पितर के कउंवा

जेन घर मा दाई ददा ह, जियत म आंसू बोहाही ग । ओ घर के तोरई भात, हमला कइसे मिठाही ग ।। बाई के बुध म दाई ददा ल, कलप कलप के रोवावत हे । सरवन बनके उही मनखे, गंगा म हाड़ा बोहावत हे ।। ओ घर मा पितर मन काबर लहुट के आही ग….। जेन घर… जेन घर मा सम्मान सियान के, आसीस देथे बाप महतारी ह। ओ घर ह मंदीर बरोबर परसाद हे बरा सोंहारी ह ।। ऊही मनखे मन पितर-लोक ल पाही ग… राम कुमार साहू सिल्हाटी,…

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लघु कथा : पितर नेवता

आवव पितर हो आज तुंहर बर बरा सोंहारी तसमई बने हे, का होइस पहिली तुमन ला खाय बर नइ मिलिस त आज खा लेवव। जीयत के दुःख ला भुला जावव वो समे के बात अलगे रिहिस, दाई ददा हो जवानी म तुंहर बहु के मूड़ तुमन ला देखत पिरावय अउ तियासी बासी अउ चार दिन के भरे पानी ल देवय, फेर अब बने होंगे हे, तुंहर बर फुलकसिया थारी अउ पीढ़ा मा रोजे आरूग पानी मढ़ाथे। अउ बोली भाखा हा घलो बने होगे हे। डोकरी-डोकरा ले अब सियान-सियानिन कहे लग…

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सिरिफ नौ दिन के बगुला भगत

ये दे नवरातरी अवइया हे,मनखे मन नौ दिन बर बगुला भगत बनइया हे। बिन चप्पल के उखरा, दाढ़ी मेछा के बाढ़, मंद-मउँहा के तियाग, माथा ले नाक बंदन मा बुँकाय सिरिफ नौ दिन नारी के मान-गउन, कन्या के शोर-सरेखा। तहाँ ले सरी अतियाचार हा नारी देंह के शोभना बन जाथे। नारी देवी ले पाँव के पनही सिरिफ नौ दिन मा ही लहुट जाथे। सरी सरद्धा अउ भक्ति हा नौ दिन के बाद उतर जाथे। कन्या के नाँव सुनते साठ तरपौरी के गुस्सा हा तरवा मा चढ़त देरी नइ लागय। बेटी…

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पितर पाख तिहार म

बैसकी ल मनावत हे पुरखा सियानहिन सियनहा नेवता देके बलावत हे घर मुहाटी पिड़हा म चउंर पिसान पुराय हे तोरई पान म उरिद दार लोटा पानी मुखारी बोराय हे तेलई बईठे बर रोटी पिठा पिसान दार दराय हे पुरखा ल पानी दे बर तरिया घाट म नहाय हे सोंहारी बरा के पाग बर गहुं पिसान सनाय हे तोरई,बरबट्टी आलु अउ चना साग पान रंन्धाय हे पितर नेवता आरा परोस पितर खाय ल बलाय हे दुद भात संग अम्मट कड़ही महर महर ममहाय हे कुकुर बिलई बनके पितर खाय ल आय…

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पितर के बरा

देख तो दाई कंउवा,छानी म सकलावत हे। पितर के बरा अउ सुहारी,बर सोरियात हे।। कुँवार पितर पाख,देख ओरिया लिपाये हे। घरो घर मुहाटी म,सुघ्घर चउक पुराये हे।। सबो देवताधामी अउ,पुरखा मन आवत हे। देख तो दाई कंउवा………………….. तोरई पाना फुलवा, संग म उरिद दार हे। कोनो आथे नम्मी अउ,कोनो तिथिवार हे।। मान गउन सबो करत हे,हुम गुंगवावत हे। देख तो दाई कंउवा………………….. नाव होथे पुरखा के,रंग रंग चुरोवत हावै। दार भात बरा बर, लइका ह रोवत हावै।। जियत ले खवाये नही, मरे म बलावत हे। देख तो दाई कंउवा………………….. बोधन…

