छत्तीसगढ़ी दिवस 28 नवम्बर विशेष

हिंदी हिंदुस्तान के अउ छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ के सान आय एक दसक बीत गईस फेर महतारी भाखा हमर 8 वीं अनुसूची म सामिल नैइ हो पाईस छत्तीसगढ़ राज बने 17 बछर होगे। नवम्बर महीना ह छत्तीसगढ़ के परब आय। नवम्बर महीना ह छत्तीसगढ़ीहा मन बर दसहरा, दिवाली अउ होली के परब ल कम नोहे। 1 नवम्बर 2001 के हमर छत्तीसगढ़ ह नवा राज बनिस अउ 28 नवम्बर 2007 के विधानसभा म सरव सम्मति ले “राजभासा” के रूप म स्वीकिरीत करे गईस। छत्तीसगढ़ राज बनिस त हमर छत्तीसगढ़ में खुसी के ठिकाना…

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कला ले खिलवाड़

संगवारी हो, हमर हरियर पतित पावन भुइया छतीसगढ़ हवय।महतारी के मयारू कोरा म हमर कला अउ संसकिरीति के पालन पोषण होवत हवय। धान के कटोरा हमर छत्तीसगढ़ के कला अउ संसकिरीति के दुरिहा दुरिहा म पहिचान हवय। कहे जाथे की हमर छतीसगढ़ के संसकिरीति ह पूरा भारत देश म सबले जादा धनवान संस्कृति हवय। हरियर भुइया हमर छतीसगढ़ के जतका मीठ संसकिरीति हवय ओतके मीठ हमर गुरुतर भाखा छतीसगढ़ी हवय। करमा ददरिया सुवा पंथी कोन जनि कब ले आगास म गुजत् हे उही ला हमर पुरोधा कलाकार मन सहेज के…

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छत्तीसगढ़िया कहां गंवागे

कभू-कभू मोर मन मं, ये सुरता आवत हे। इडली-दोसा ह संगी, सबो झन ल मिठावत हे। चिला-फरा ह काबर, कोनो ल नइ भावत हे। छत्तीसगढ़ी बियंजन ह, छत्तीसगढ़ मं नंदावत हे। दूसर के रंग मं संगी, खुद ल रंगावत हे। बासी-चटनी बोजइया, पुलाव ल पकावत हे। पताल के झोझो नंदागे, मटर-पनीर सुहावत हे। छत्तीसगढ़ी बियंजन ह, छत्तीसगढ़ मं नंदावत हे। अंगाकर के पूछइया, पिज्जा हट जावत हे। बोबरा-चौसेला छोर के, सांभर-बड़ा सोरियावत हे। भुलागे खीर बनाय बर, लइका ल मैगी खवावत हे। छत्तीसगढ़ी बियंजन ह, छत्तीसगढ़ मं नंदावत हे। तिहार…

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मन के बात

इतवार के दिन बिहाने बेरा गांव पहुंचे रहय साहेब हा। गांव भर म हाँका परगे रहय के लीम चौरा म सकलाना हे अऊ रेडिया ले परसारित मन के बात सुनना हे। चौरा म मनखे अगोरत मन के बात आके सिरागे, कनहो नी अइन। सांझकुन गांव के चौपाल म फेर पहुंचगे साहेब अऊ पूछे लागीस। मुखिया किथे – काये मन के बात आये साहेब ! कइसे मनखे अव जी, हमर देस के मुखिया अतेक दिन ले अपन मन के बात सुनावत हे अऊ तूमन जानव घला निही – साहेब किहीस। गांव…

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बरी-बिजौरी मा लुकाय बिग्यान

हमर संस्कृति हा हजारों बछर मा थोक-थोक करके पनपे हवय, ते पाय के जम्मों चीज मा काहीं ना काहीं गूढ़ बात नइते बिग्यान लुकाय रथे, जेनहा सोजहे मा नइ समझ आवय। अब हमर खान-पान ला देख लव, कते मऊसम मा का खाना हे का बनाना हे अउ ओखर हमर तन मन धन अउ समाज मा का असर परही सबला सियान मन बड़ सोच के हमर संस्कृति ला सिरजाय रीहिन। बरी-बिजौरी बनाना, उपराहा माढ़े चीज जइसे सेमी, पताल, भांटा, आमा, के खुईला करना, चाँउर पापड़, हरदी, मिरचा मसाला ला सुखोना कुटना…

