माटी के गनेस बइठारव-पर्यावरण के मान बढ़ावव

माटी के मुरति सबले सुग्घर, चिक्कन-चाँदन अउ श्रेष्‍ठ माने गए हावय। माटी के मुरति हा जिनगी के सुग्घर अउ सिरतोन संदेश ला बगराथे के जौन जिहाँ ले आये हे उँहें एक दिन खच्चित लहुठ जाथे। नदिया के चिक्कन माटी ले बने देबी-देवता मन के मुरति हा उही पानी मा जा समाथे। सार गोठ हे के जइसे जनम होथे जग मा वइसने मृत्‍यु होथे जम्मो परानी के। ए गोठ हा अटल अउ असल गोठ हरय। माटी के मुरति हा हमर जिनगी के अधार पर्यावरण बर घलाव बड़ सुग्घर सहायक अउ हितवा…

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कइसे झंडा फहरही ?

  पनदरा अगस्त के पहिली दिन, सरपंच आके केहे लागीस ‌- डोकरी दई, ये बछर, हमर बड़का झंडा ल, तिहीं फहराबे या …..। मोर न आंखी दिखय, न कान सुनाये, न हाथ चले, न गोड़, मेहा का झंडा फहराहूं – डोकरी दई केहे लागीस ? सरपंच मजाक करीस – ये देस म जे मनखे ला दिखथे, जे मनखे ला सुनाथे, जे अपन हाथ ले बहुत कुछ कर सकत हे, जे अपन गोड़ के ताकत ले दुसमन के नास कर सकत हे तेमन ला, आज तक झंडा फहराये के हक नी मिलीस। जे कुछ करय…

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सबके पार लगइया – किसन कन्हैया

कृष्ण जन्माष्टमी ल पूरा देस में धूमधाम से अऊ बहुत उल्लास के साथ मनाये जाथे।काबर इही दिन भगवान सिरी किसन कन्हैया के जनम होय रिहिसे । जन्माष्टमी ल भारत भर में ही नही बल्कि बिदेस में बसे भारतीय मन भी ऊंहा धूमधाम से मनाथे।जन जन के आस्था अऊ विश्वास के प्रतीक भगवान सिरी कृष्ण ह स्वयं ए दिन पृथ्वी में अवतरित होय रिहिसे । एकरे पाय कृष्ण जन्माष्टमी मनाय जाथे । अवतार के दिन – भादो के महिना अंधियारी पाख में अष्टमी के दिन आधारात के भगवान सिरी कृष्ण ह…

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देस बर जीबो,देस बर मरबो

देस बर जीबो,देस बर मरबो। पहिली करम देस बर करबो।। रहिबो हमन जुर मिल के, लङबो हमन मुसकिल ले। भारत भुँइयाँ के सपूत बनबो। धरती महतारी के पीरा हरबो।।१ देस बर जीबो……………. जात-धरम के फुलवारी देस, भाखा-बोली के भन्डारी देस। सुनता के रंग तिरंगा ले भरबो। बिकास के नवा नवा रद्दा गढ़बो।।२ देस बर जीबो……………. ऊँच-नींच के डबरा पाट के, परे-डरे ल संघरा साँट के। बैरी के छाती म हमन ह चढ़बो। दोगला ल देस के दार कस दरबो।।३ देस बर जीबो……………. किरिया हे अमोल अजादी के, नवादसी तिरंगिया खादी…

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तिरंगा कब ऊंच होही ?

रिगबिग सिगबिग चारों मुड़ा दिया कस बरत रहय झालर लट्टू। झिमिर झिमिर गिरत पानी बरसात म, किंजरे बर निकले संकर भगवान पूछत रहय – काये होवथे पारबती। पारवती मइया किथे – तहूं कहींच नी जानस भगवान, पनदरा अगस्त के भारत अजाद होये रिहीस, ओकरे खुसी म इहां के जनता मन अपन झंडा ल फहराये के बेवस्था करत हे, मिठई बनावत हें, नाचत गावत हें। भगवान किथे – खाये पीये नाचे कूदे के बात समझ आगे पारबती, फेर झंडा काबर फहराथे, मे समझेंव निही य…। मइया किथे – दुनिया ल देखाथें…

