जबले बने हे रूखराई .चिरई चुरगुन, तबके मैं निवासी अंव ! हव मैं आदिवासी अंव, हव मैं आदिवासी अंव !! ***** सभ्यता के जनम देवइया, बोली भासा ल सिरजाए हंव ! जम्मो संस्कृति के मैं उपजइया, पर आज असभ्य कहाए हंव !! बघवा भालू मोर संगवारी, मैं रहइया जंगल झाड़ी के ! सबले जुन्ना हमर संस्कृति, मैं पुजइया बन पहाड़ी के !! मही तो नरवा झोरी डोंगर, भुईंया मही मटासी अंव…। हव मैं….. **** रहन सहन ल देख के मोर, पढ़े लिखे मन हांसत हे ! मिठलबरा मनखे दोगला मन,…
Read MoreYear: 2017
मत्तगयंद सवैया : किसन के मथुरा जाना
आय हवे अकरूर धरे रथ जावत हे मथुरा ग मुरारी। मात यशोमति नंद ह रोवय रोवय गाय गरू नर नारी। बाढ़त हे जमुना जल हा जब नैनन नीर झरे बड़ भारी। थाम जिया बस नाम पुकारय हाथ धरे सब आरति थारी। कोन ददा अउ दाइ भला अपने सुत दे बर होवय राजी। जाय चिराय जिया सबके जब छोड़ चले हरि गोकुल ला जी। गोप गुवालिन संग सखा सब काहत हावय जावव ना जी। हाल कहौं कइसे मुख ले दिखथे बिन जान यशोमति माँ जी। गोकुल मा नइ गोरस हे अब…
Read Moreपुरखा मन के चिट्ठी
जय भारत , जय धरती माता सबले उप्पर म लिखे हवय । सब झन बर , गजब मया करे हे , लागत हे सऊंहत दिखत हवय । हली भली रहिहहु सब बेटा , हम पुरखा मन चहत हबन । करम धरम हे सरग नरक , बिन सवारथ के कहत हबन । धुंआ देख के करिया करिया , छाती हर गजब धड़कथे । कोन जनी का बीतत होही , रहि रहि के आंखी फरकथे । एके माई के पिला सब झन , सुनता म रहिहऊ भईया । चंद रोजी जिनगी म…
Read Moreपितर पाख के असल मान राख : जीयत मा डंडा-मरे मा गंगा
सावन के लगते साठ वातावरन हा भक्ति भाव ले भर जाथे। मन मा सरद्धा बतरकीरी कस जाग जाथे। तीज तिहार के घलो रेला-पेला लग जाथे। सरी देवी-देवता मन के आरी-पारी लग जाथे अउ संग मा पुरखा मन के सुरता अउ सरद्धा समे आ जाथे। भादो महीना के पुन्नी ले शुरु हो के कुँवार महीना के अँधियारी पाख के आवत ले कुल सोला दिन के सुग्घर समे हा पितर पाख कहाथे जेमा पुरखा मन के मान-गउन करे के बखत रथे। ए पाख हा सरद्धा ले सुरता करे के सुग्घर समे होथे।…
Read Moreपीतर
जिंयत भर ले सेवा नइ करे , मरगे त खवावत हे । बरा सोंहारी रांध रांध के, पीतर ल मनावत हे । अजब ढंग हे दुनिया के, समझ में नइ आये । जतका समझे के कोसीस करबे, ओतकी मन फंस जाये । दाई ददा ह घिलर घिलर के, मांगत रिहिसे पानी । बुढत काल में बेटा ह , याद करा दीस नानी । दाई ददा ह मरगे तब , आंसू ल बोहावत हे । बरा सोंहारी रांध रांध के, पीतर ल मनावत हे । एक मूठा खाय ल नइ देवे,…
Read Moreतोर दू दिन के जिनगानी हे