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छत्तीसगढ़ी कहानी : सजा

आज जगेसर कका ह बिहनिया ले तियार होके पहुंचगे रहय। “ले न भांटो कतका बेर जाबो ते गा!दस तो इंहचे बजा डारे हव।सगा मन घलो काम बुता वाला आदमी हरे ,कहूं डहर जाएच बरोबर हरे।” काहत रामसिंग ल हुदरिस।आज रामसिंग के बेटा अनिल बर छोकरी देखे बर जावत हे।दू झिन नोनी के पाट के बाबू हरे अनिल ह !दू बछर पहिली मंझली नोनी मोतिन के हांत पिंवरा डरीस। देखते देखत अनिल घलो काम बूता म हुसियार होगे अउ जाने सुने के लइक होगे ।बर बिहाव के संसो कोन दाई ददा…

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अस्पताल के गोठ

जादा दिन के घटना नोहय।बस!पाख भर पाछू के बात आय।जेठौनी तिहार मनावत रेहेन।बरदिहा मन दोहा पारत गांव के किसान ल जोहारे म लगे रहय।ए कोती जोहरू भांटो एक खेप जमाय के बाद दुसरइया खेप डोहारे म लगे राहय।भांटो ह घरजिंया दमांद हरे त का होगे फेर जांगरटोर कमइया मनखे हरे।अउ जांगरटोर कमइया मनखे ल हिरू-बिछरू के जहर ह बरोबर असर नइ बतावय त पाव भर दारू ह ओला कतेक निसा बतातिस।भले आंखी ह मिचमिचात रहय फेर चुलुक लागते राहय।मन नी माढिस त फेर दारू लानके पीये बर बइठगे वतकी बेरा…

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छत्तीसगढ़ी गज़ल

कब ले खड़े हस तै बताय नही ए धुंधरा म बिया चिन्हाय नही! मुहु मांगे मौसम मयारू संगी बर हुदुप ले कहुं मेर सपड़ाय नही ! सिरावत हे रूखवा कम होगे बरसा लगाये बिरवा फेर पानी रूताय नही! अनजान होगे आनगांव कस परोसी देख के घलो हांसे गोठियाय नही! जेती देखबे गिट्टी सिरमिच के जंगल कठवा कस झटकुन काटे कटाय नही! जब तक हे जिनगी जीये ल तो परही का करबे?ए हवा म संवासा लेवाय नही! बढ़त जात खईहा मनखे अउ परकीति म सब पाटव एक झिन म एहा पटाय…

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खतरनाक गेम

सरकार हा, ब्लू व्हेल कस, खतरनाक गेम ले होवत मऊत के सेती, बड़ फिकर म बुड़े रहय। अइसन मऊत बर जुम्मेवार गेम उप्पर, परतिबंध लगाये के घोसना कर दीस। हमर गांव के एक झिन, भकाड़ू नाव के लइका हा, जइसे सुनीस त, उहू सरकार तीर अपन घरवाले मन के, एक ठिन ओकरो ले जादा खतरनाक गेम उप्पर, परतिबंध लगाये बर, गोहनाये लागीस। सरकार बिन कुछ सुने, मना कर दीस। पढ़हे लिखे भकाड़ू, कछेरी पहुंचगे, नालीस कर दीस। कछेरी म जज पूछीस – तुंहर गेम कइसे खतरनाक हे तेमा, परतिबंध लगवाये…

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मया करबे त करले अउ आन कविता : सोनु नेताम “माया”

अजब गजब के अब्बड़ नखरा तैंय ह झन देखा न वो अंतस भितर म तोर का हे ओला तैय बने बता न वो काबर तैंय मुहुं फुलाथस तोर बिचार ल सुना न वो रहि रहि के भरमात रथस अपन संग मोला रेंगा न वो मया करे बर कुछु सोचत होबे पांव म पांव मिलाके चल न वो दुसर के देखा देखी म आके तैंय छल कपट झन करे कर न वो झगरा लड़ई म काहि नईहे मया पिरित ह टुटथे वो बईरी जईसन मन ह अईसन बेरा म दिखत रहिथे…

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