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माटी के मया सियान मन के सीख

सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! माटी के अबड़ मया़ होथे रे। फेर हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। संगवारी हो जब हमन छोटे-छोटे रहेन तब हमन ला प्राथमिक विद्यालय के गुरूजी बहिन जी मन परीक्षा होय के बाद पुट्ठा के घर अउ नई तो माटी के खिलौना बना के स्कुल में जमा करे बर कहय। जम्मों संगवारी मिल के माटी के रिकिम-रिकिम के खिलौना अउ साग जइसे कि भॉटा, पताल, मिरचा, फल में सुन्दर…

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कलजुगिया झपागे

देखव देखव संगी,कईसन जमाना आगे। अंते-तंते होवत हावय,कलजुगिया झपागे।। भेद-भाव के गिरहा धर लेहे, फुट होथे घर-घर। बालि शुगरी होगे भाई-भाई, देखत धरथे जर। भुइंया बर होवाथे लड़ाई,महाभारत ह समागे, अंते-तंते होवत… नवा-नवा खाना होगेहे, होवाथे नवा बिमारी। गली-गली,चौरा-चौरा म, होवथे चुगली चारी। गीता अऊ पुरान मन ह कते डाहर लुकागे, अंते-तंते होवत… मनखे तन ल काला कहिबे,संसकार भुलावत हे। छोटे-बड़े कोनो ह संगी ,सममान कहा पावत हे। हिंदू धरम नंदावत,आनी-बानी धरम अब आगे, अंते-तंते होवत… पवन नेताम “श्रीबासु” सिल्हाटी,स./लोहारा,कबीरधाम, संपर्क-9098766347

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छत्तीसगढ़ के वीर बेटा – आल्हा छंद

महतारी के रक्षा खातिर,धरे हवँव मैं मन मा रेंध। खड़े हवँव मैं छाती ताने,बइरी मारे कइसे सेंध। मोला झन तैं छोट समझबे,अपन राज के मैंहा वीर। अब्बड़ ताकत बाँह भरे हे , रख देहूँ बइरी ला चीर। तन ला मोर करे लोहाटी ,पसिया चटनी बासी नून। बइरी मन ला देख देख के,बड़ उफान मारे गा खून। नाँगर मूठ कुदारी धरधर , पथना कस होगे हे हाथ। अबड़ जबर कतको हरहा ला,पहिराये हँव मैंहा नाथ। कते खेत के तैं मुरई रे, ते का लेबे मोला जीत। परही मुटका कसके तोला,छिन मा…

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बारो महीना तिहार

बारो महीना तिहार के बहार। आगे आगे तिहार अऊ तिहार। चइत महिना आगे नवरात्रि आगे। जोत बरे घरो घर जंवारा बोंवागे। दुरगा दाई के सेवा ला बजाले। राम जनम सुख सोहर के बहार। आगे आगे तिहार अऊ तिहार। बइसाख महिना आगे बर बिहाव आगे। फूटगे फटाका बरतिया सकलागे। गंड़वा बाजा अऊ डीजे घलाेक आगे। नोनी के बिदा होगे बहुरिया आगे। बर बिहाव घरों घर होवत हे उछाह। आगे आगे तिहार अऊ तिहार। जेठ महिना आगे रग रग ले घाम हे। चूहे पसीना तब ले करना परही काम हे. जेठ मा…

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संसो झन कर गोरी

संसो झन कर गोठ हा करेजा म रहि जाही। मया करे के येही बेरा हे नई तो पहर हा सिरा जाही।। आबे मोर तीर म ता तोला मया के झुलना झुलाहुं। लाली टिकली ला तोर मुड़ म सजाहुं। आँखि ला टेढ़ के एके कनी देखथस। मया देके पारी म अपन मुँह ला फेरथस। मोर अतका मयारू फेर तैं हा कहां पाबे। मोर मया बानी ल दूसर संग कईसे गोठियाबे। अनिल कुमार पाली तारबाहर, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ प्रशिक्षणअधिकारीआईटीआईमगरलोडधमतरी। मो:-7722906664,7987766416

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