गज़ल – ओखी

तोर संग जब जब मोर जीत के दांव होती आही, पासा के चले बर चाल तोला बस गोंटी चाही! कभू नीलम कभू हुदहुद कभू धरे नाव सुनामी, मोला करे बरबाद अब तोला तो ‘ओखी’ चाही! मोर घर कुंदरा उड़ागे तोर रूप के बंड़ोरा म, उघरगे लाज बचाये बर दू गज लंगोटी चाही! आगी बरथे मोर पेट तोर रुताये पानी ले, ए दांवा बुताय बर नानकुन कुटका रोटी चाही! घेरी बेरी डराथस हम ल तै डरपोकना जान, पेट चीर के ले आनथन जब हम ल मोती चाही! तहस नहस करके फूलवारी…

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आसो के जाड़

जाड़ म जमगे, माँस-हाड़। आसो बिकट बाढ़े हे जाड़। आँवर-भाँवर मनखे जुरे हे, गली – खोर म भुर्री बार। लादे उपर लादत हे, सेटर कमरा कथरी। तभो ले कपकपा गे, हाड़ -मांस- अतड़ी। जाड़ म घलो,जिया जरगे। मुँहूं ले निकले धूंगिया। तात पानी पियई झलकई, चाहा तीर लोरे सूँघिया। जाड़ जड़े तमाचा; हनियाके। रतिहा- संझा अउ बिहनिया के। दाँत किटकिटाय,गोड़-हाथ कापे, कोन खड़े जाड़ म, तनियाके? बिहना धुँधरा म,सुरुज अरझ गे। कोहरा के रंग म,चोरो-खूंट रचगे। दुरिहा के मनखे,चिन्हाय नही। छंइहा जाड़ म,सुहाय नही। जाड़ ल जीते बर, मनखे करथे…

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पण्डवानी शैली के लोकप्रिय कबीर भजन गायिका : त्रिवेणी साहू

पण्डवानी के नाम सुनते साठ हमर आँखी के आघू म पाँचो पाण्डव के कथा चलचित्र सरिक चले लागथे । पण्डवानी मा अब तक आप पाण्डव/महाभारत के ही कथा सुने होहू फेर अब पण्डवानी शैली म कबीर के जीवन दर्शन भी गाये जावत हे अउ श्रोता मन ओतके आनन्दित होके सुनत भी हवय। पण्डवानी शैली म लोकप्रिय कबीर भजन गायिका बहन त्रिवेणी साहू सँग भेंट होइस। गोठ-बात के अंश :- आप पण्डवानी शैली म कबीर भजन गायन कब ले करत हव ? – मोर माताजी स्व.फूलबाई साहू (पण्डवानी शैली के प्रथम…

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मड़ई मेला

हमर छत्तीसगढ़ माटी के एकठन प्रमुख परब (तिहार) मड़ई मेला हर आय। मड़ई के नाव लेत्तेच म मन मा उत्साह अउ उमंग भर जथे। ए तिहार ला हमर राउत भैया मन बड़ धूम धाम से मनाथे। मड़ई मेला देवारी ले लेके महाशिवरात्रि परब तक चलथे। मड़ई मेला के आयोजन राउत भैया अऊ पूरा गाँव भरके मिलके करवाथे। मड़ई के आयोजन राउत मन के बदना तको रथे। बदना के सेती एकर आयोजन के खरचा ला बदना बदइया हा अकेल्ला उठाथे। मड़ई के आयोजन राउत मन के कुल देवता बर श्रद्धा अउ…

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पूस के रात : प्रेमचंद के कहानी के छत्तीसगढ़ी अनुवाद

हल्कू हा आके अपन सुवारी ले कहीस- “सहना हा आए हे,लान जउन रुपिया राखे हन, वोला दे दँव। कइसनो करके ए घेंच तो छुटय।” मुन्नी बाहरत रहीस। पाछू लहुट के बोलिस- तीन रुपिया भर तो हावय, एहू ला दे देबे ता कमरा कहाँ ले आही? माँघ-पूस के रातखार मा कइसे कटही? वोला कही दे, फसल होय मा रुपिया देबो। अभी नहीं। हल्कू चिटिक कून असमंजस मा परे ठाढ़े रहीगे। पूस मुँड़ उपर आगे,कमरा के बिन खार मा वोहा रात कन कइसनो करके नइ सुत सकय। फेर सहना नइच मानय,धमकी-चमकी लगाही,गारी-गल्ला…

