सोंचथौं, कईसे होही वो बड़े-बड़े बिल्डिंग-बंगला, वो चमचमावत गाड़ी, वो कड़कड़ावत नोट, जेखर खातिर, हाथ-पैर मारत फिरथें सब दिन-रात, मार देथें कोनों ला नइ ते खुद ला? अरे! वो बिल्डिंग तो आवे ईंटा-पथरा के, कांछ के, वो कार तो आवै लोहा-टीना के, अउ कागज के वो नोट, वो गड्डी आवै। वो बिल्डिंग आह! डर लगथे के खा जाही मोला, वो कार, डर लगथे, वो जाही मोरे उपर सवार, डर लगथे पागल बना दिही मोला वो पइसा। डर लगथे निरजीव ईंटा-पथरा, कांछ, लोहा-टीना,कागज के बीच घिर के, निरलज्ज, निरजीव झन हो…
Read MoreYear: 2018
व्यंग्य : माफिया मोहनी
बाई हमर बड़े फजर मुंदराहा ले अँगना दूवार बाहरत बनेच भुनभुनात रहय, का बाहरी ला सुनात राहय या सुपली धुन बोरिंग मा अवईया जवईया पनिहारिन मन ल ते, फेर जोरदार सुर लमाय राहय – सब गंगा म डुबक डुबक के नहात हें, एक झन ये हर हे जेला एकात लोटा तको नी मिले। अपन नइ नाहय ते नइ नाहय। लोग लइका के एको कनी हाथ तो धोवा जथिस। भगवान घलो बनईस एला ते कते माटी के? एकर दारी तो कोनो कारज बने ढंग ले होबेच नी करे । कतेक नी…
Read Moreमदरस कस मीठ मोर गांव के बोली
संगी – जहुरिया रहिथे मोर गांव म हरियर – हरियर खेती खार गांव म उज्जर – उज्जर इहां के मनखे ,मन के आरुग रहिथें गांव म खोल खार हे सुघ्घर संगी बर ,पीपर के छांव हे संगी तरिया – नरवा अऊ कुंआ बारी गांव के हावे ग चिन्हारी किसिम – किसिम के इहां हावे मनखे सुख – दुख के इहां हावे साथी गांव म दिखथे ग मया – दुलार दाई – ददा के चोहना बबा के डुलार तुलसी के चौरा म मंदिर के दुवार म दुख पीरा गोहराथन छोटे बड़े…
Read Moreसतनाम पंथ के संस्थापक संत गुरूघासीदास जी
छत्तीसगढ़ राज्य के संत परंपरा म गुरू घासीदास जी के इस्थान बहुत बड़े रहि से। सत के रददा म चलइया, दुनिया ल सत के पाठ पढ़इया अउ मनखे-मनखे के भेद ल मिटइया। संत गुरूघासीदास जी के जीवन एक साधारन जीवन नइ रहिस। सत के खोज बर वो काय नइ करिस। समाज म फइले जाति-पाँति, छुआछूत, भेदभाव, इरखा द्वेष ल भगाय बर जेन योगदान वोहा देइस वो कोनो बरदान ले कम नइहे।मनखे ल मनखे ले जोड़े बर, मनखे म मानवता ल इस्थापित करे बर, असत के रददा ल तियाग के सत…
Read Moreयाहा काय जाड़ ये ददा
समझ नइ आवत हे,याहा काय जाड़ ये ददा…! जादा झन सोच,झटकुन भुररी ल बार बबा…! अपने अपन कांपाथे,हाथ गोड़…! चुपचाप बइठ,साल ल ओड़…! कोन जनी कती,घाम घलो लुकागे हे…! मोला तो लागत हे,उहू ह जडा़गे हे…! आज नइ दिखत हे,चंवरा म बइठइया मन…! रउनिया तपइया,रंग-रंग के गोठियइया मन…! बइरी जाड़ ह,भारी अतलंग मचावत हे…! सेटर,कथरी म घलो,आहर नइ बुतावत हे…! पारा,मोहल्ला होगे,सुन्ना-सुन्ना…! डोकरी दाई चिल्लावत हे,सेटर होगे जुन्ना…! गोरसी म दहकत हे,आगी अंगरा…! बइठे बर घर म,होवत हे झगरा…! डोकरा बबा घेरी-भेरी,चुल्हा ल झाकत हे…! चाय पीये बर मन ह,ललचावत…
Read Moreमनखे-मनखे एक समान
