समझ नई परय काकर गोठ सिरतोन ये काकर ह लबारी, कोनों करते चारी, कोनों बड़ई त कोनों बघारथे सेखी अऊ हुसयारी। सियनहा मन ह गाँव के गुड़ी म चऊपाल जमाय रिहिस हे, मेंहा भिलई ले गाँव गेहव त ओकरे मन करा पायलगी करे बर चल देयेव। ओमेर शुकलाल, रामरतन, मनीराम अऊ किसन सियनहा बड़े ददा मन ह हाल चाल पूछिस मोर, मेंहा केहेव सब बने बने हे बड़े ददा, तुही मन सुनावव ग गाँव गवई के गोठ ल केहेंव, तहाले रामरतन बड़ा ह का सुनावन मुन्ना तै जानथस ते नई…
Read MoreYear: 2017
इस्कूल : छत्तीसगढ़ी कहानी
राज-छत्तीसगढ़, जिला-कवरधा, गांव- माताटोला, निवासी- गियारा बारा अक सौ, इस्कूल- सरकारी पराइमरी, कच्छा- पांचमी तक, गुरुजी-तीन, कुरिया- चार। बरामदा -पहिली दूसरी के, तीसरी चौथी बर एक कुरिया, एक कुरिया- पांचमी के,अउ एक गुरुजीमन बर। कच्छा- पांचमी, लइकन- तीस, बत्तीस। गुरुजी- गनित बिसय के, होमवर्क जाँचत रहिस। “सब झन अपन होमवर्क करके आये हव?” सब झन डाहर ल देखत गुरुजी पूछिस। “यस्स सर!” सब लइकन हाथ उठाइन। “हंss, त चलव अपन- अपन कापी देखाव।” अउ गुरुजी भिड़गे जाँच करे म। गुरुजी, अइसने कभू- कभू घर बर काम जोंग देये करै अउ…
Read Moreमोर सोन चिरईया अउ मोहन के बाँसुरिया : गीत
मोर सोन चिरईया हाय रे मोर सोन चिरईया। परत हँव मँय तोर पईया।। जिनगी हा मोरे हे उधार। हो जाही तन हा न्योछार।। उगती के हे सुरुज देखव, दाई तोर बिंदिया बरोबर। डोंगरी पहाड़ मा छाए, हरियर हे लुगरा बरोबर।। अरपा अउ पैरी के धारी। गंगा कस नदिया प्यारी।। गोड़ ला धोवत हे तुम्हार। पावन धुर्रा ले तोर सिंगार।। हाय रे मोर सोन चिरईया। जिनगी हा ……………… आमा के मउर हा झुले, कुहु कुहु कोयलिया बोले। मन मोरो नाचय गावय, हिरदे मा अमरित घोले।। फुलवा परसा के लाली। होगेंव मँय…
Read Moreडॉ.निरूपमा शर्मा समग्र साहित्य कार्यक्रम के आडियो
दुर्ग में आयोजित डॉ.निरूपमा शर्मा के समग्र साहित्यिक अवदान उपर परिचर्चा म साहित्यकार मन के उद्बोधन
Read Moreदिनेश चौहान के गोहार : महतारी भाखा कुरबानी मांगत हे
हमन छत्तीसगढ़़ के रहइया हरन। छत्तीसगढ़िया कहाथन। वइसे हमर प्रदेस म कई ठी बोली बोले जाथे। छत्तीसगढ़ी, हलबी, भतरी, कुडुख, सरगुजिहा, सदरी, गोंड़ी आदि आदि। फेर छत्तीसगढ़ी बोलने वाला जादा हवंय। जब छत्तीसगढ़़ के भासा के बात आथे तौ छत्तीसगढ़ी के नांव ही आगू आथे। इही पाय के छत्तीसगढ़ी ल छत्तीसगढ़़ के राजभासा बनाय गे हे। अब ए तीर एक ठी सवाल उठथे, ये बात ल जानथे कतका झन? मोर आप मन से इही सवाल हे के आज ले पहिली ये बात ल कतका झन जानत रेहेव? सरकार छत्तीसगढ़ी ल…
Read Moreअभार अभिनंदन अटल जी के (25 दिसंबर अटल बिहारी वाजपेयी के जनमदिन)