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बइला चरवाहा अउ संउजिया

अचानक वो दिन मैं अपन मूल इसकुल म जा परेंव। टूरी मन मोर चारोखुंट जुरिया गे। मैं ह टूरी मिडिल इसकुल के हेडमास्टर हरंव न। टूरी मन अपन-अपन ले पूछे ल धर लिन- “कहाँ चल दे रेहे बड़े सर, इहाँ कइसे नइ आवस? हमर मन के पढ़ई- लिखई बरबाद होवत हे। चर-चर झिन सर मन इसकुल म आना बंद कर दे हव?” “काय करबे नोनी हो, बइला चरवाहा मन हड़ताल म चल दे हे। कतको बरदी मन बइलच चरवाहा के भरोसा चलत हे। सरकार ह बरदी ठोंके बर संउजिया मन…

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मीठ बोली हे मैना कस

मीठ बोली हे मैना कस,भाखा छत्तीसगढ़ी। बने बने गोठियालौ संगी,सबके मन बढ़ही।। हो हो हो…….. सुआ अउ ददरिया के, गुरतुर मिठास हे। कोयली बोले मैना अउ,पड़की के आस हे।। जरन दे जरइया ला,ओखर छाती जरही। मीठ बोली हे मैना कस…….हो हो हो…. करमा में झूमय सबो, बने माढ़े ताल हा। पागा में कलगी खोंचे,थिरकतहे चाल हा।। झमाझम मांदर बाजे,संगे संग मा झुलही। मीठ बोली हे मैना कस…….हो हो हो…. छत्तीसगढ़िया मोर तैं,भाई हस किसान गा। सुख दुःख के संगी मोर,हितवा मितान गा।। जाँगर के पेरइया संग, कोन इहाँ लड़ही। मीठ…

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व्यंग्य : गिनती करोड़ के

पान ठेला म घनश्याम बाबू ल जईसे बईठे देखिस ,परस धकर लकर साइकिल ल टेका के ओकर तीर म बईठगे। पान वाला बनवारी ल दू ठिन पान के आडर देवत का रही भईया तोर म काहत घनश्याम ल अंखियईस। दू मिनट पहिलीच एक पान मुहु म भरके चिखला सनाय भईसा कस पगुरात बईठे रिहीस। बरोबर सुपारी ह घलो चबाय नइहे अउ एति पान के आडर। अभीच भरे हंव काहत घनश्याम बाबू मना करत मुड़ी हलइस फेर परस के दरियादिली के आगु ओकर कंजुसी चलबे नइ करय। जइसे बनवारी पान ल…

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जस गीत : कुंडलिया छंद

काली गरजे काल कस,आँखी हावय लाल। खाड़ा खप्पर हाथ हे,बने असुर के काल। बने असुर के काल,गजब ढाये रन भीतर। मार काट कर जाय,मरय दानव जस तीतर। गरजे बड़ चिचियाय,धरे हाथे मा थाली। होवय हाँहाकार,खून पीये बड़ काली। सूरज ले बड़ ताप मा,टिकली चमके माथ। गल मा माला मूंड के,बाँधे कनिहा हाथ। बाँधे कनिहा हाथ,देंह हे कारी कारी। चुंदी हे छरियाय,दाँत हावय जस आरी। बहे लहू के धार,लाल होगे बड़ भूरज। नाचत हे बिकराल,डरय चंदा अउ सूरज। घबराये तीनो तिलिक,काली ला अस देख। सबके बनगे काल वो,बिगड़े ब्रम्हा लेख। बिगड़े…

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अंधविसवास

असाढ के महिना में घनघोर बादर छाय राहे ।ठंडा ठंडा हावा भी चलत राहे। अइसने मौसम में लइका मन ल खेले में अब्बड़ मजा आथे। संझा के बेरा मैदान में सोनू, सुनील, संतोष, सरवन, देव,ललित अमन सबो संगवारी मन गेंद खेलत रिहिसे। खेलत खेलत गेंद ह जोर से फेंका जथे अऊ गडढा डाहर चल देथे। सोनू ह भागत भागत जाथे अऊ गडढा में उतर जथे। ओ गडढा में एक ठन बड़े जान सांप रथे अऊ सोनू ल चाब देथे ।सोनू ह जोर जोर से अब्बड़ रोथे अऊ रोवत रोवत बेहोस…

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