जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” के दोहा : करम

करम सार हावय इँहा, जेखर हे दू भेद। बने करम ला राख लौ, गिनहा ला दे खेद। बिना करम के फल कहाँ, मिलथे मानुष सोच। बने करम करते रहा, बिना करे संकोच। करे करम हरदम बने, जाने जेहर मोल। जिनगी ला सार्थक करे, बोले बढ़िया बोल। करम करे जेहर बने, ओखर बगरे नाम। करम बनावय भाग ला, करम करे बदनाम। करम मान नाँगर जुड़ा, सत के बइला फाँद। छीच मया ला खेत भर, खन इरसा कस काँद। काया बर करले करम, करम हवे जग सार। जीत करम ले हे मिले,…

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पांच बछरिया गनपति

रजधानी म पइठ के परभावली म बइठ के हमर बर मया दरसाऐ हमीच ला अइठ के । रिद्धी सिद्धि पा के मातगे जइसे जोगीजति ठेमना गिजगिजहा पांच बछरिया गनपति ।। बड़े बुढ़वा तरिया के करिया भुरवा बेंगवा अनचहा टरटरहा देखाये सब ला ठेंगवा । पुरखऊती गद्दी म खुसरे खुसरे बना लीन येमन अपन गति अपनेच अपन बर फुरमानुक पांच बछरिया गनपति ।। लोट के पोट के भोग लगाये बोट के न करम के न धरम के परवाह निये खोट के मेहला घर धनिया के छिनार घला अबड़ सति जय हो…

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जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” के दोहा : ज्ञान

ज्ञान रहे ले साथ मा, बाढ़य जग मा शान। माथ ऊँचा हरदम रहे, मिले बने सम्मान। बोह भले सिर ज्ञान ला, माया मोह उतार। आघू मा जी ज्ञान के, धन बल जाथे हार। लोभ मोह बर फोकटे, झन कर जादा हाय। बड़े बड़े धनवान मन, खोजत फिरथे राय। ज्ञान मिले सत के बने, जिनगी तब मुस्काय। आफत बेरा मा सबे, ज्ञान काम बड़ आय। विनय मिले बड़ ज्ञान ले, मोह ले अहंकार। ज्ञान जीत के मंत्र ए, मोह हरे खुद हार। गुरुपद पारस ताय जी, लोहा होवय सोन। जावय नइ…

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गणपति : जयकरी छंद

आव गजानन हमरो – द्वार, पहिराहौं गज मुक्ता हार बुद्धि संग हे रूप अपार, रिद्धि सिद्धि के रंग हजार। गणपति उवाच मोर भक्त पावै – वरदान, गम्मत ला पूजा झन मान मोला देख बने पहिचान, झन होवौ भैया हलकान। जा नानुक ढेला ले आन, थोरिक पानी ले के सान शकुन बना गणेश भगवान,देदे आसन पीपर पान। शकुन खवा दे मनसा – भोग,आडंबर के तज दे रोग जुर जाथे जी जस के जोग,बड़े बिहिनिया होथे योग। हल्ला गुल्ला के काम, देख तोर मन मा घन- श्याम माँदर ढोलक छोड़ तमाम, मनमंदिर…

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गणपति विराजे

सबके मन आज रमे हे भगतन के तांता लगे हे कानन कुंडल मुकुट मा साजे जय जय जय गणपति विराजे एति तेति पंडाल सजे हे बिहनिया संझा शंख बजे हे बाजत हावय गाजा बाजा पुजा पाठ जम्मो करबो आजा भगत जमके जयकार लगावा मुख ले फेर चित्कार लगावा षिव शंकर के डमरू बाजे जय जय जय गणपति विराजे षिव शंकर हावय पिता तुंहर कष्ट निवारण करा हमर गणनायक संग नंदी नाचे जय जय जय गणपति विराजे स्नेह प्रेम के गावा गाथा प्रभु चरनन मा टेका माथा कष्ट ला एहा हरही…

