो ले,ख्याल करै भरपूर। इसकुल जावै अर्जुन्दा के,लादे बस्ता पीठ। बारहखड़ी पहाड़ा गिनती,सुनके लागय मीठ। बालक पन ले पढ़े लिखे मा,खूब रहै हुँशियार। तेखर सेती अपन गुरू के,पावय मया दुलार। पढ़ लिख के बनगे अध्यापक,बाँटय उज्जर ज्ञान। समे पाय साहित सिरजन कर,बनगे ‘दलित’महान। तिथि अठ्ठाइस माह सितम्बर,सन सड़सठ के साल। जन जन ला…

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