छत्तीसगढ राज के जनम 1 नवंबर 2000 के दिन होइस हे। लाखों-लाख जनता के आँखी के सपना जब सच होइस, पूरा होइस ता खुशी के मारे आँखी के आँसू थिरके के नांव नइच लेवत रहीस। कतका प्रयास, कतका आंदोलन अउ कतका संघर्ष के पाछू हमला हमर छत्तीसगढ राज हा मिलीस। छत्तीसगढ हा बच्छर 2000 के पहिली मध्यप्रदेश मा सांझर-मिंझर के चलत रहीस हे। एक बङका राज के संरक्छन मा छत्तीसगढ के सुवाँस हा अपनेच छाती भीतरी फूलय अउ छटपटी हा सरलग बाढत रहीस। एक ठन बङे बर रुख के खाल्हे…
Read Moreमुसवा के बिहाव
एक ठन गांव मा भाटा के बारी रहिस।ओमा किसिम किसिम के भाटा फरे रहिस। खई खाए के चकर म उही म बिला बनाके रहे लगिस।एति ओति किदरत मुसुवा कांटा के झारी म अरझ गे तहां ले ओकर गोड़ म बमरी के कांटा, बने आधा असन बोजागे। मुसुवा पीरा म कल्ला गे, एति ओति कुदत लागे कि कौउनो ए कांटा ल निकाल देतिस।पीरा म कल्लात मुसुवा ल न उ ठाकुर के दुकान दिखिस।नउ ल मुसुवा कहिस – ए भाई न उ ठाकुर – मोर गोड़ म काटा गड़गे हे, भारी पीरा…
Read Moreनेता मन नफरत के बिख फइलावत हे
1 नेता मन नफरत के बिख फइलावत हे, मनखे ला मनखे संग गजब लड़ावत हे. धरम-जात के टंटा पाले, सुवारथवस, राम-रहीम के झंडा अपन उठावत हे. अँधियार ले उन्कर हावय गजब मितानी, उजियार ला कइसे वो बिजरावत हे. उच्चा-टुच्चा , अल्लू-खल्लू मनखे मन, नेता बन के इहाँ गजब इतरावत हे. चार दिन कस चंदा कस हे जिन्कर जिनगी ‘बरस’ उन्कर बर, रात अंधियारी आवत हे. 2 नेक-नियत मा खामी झन कर, जिनगी ला निलामी झन कर. अपने सुवारथ बर तैं हर, दुनिया ला बदनामी झन कर. सुभिमान के जिनगी जी…
Read Moreदुकाल अऊ दुकाल
कभू पनिया दुकाल कभू सुक्खा दुकाल। परगे दुकाल ये दे साल के साल। सावन बुलकगे बिगन गिरे पानी के। मूड धर रोवय किसान का होही किसानी के। दर्रा हने खेत देख जिवरा होगे बेहाल। परगे दुकाल ये दे साल के साल। खुर्रा बोनी करेंव नई जामिस धान हा। थरहा डारे रहेंव, भूंज देइस घाम हा। पिछुवागे खेती के काम बतावंव का हाल। परगे दुकाल ये दे साल के साल। करजा करके धान लानेवं अब थरहा कहाँ पाहूं। कतका अकन धान होही, कईसे करजा चुकाहूं। घर के ना घाट के असन…
Read Moreगज़ल
कतेक करबे इंहा तै बईमानी जिनगी एक दिन ए जरूर होही हलाकानी जिनगी! जब कभु टुट जाही मया ईमान के बंधना संतरा कस हो जाही चानी चानी जिनगी! चारी लबारी के बरफ ले सजाये महल सत के आंच म होही पानी पानी जिनगी! घात मेछराय अपन ठाठ ल हीरा जान के धुररा सनाही तोर गरब गुमानी जिनगी ! सुवारथ के पूरा म बहा जाही पहिचान बचा, बिरथा झन होय तोर जुवानी जिनगी! जब कभु उघारय कोनो किताब इतिहास के हरेक पन्ना म मिलय तोरे कहानी जिनगी! ललित नागेश बहेराभांठा (छुरा)…
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