पति के लंबा उमर हो चाहे कोनो डहर हो खालव चाहे बर्गर पीजा एक बार रख लौ जी तीजा घरो घर गणपति विराजे फुल फुलवारी सारंग श्वर बाजे नई मिले चाहे तोला विजा एक बार रख लौ जी तीजा सखि सहेली नाचा गावा पुजा के थाली ला लावा दुब फुल हावय ताजा ताजा एक बार रख लौ जी तीजा गणपति हा हरही कष्ट हमर सबो के जीवन जाही समर करलव चालू गाजा बाजा एक बार रख लौ जी तीजा कोमल यादव मदनपुर, खरसिया
Read MoreYear: 2017
नउकरी लीलत हमर तीजतिहार
असाढ़ के लगते ले हमर तीज तिहार सुरु हो जाथे।अइसे तो छत्तीसगढ़ मा बारो महिना तिहार मनातन। चइत के पहिली दिन ले सुरु होय तिहार मा नानम परकार के स्थानीय, परंपरागत अउ रास्टीय तिहार ल बिन भेदभाव के मनाथन। छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार अक्ती ल मानथे। अइसने रामनम्मी, जवांरा, हरेली, रथदुतिया, सावन सम्मारी , कमरछठ, आठे,तीजा, पोरा, गनेस चउत, पंचमी, पीतर पाख, दुर्गापाख, दसरहा, देवारी, जेठौनी , नवाखाई, अग्हन बृहस्पति , तीन सकरात, छेरछेरा, होरी, फगवा ये सबो ल आकब नइ कर सकन। फेर हर पुन्नी मा तिहार , एकादशी…
Read Moreझगरा फेंकी डबरा
रोजेच के वोइच , हावय कांव कांव जाओं ता छाँड़ के, घर ला काहाँ जाँव सास बोहो के झगरा, दई ददा के झगरा, भई भई के झगरा, भई बहिनी के झगरा दई बेटी के झगरा ददा बेटा के झगरा दई बेटा के झगरा ददा बेटी के झगरा कका काकी के झगरा डौका डौकी के झगरा बोबा बाई के झगरा बहिनी बहिनी के झगरा कका भतीजा के झगरा बोबा नाती के झगरा भई भउजी के झगरा देरानी जेठानी के झगरा मैंहर फूर बात कइथों झन समझबे लबरा फेंक अई सबो झगरा…
Read Moreअब का पोरा-जाँता जी ?
अब का पोरा जाँता जी? ठाढे़ अँकाल के मारे, होगेव चउदा बाँटा जी | अब का पोरा जाँता जी। सपना ल दर-दर जाँता म, कब तक मन ल बाँधव ? चांउर-दार पिसान नइहे, का कलेवा राँधव ? भभकत मँहगाई म, अलथी कलथी भुंजात हौ | भात- बासी ल तको, चटनी कस खात हौ | उबके हे लोर तन भर, पड़े हे गाल म चाँटा जी….| अब का पोरा जाँता जी….? सिरतोन के बइला भूख मरे, का जिनिस खवाहूं | माटी के बइला बनाके, अब का करम ठठाहूं | किसान अउ…
Read Moreतीजा-पोरा के तिहार
छत्तीसगढ़ में बहुत अकन तिहार मनाये जाथे अऊ लगभग सब तिहार ह खेती किसानी से जुडे रहिथे। काबर के छत्तीसगढ़ में खेती किसानी जादा करथे। वइसने किसम से एक तिहार आथे पोरा अऊ तीजा के। पोरा तिहार ल भादो महिना के अमावस्या के दिन मनाय जाथे। अहू तिहार ह खेती किसानी से जुड़े हवे। पोरा तिहार मनाय के बारे में कहे जाथे कि इही दिन अन्न माता ह गरभ धारन करथे। माने धान के पउधा में इही दिन दूध भराथे।एकरे पाय ए तिहार ल ओकर खुसी के रुप में मनाय…
Read Moreमैं वीर जंगल के : आल्हा छंद