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छत्तीसगढ़िया कबि कलाकार

पानी हँ धार के रूप लेके बरोबर जघा म चुपचाप बहत चले जाथे। जिहाँ उबड़-खाबड़ होथे पानी कलबलाय लगथे। कलकलाय लगथे। माने पानी अपन दुःख पीरा अउ उछाह ल कलकल के ध्वनि ले व्यक्त करथे। पानी के कलकल ध्वनि हँ ओकर जीवटता अविरलता अऊ प्रवाहमयता के उत्कट आकांक्षा ल प्रदर्सित करथे। ओइसने मनखे तको अपन सुख-दुख ल गा-गुनगुना के व्यक्त करथे। वोहँ अपन एकांत म जिनगी के पीरा अऊ उमंग ल गुनगुनाथे जेला संगीत कहिथन। हमर छत्तीसगढ़ हँ गीत अऊ संगीत के अपार सागर म उबुक-चुबुक हे। इहाँ कोनो किसम…

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कचरा कहां हे

कचरा कहां हे…. कचरा काकर घर हे … ओला बाहिर निकालव..हो$$। गांव मा हांका परत रहाय। ओती सहर मा घलो चोंगा माईक मा चिचयावत रहाय काकरो घर कचरा ल राखे हावव त ओला बाहिर निकालव। जेकर घर के बखरी बारी, भीतरी बहिरी अरोस परोस मा कचरा मिल जाही अउ जेन नइ बताही ओला 500 रुपया डांड़ जुरमाना लग सकत हे। ओती रमेसर मुड़ी धर के बइठे हे। काबर कि एक कचरा उंकरो घर हे जौन ल वो गजबेच मया करथे। आज इहां उहां सबो जगा ले कचरा ल दुरिहाय के…

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अपन रद्दा ल बनाबो

चलौ चलौ संगी,अपन रद्दा ल बनाबो। जांगर टोर कुदरा धर,पानी ओगराबो।। चलौ चलौ संगी…………………….. चिंता झन करौ संगी,कखरो नहीं आसा। रखौ भरोसा करम में,पलट जाही पासा। महीनत के पाछु , कुरिया ल सिरजाबो। चलौ चलौ संगी………………………. बड़े बड़े गड्ढा पटावत हे, तुंहर बल से। परबत नइ बाचै रे,महीनत के फल से।। कर बरोबर भुइया म ,सोना उपजाबो। चलौ चलौ संगी………………………. परती अउ कछार मा,हरियाली लाना हे। बंजर झन रहै धरती,फूल ल फुलाना हे।। झिमिर -2 बरसा में, आओ जी नहाबो। चलौ चलौ संगी………………………. बोधन राम निषाद राज स./लोहारा, कबीरधाम (छ.ग.)…

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गांव शहर ले नंदा गे हे पतरी भात, मांदी

विकसित होत गांव शहर हा अपन संस्कृति ला छोड़ के भुलावत जात हे, अब के बेरा म हमर पहली जइसे संस्कृति देखे ल नई मिलये, अईसे कई किसिम-किसिम के चीज हे जेन आज के बेरा म नंदात जात हे,  येही म हमर छत्तीसगढ़ी संस्कृति म पतरी भात (मांदी) एक संग बईठ के खाये के महत्व अब्बड़ रहिस हे जेन हा आज के आधुनिक दौर म नंदात जात हे अब कमे देखे ल मिलथे। मादी म भुइयां म चटाई ल बिछा के आराम ले बईठ के सब्बो लईका सियान एके संग बढ़ सुग्घर भात खाथे,…

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जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया के मत्तगयंद सवैया

(1) तोर सहीं नइहे सँग मा मन तैंहर रे हितवा सँगवारी। तोर हँसे हँसथौं बड़ मैहर रोथस आँख झरे तब भारी। देखँव रे सपना पँढ़री पँढ़री पड़ पाय कभू झन कारी। मोर बने सबके सबके सँग दूसर के झन तैं कर चारी। (2) हाँसत हाँसत हेर सबे,मन तोर जतेक विकार भराये। जे दिन ले रहिथे मन मा बड़ वो दिन ले रहिके तड़फाये। के दिन बोह धरे रहिबे कब बोर दिही तन कोन बचाये। बाँट मया सबके सबला मन मंदिर मा मत मोह समाये। (3) कोन जनी कइसे चलही बरसे…

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