सुनो-सुनो ग मितान, हिरदे म धरो धियान। बाबा के कहना “मनखे-मनखे एक समान”।। एके बिधाता के गढ़े, चारों बरन हे, ओखरे च हाथ म, जीवन-मरन हे। काबर करथस गुमान, सब ल अपने जान। बाबा के कहना “मनखे-मनखे एक समान”।। सत के जोत, घासीदास ह जगाय हे, दुनिया ल सत के ओ रद्दा देखाय हे। झन कर तैं हिनमान, ये जोनी हीरा जान। बाबा के कहना “मनखे-मनखे एक समान।। जीव जगत बर सत सऊहें धारन हे, मया मोह अहम, दुख पीरा के कारन हे। झन डोला तैं ईमान, अंतस उपजा गियान।…
Read Moreबाबा घासीदास जयंती – सतनाम अउ गुरु परंपरा
गुरु परंपरा तो आदिकाल से चलत आवत हे। हिन्दू धरम मा गुरु परंपरा के बहुत महिमा बताय हे।गुरु के पाँव के धुर्रा हा चंदन बरोबर बताय हे , प्रसाद अउ चरणामृत के महिमा ला हिन्दू धरम मा बिस्तार से बरनन करे जाथे।घर मा गुरु के आना सक्षात भगवान आयबरोबर माने गय हवय। सनातन धरम मा तो गुरु शिष्य परंपरा के बहुतेच बढ़िया बरनन मिलथे।कबीर पंथ मा घलाव गुरु पुजा के महत्तम ला बताय हे।आज भी गुरु परंपरा सबो पंथ मा चलत हे। कबीरदास जी हा गुरु ला भगवान ले बड़े…
Read Moreसत अउ अहिंसा के पुजारी गुरु घासीदास
गुरु घासीदास छत्तीसगढ़ राज मा संत परम्परा के एक परमुख संत आय। सादा जीवन उच्च विचार के धनवान संत गुरु घासीदास छत्तीसगढ़ राज ला नवा दिसा दिस अउ दसा ला सुधारे बर सरलग बुता करिन अउ अपन सरबस लुटादिन। जीवनी:- बछर 1672 मा हरियाणा राज के नारनौल गाँव मा बीरभान अउ जोगीदास नाव के दु झिन भाई जिनगी चलावत रिहिस। दुनो भाई सतनामी साध मत के साधक रिहिस अउ अपन मत के परचार परसार करत रिहिस।दुनो भाई अब्बड़ स्वाभिमानी रिहिस। सतनामी साध मत के विचारधारा के अनुसार कोनो भी मनखे…
Read Moreबाबा गुरु घासीदास के सब्बे मनखे ल एक करे के रहिस हे विचार मनखे मनखे एक समान
हमर बाबा गुरु घासीदास दास के सबले बड़े विचार रहिस हे के सब्बो मनखे एक समान हरे कोनो म भेद भाव ऊंचा नीच के भावना झन रहे तेखरे बर अपन जियत भर ले सब्बो मनखे ल जुरियाये के परयास बाबा गुरुघासीदास ह करिस। बाबा ह सब्बो मनखे के चित्त म मया सत्य अहिंसा अउ शांति ल डारे के परयास हमेशा करिस तेखरे सेती बाबा के प्रतीक चिनहा के रूप म सफेद जैतखाम सब्बो जगह गाडियाये रहिथे। जेन ह सत्य अउ ग्यान के प्रतीक हे कहे जाथे की जेन भी मनखे…
Read Moreलघुकथा-किसान
एक झन साहब अउ ओकर लइका ह गांव घूमे बर आइन।एक ठ खेत म पसीना ले तरबतर अउ मइलाहा कपडा पहिर के बुता म रमे मनखे ल देखके ओकर लइका पूछथे-ये कोन हरे पापा? ये किसान हरे बेटा!!-वो साहब ह अपन बेटा ल बताइस। ‘ये काम काबर करत हे पापा?’ “ये अन्न उपजाय बर काम करत हे बेटा!” ‘ये मइलाहा कपडा काबर पहिरे हे पापा?’ “ये गरीब हे ते पाय के अइसन कपडा पहिरे हे बेटा!” ‘अच्छा!!त किसान ह गरीब होथे का पापा?’ “हहो!हमर देस के जादातर किसान गरीब हे…
Read More