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भारत रक्षा खातिर आबे, गणनायक गनेस

भारत रक्षा खातिर आबे, गणनायक गनेस ! भ्रस्टाचार के बेड़ी म बंधागे ! आज हमर देस !! गरीब के कोनो पुछइया नइये, मनखे धरम ल भुलत हे ! गाय मरत हे चारा बिना, किसान फंदा म झुलत है !! चोर गरकट्टा मन गद्दी म बइठे, धरके रखवार के भेस…. राम कुमार साहू सिल्हाटी, कबीरधाम

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गनेस के पेट

हमर गांव के लइका मन, गनेस पाख म, हरेक बछर गनेस बइठारे। गांवेच के कुम्हार करा, गनेस के मुरती बनवावय। ये बखत के गनेस पाख म घला, गनेस मढ़हाये के अऊ ओकर पूजा के तियारी चलत रहय। समे म, कुम्हार ला, मुरती बनाये के, आडर घला होगे। एक दिन, गांव के लइका मन ला, कुम्हार आके बतइस के, गनेस भगवान के पेट ला, कोन चोरा के, लेग जथे। जे घांव बनाथंव ते बेर, ओकर पेट गायबेच हो जथे, जबकि मुरती बनाके, रात भर पहरा देथंव। बिहिनिया ले ओकर पेट करा…

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मनतरी अऊ मानसून

नांगर बइला बोर दे पानी दमोर दे ।। लहरा के बादर मन ला ललचाथे आवथे अऊ जावथे किसान ला उमिहाथे लइका मन भडरी कस मटकावत गावथे नांगर बइला बोर दे पानी दमोर दे ।। सनझा के घोसना बिहिनिया बदल जथे उत्ती के अवइया बुड़ती मा निकल जथे मनतरी अऊ मानसून उलटा हे इंकर धुन कहे मा लागथे डरभुतहा कइसे धपोर दे ।। दुनो के सिंह रासि जब चाही तब गरजही जिंहा ऊंकर मन लागही तिहां तिहां बरसही कोन का करथें ऊंखर चाहे जादा या थोर दे दुब्बर ला दू असाढ़…

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एक चिट्ठी गनेस भगवान के नांव

सिरीमान गउरीनंदन गजानन महराज, घोलंड के परनाम। लिखना समाचार मालुम हो के- बीत गे असाढ़, नइ आइस बाढ़। बीत गे सावन, पानी कहिस नइ आवन। आगे भादो, परगे संसो, जपाथन माला हांका परगे पोला आला, बरसा झाला। पोला आला…।। अब गजानन देव, तूमन जघा-जघा बिराजमान होहू। पंडाल, मंच अउ झांकी के देखनी होही। गनेस पाख भर चारो मुड़ा आनी बानी के गनेस मूरती के चरचा होही। नरियर, धान, चांउर, करा बांटी, सुपारी, हरदी, मूमफल्ली, काजू, बदाम भगत मन ल जेने चीज सुहइस तेकरे मूरती बनवा के बइठारहीं। अतके होके छुट्टी…

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जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” के दोहा : नसा

दूध पियइया बेटवा, ढोंके आज शराब। बोरे तनमन ला अपन, सब बर बने खराब। सुनता बाँट तिहार मा, झन पी गाँजा मंद। जादा लाहो लेव झन, जिनगी हावय चंद। नसा करइया हे अबड़, बढ़ गेहे अपराध। छोड़व मउहा मंद ला, झनकर एखर साध। दरुहा गँजहा मंदहा, का का नइ कहिलाय। पी खाके उंडे परे, कोनो हा नइ भाय। गाँजा चरस अफीम मा, काबर गय तैं डूब। जिनगी हो जाही नरक, रोबे बाबू खूब। फइसन कह सिगरेट ला, पीयत आय न लाज। खेस खेस बड़ खाँसबे, बिगड़ जही सब काज। गुटका…

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