तोर दू दिन के जिनगानी हे,जादा झन इतराबे। दाई के गरभ मा परे रहे,तब धेरी बेरी गिंगियाय। तोर नाम ला जपहूं प्रभूजी,कहिके तंय गोहराय। जनम धरे दाई ददा के,मंया मा तंय बँधाबे। तोर दू दिन के… लइका पन मा खेले कूदे,जुवानी मंया बिलमाये। एको घड़ी सतसंग नइ करे,राम नाम नइ गाये। आही बुढ़ापा मुड़ धर रोबे,अपन करम ठठाबे। तोर दू दिन के… धन दोगानी महल अटारी ,तोर संग नइ जाही। बेटा बहू नाती नतुरा,सबो तोला तिरियाही। रामके नाम जपत रहिबे,जीवन सफल बनाबे। तोर दू दिन के… छल कपट अऊ झूठ…
Read Moreपीतर पाख
हमर हिंदू धरम के अनुसार जेखर जनम होय हाबय ओखर मरना निसचित हाबय। अपन परिवारदार के सरगवासी होय के बाद पितर मिलाथन। भादो के उजियारी पाख पुन्नी से लेके असवीन मास के अमावस तक हमन अपन पितर देवता मन के पूजा-अरचना करथन। ’’श्रद्धा इदं श्राद्धम्’’ मतलब जो श्रद्धा से किये जाथे, वोला सराध कइथे। पितर पाख म हमिंहंदूमन मन, करम, अऊ बानी से संयम के जीवन जीथन। पितर देवता के स्मरन करके वोमन ल जल चढ़ाथन। अऊ जरूरतमंद ल यथासक्ति दान भी देथन। पितर पाख म अपन सरगवासी दाइ-ददा के…
Read Moreतुलसीदास
बाल्मीकी जब लिखे रमायन, पंडित ग्यानी गावत रिहिस! बावहन पढ़है संस्कृत भासा, आन जात मन दूर ले पावत रिहिस !! राम कथा ह पोथी म लुकाके, ऊंच जाति के मंदिर सोहावत रिहिस ! जइसन सुनावै तइसन सुनन, कोनो ह उलटा गंगा बोहावत रहिस !! तब एक रामभगत गुनगान करिस, हमर तोर देहाती के भासा ! रामचरित जनजन बर लिखिस, नाव कहाइस तुलसीदासा !! अनपढ़ गरीब ऊँच नीच सबो, अब राम कथा सब जानत हे ! धरम ह पोथी के बंधना ले छुटगे, सब मानस गंगा मानत हे !! ऊंच नीच…
Read Moreमंय छत्तीसगढ़ के बेटी अंव
मंय दूनो कुल के जोती अंव। अपन किसान के मंय किसानिन अंव। बड़े फजर पनिहारिन अंव। बोली में सुध्धर बानी अंव घर घर के खपरा छान्ही अंव भारत भुइयां के माटी अंव मंय छत्तीसगढ़ के बेटी अंव मंय दुलौरिन बेटी दाई के मंय राखी अंव गा भाई के मंय पहुना अंव भउजाई के अऊ परोसिन बर पहुनाई के मंय दुखिया के मिलोती अंव। मंय छत्तीसगढ़ के बेटी अंव मंय गंगा अंव मंय गीता अंव मंय रामचंन्द के सीता अंव अपन पति के मंय परनीता अंव छत्तीसगढ़हिन नंय सुरजोती अंव। मंय…
Read Moreसिक्छक सिखही तभे सिखाही
हमन नान्हेंपन ले पढ़त आवत हन के सिक्छक हा मोमबत्ती कस होथे जेन हा खुद जर के, खुद खुवार हो के दुसर ला अंजोर देथे। ए बात सोलाआना सिरतोन हरय के सिक्छक हा अपन आप ला परहित मा निछावर करइया जीव हरय। जिनगी भर सरलग सिखइया हा ही सिरतोन मा सिक्छक आय। सिखथे अउ सिखोथे अपन बिद्यार्थी मन ला अइसन सिक्छक मन हा। अपन सोच ला, बिचार ला समे के संगे संग सुधारत रहँय, सवाँरत रहय उही सिक्छक हा एक सफल सिक्छक कहाथे। सिक्छक सिखे के सरी उदिम ला अपन…
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