पूस के रात : प्रेमचंद के कहानी के छत्तीसगढ़ी अनुवाद

हल्कू हा आके अपन सुवारी ले कहीस- “सहना हा आए हे,लान जउन रुपिया राखे हन, वोला दे दँव। कइसनो करके ए घेंच तो छुटय।” मुन्नी बाहरत रहीस। पाछू लहुट के बोलिस- तीन रुपिया भर तो हावय, एहू ला दे देबे ता कमरा कहाँ ले आही? माँघ-पूस के रातखार मा कइसे कटही? वोला कही दे, फसल होय मा रुपिया देबो। अभी नहीं। हल्कू चिटिक कून असमंजस मा परे ठाढ़े रहीगे। पूस मुँड़ उपर आगे,कमरा के बिन खार मा वोहा रात कन कइसनो करके नइ सुत सकय। फेर सहना नइच मानय,धमकी-चमकी लगाही,गारी-गल्ला…

Read More

बइला चरवाहा अउ संउजिया

अचानक वो दिन मैं अपन मूल इसकुल म जा परेंव। टूरी मन मोर चारोखुंट जुरिया गे। मैं ह टूरी मिडिल इसकुल के हेडमास्टर हरंव न। टूरी मन अपन-अपन ले पूछे ल धर लिन- “कहाँ चल दे रेहे बड़े सर, इहाँ कइसे नइ आवस? हमर मन के पढ़ई- लिखई बरबाद होवत हे। चर-चर झिन सर मन इसकुल म आना बंद कर दे हव?” “काय करबे नोनी हो, बइला चरवाहा मन हड़ताल म चल दे हे। कतको बरदी मन बइलच चरवाहा के भरोसा चलत हे। सरकार ह बरदी ठोंके बर संउजिया मन…

Read More

मीठ बोली हे मैना कस

मीठ बोली हे मैना कस,भाखा छत्तीसगढ़ी। बने बने गोठियालौ संगी,सबके मन बढ़ही।। हो हो हो…….. सुआ अउ ददरिया के, गुरतुर मिठास हे। कोयली बोले मैना अउ,पड़की के आस हे।। जरन दे जरइया ला,ओखर छाती जरही। मीठ बोली हे मैना कस…….हो हो हो…. करमा में झूमय सबो, बने माढ़े ताल हा। पागा में कलगी खोंचे,थिरकतहे चाल हा।। झमाझम मांदर बाजे,संगे संग मा झुलही। मीठ बोली हे मैना कस…….हो हो हो…. छत्तीसगढ़िया मोर तैं,भाई हस किसान गा। सुख दुःख के संगी मोर,हितवा मितान गा।। जाँगर के पेरइया संग, कोन इहाँ लड़ही। मीठ…

Read More

व्यंग्य : गिनती करोड़ के

पान ठेला म घनश्याम बाबू ल जईसे बईठे देखिस ,परस धकर लकर साइकिल ल टेका के ओकर तीर म बईठगे। पान वाला बनवारी ल दू ठिन पान के आडर देवत का रही भईया तोर म काहत घनश्याम ल अंखियईस। दू मिनट पहिलीच एक पान मुहु म भरके चिखला सनाय भईसा कस पगुरात बईठे रिहीस। बरोबर सुपारी ह घलो चबाय नइहे अउ एति पान के आडर। अभीच भरे हंव काहत घनश्याम बाबू मना करत मुड़ी हलइस फेर परस के दरियादिली के आगु ओकर कंजुसी चलबे नइ करय। जइसे बनवारी पान ल…

Read More

जस गीत : कुंडलिया छंद

काली गरजे काल कस,आँखी हावय लाल। खाड़ा खप्पर हाथ हे,बने असुर के काल। बने असुर के काल,गजब ढाये रन भीतर। मार काट कर जाय,मरय दानव जस तीतर। गरजे बड़ चिचियाय,धरे हाथे मा थाली। होवय हाँहाकार,खून पीये बड़ काली। सूरज ले बड़ ताप मा,टिकली चमके माथ। गल मा माला मूंड के,बाँधे कनिहा हाथ। बाँधे कनिहा हाथ,देंह हे कारी कारी। चुंदी हे छरियाय,दाँत हावय जस आरी। बहे लहू के धार,लाल होगे बड़ भूरज। नाचत हे बिकराल,डरय चंदा अउ सूरज। घबराये तीनो तिलिक,काली ला अस देख। सबके बनगे काल वो,बिगड़े ब्रम्हा लेख। बिगड़े…

Read More

अंधविसवास

असाढ के महिना में घनघोर बादर छाय राहे ।ठंडा ठंडा हावा भी चलत राहे। अइसने मौसम में लइका मन ल खेले में अब्बड़ मजा आथे। संझा के बेरा मैदान में सोनू, सुनील, संतोष, सरवन, देव,ललित अमन सबो संगवारी मन गेंद खेलत रिहिसे। खेलत खेलत गेंद ह जोर से फेंका जथे अऊ गडढा डाहर चल देथे। सोनू ह भागत भागत जाथे अऊ गडढा में उतर जथे। ओ गडढा में एक ठन बड़े जान सांप रथे अऊ सोनू ल चाब देथे ।सोनू ह जोर जोर से अब्बड़ रोथे अऊ रोवत रोवत बेहोस…

Read More