झरथे झरना झरझर झरझर,पुरवाही मा नाचे पात। ऊँच ऊँच बड़ पेड़ खड़े हे,कटथे जिंहा मोर दिन रात। पाना डारा काँदा कूसा, हरे हमर मेवा मिष्ठान। जंगल झाड़ी ठियाँ ठिकाना,लगथे मोला सरग समान। कोसा लासा मधुरस चाही,नइ चाही मोला धन सोन। तेंदू पाना चार चिरौंजी,संगी मोर साल सइगोन। घर के बाहिर हाथी घूमे,बघवा भलवा बड़ गुर्राय। आँखी फाड़े चील देखथे,लगे काखरो मोला हाय। छोट मोट दुख मा घबराके,जिवरा नइ जावै गा काँप। रोज भेंट होथे बघवा ले, कभू संग सुत जाथे साँप। लड़े काल ले करिया काया,सूरुज मारे कइसे बान। झुँझकुर…
Read Moreबिधना के लिखना
घिरघिटाय हे बादर, लहुंकत हे अऊ गरजत हे। इसने समे किसन भगवान, जेल मा जन्मत हे।। करा पानी झर झर झर झर इन्दर राजा बरसात हे। आपन किसन ला ओकर हलधर मेर अमरात हे।। चरिहा मा धर, मुड़ मा बोह,किसन ला ले जात हे। जमुना घलो उर्रा पूर्रा हो,पांव छूये बर बोहात हे।। बिरबिट अंधियारी रतिहा, जुगजुग आँखि बरत हे। ता अतका अंधियारी मा,रपा धपा पांव चलत हे।। जीव के डर आपन जीवेच ला, नंद मेर छाँड़ देथे। ओकर बिजली कइना ला, आपन चरिहा म लेथे।। कुकराबस्ता आपन ला कंस…
Read Moreमोर इस्कूल के गनेस
बच्छर बीत गे,फेर जब गनेस परब आथे तब पढ़ई के बेरा इस्कूल म बइठे गनेस के सुरता आ जाथे। दस दिन ले पढ़ई के संगेसंग भक्ति अऊ नाना परकार के आयोजन अंतस म समा के खुसी देथे।खपरा छानी वाला माटी के सरकारी मिडील इस्कूल, डेढ़ सौ के पढ़इया टुरी टूरा अऊ चार गुरुजी। सबो गुरुजी भक्ति भाव वाला तेमा एक गुरुजी नाचा पार्टी के पेटीमास्टर अऊ कलाकार जेकर देखरेख म गनेस के इस्थापना से बिसरजन तक के जम्मो भार राहय। बड़े गुरुजी के टेबल म दस दिन गनेस महराज के…
Read Moreगदहा के सियानी गोठ
पहिली मेंहा बता दौ घोड़ा अउ गदहा म का फरक हे, घोड़ा ह बड़ होशियार, सयाना अऊ मालिक के जी हजूरी करईया सुखियार जीव ये। आँखी कान म टोपा बांध के पल्ला दऊड़ई ओकर काम ये, भले मुड़भसरा गिर जही, मुड़ी कान फूट जही, माड़ी कान छोला जही फेर पल्ला भागे बर नई छोड़य। रद्दा ह चातर रहय फेर चिखला सनाय राहय मालिक ह जेती दऊड़ा दय उही कोती दऊड़े बर परही। माने होशियार होके दूसर के दिमाग अऊ दूसर के बताय रद्दा म चलईया आज के समे मा इही…
Read Moreबाल लेखक सार्थक के कहानी : संगवारी
बोड़रा नाम के गांव रिहिस जी। उहां दू झन संगवारी रिहिस। एक के नाव बल्लू, दूसर के नाव स्याम। दूनो संगवारी जब समे मिलय, सनझाती बेरा, घूमे बर जाये। बल्लू अनपढ़ गंवार रिहीस, फेर सरीर ले बढ़ तगड़ा। दूसर कोती स्याम पढ़हे लिखे रिहीस, फेर सरीर ले कमजोर। एक दिन, सांझकुन जावत जावत दूनो झिन गोठियावत रिहिस। स्याम किथे – गनेस चनदा मांगे बर काली गांव के लइका मन आये रिहीन जी। में कहि पारेंव, बल्लू जतका दिही ततके महूं देहूं कहिके। मे जानत हंव, तोर मोर हैसियत एके बरोबर…
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