बेरोजगारी

दुलरवा रहिथन दई अऊ बबा के, जब तक रहिथन घर म। जिनगी चलथे कतका मेहनत म, समझथन आके सहर म।। चलाये बर अपन जिनगी ल, चपरासी तको बने बर परथे। का करबे संगी परवार चलाये बर, जबरन आज पढ़े बर परथे।। इंजीनियरिंग, डॉक्टरी करथे सबो, गाड़ा-गाड़ा पईसा ल देके। पसीना के कमई लगाके ददा के, कागज के डिग्री ला लेथे।। जम्मो ठन डिग्री ल लेके तको, टपरी घलो खोले बर परथे। का करबे “राज” ल नौकरी बर, जबरन आज पढ़े बर परथे।। लिख पढ़ के लईका मन ईहाॅ, बेरोजगारी म…

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बेरा के गोठ : सुखी जिनगी जियेबर छत्तीसगढ़िया सिखव बिदुर नीति

हमन सब जानथन दुवापर जुग मा हस्तिनापुर के महामंतरी महातमा बिदुर जी कृष्न भक्त रहिन। भगवान ह दुर्योधन के 56 भोग ल छोड़के बिदुर के घर भाजी साग खायबर गिस। इही महाभारत के बेरा बिदुर जी ह धृतराष्ट ल सांति अउ नियाव के सीख देवय। भलुक ओ हा नइ मानय। ओकरे सेती वो कभू सुख ल नइ पाय सकीस।बिदुर जी कहिथे सुखी जिनगी बिताय खातिर सबो मनखे ल अपन समरथ के बरोबर बूता करना चाही। नान्हे लइका, बड़े चेलिक, नोनी-बाबू, सियान, बहिनी, महतारी, कोनो होय अपन सकउक बूता करना चाही…

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सुन वो नोनी के दाई, आदमी

सुन वो नोनी के दाई, जाड़ मे होगे बड़ करलाई, छेना लकड़ ल अब तै सितावन झन दे, गोरसी के आगी ल बुतावन झन दे, सिरतोन कहात हस नोनी के ददा, जाड़ ह होगे बड़े जन सजा, जाड़ के मारे पोटा ठीठुरगे, डोकरी डोकरा मन जाड़ मे मरगे, कथरी चद्दर ल जाड़ मे अब मड़ावन झन दे गोरसी के आगी ल बुतावन झन दे, हु-हु करथे दाँत किटकीटागे, कतको झन के परान उड़ागें, स्वेटर चद्दर जम्मो ओढ़े, कमरा कथरी सबो सिरागे, जाड़ गजब हे, नोनी ल कोनो डाहर जावन झन…

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महानदी पैरी अउ सोढुर तीनो के मिलन इस्थान म लगथे राजिम मेला

तीन नदी के बने पुनय संगम इस्थल राजिम दाई के धाम ह महानदी पैरी अउ सोढुर नदी छत्तीसगढ़ के तीरथ इस्थान कहाथे। जेमा हर बछर माघी पुन्नी म कुलेश्वर महादेव के मंदिर मेर महाशिवरातरी के बेरा म बड़का मेला भराथे। जेन ह अभी के आने वाला समय म कुंभ के बड़का रूप धर ले हे। ये मेला ह हर बछर महाकुम्भ के नाव ले भराथे, अउ पूरा छत्तीसगढ़ म परसीध हे। जेमा देवी गंगा के आरती के बरोबर दाई महानदी के आरती करथे,येखर पूजा करथे, जेखर पूरा वयवसथा सांस्कृतिक विभाग…

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ईंहा के मनखे नोहय

जिंहा के खावत हे तेकर गुण ल नई गाही, तिरंगा के मया बर अपन लार ल नई टपकाही, वोहा ईंहा के मनखे नोहय I जेन ह ईंहा के माटी ल मथोलत हे, अपनेच दांदर ल मरत ले फुलोवत हे, वोहा ईंहा के मनखे नोहय I कनवा खोरवा मुरहा ल जेन ह कुआं म ढपेलत हे, मदहा अऊ जाँगरओतिहा ल सरग म चढ़ोवत हे , वोहा ईंहा के मनखे नोहय I जेकर मिहनत के कमई म उदाली मार जियत हे, उकरे मिहनत ल जेन ठेंगा दिखावत हे, वोहा ईंहा के मनखे…

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अपन देस- शक्ति छंद

पुजारी बनौं मैं अपन देस के। अहं जात भाँखा सबे लेस के। करौं बंदना नित करौं आरती। बसे मोर मन मा सदा भारती। पसर मा धरे फूल अउ हार मा। दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा। बँधाये मया मीत डोरी रहे। सबो खूँट बगरे अँजोरी रहे। बसे बस मया हा जिया भीतरी। रहौं तेल बनके दिया भीतरी। इहाँ हे सबे झन अलग भेस के। तभो हे घरो घर बिना बेंस के। चुनर ला करौं रंग धानी सहीं। सजाके बनावौं ग रानी सहीं। किसानी करौं अउ सियानी करौं। अपन देस…

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भारतीय संविधान अउ महतारी भाखा

गणतंत्र दिवस के तिहार हमर पूरा देस म हमर देस के स्वतंत्र संविधान लागू करे खुसी म हर बछर 26 जनवरी के दिन मनाय जाथे। संविधान के मतलब होथे देस म सासन चलाय के नियम-कानून। हमर देस के कानून अउ सासन बेवस्था हमर संविधान म दर्ज धारा, अनुच्छेद अउ अनुसूची के मुताबिक चलथे। जब संविधान लागू हो चुके हे तौ वोमा लिखाय हर बात के पालन घलो होना चाही। आपमन ल ये जान के ताज्जुब होही के संविधान के अनुच्छेद 350 (क) म लिखाय बात के पालन हमर छत्तीसगढ़ राज…

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मोर गांव म कब आबे लोकतंत्र

अंगना दुवार लीप बोहार के, डेरौठी म दिया बार के – अगोरय वोहा हरेक बछर।  नाती पूछय – कोन ल अगोरथस दाई तेंहा। डोकरी दई बतइस – ते नि जानस रे, अजादी आये के बखत हमर बड़े –बड़े नेता मन केहे रिहीन, जब हमर देस अजाद हो जही, त हमर देस म लोकतंत्र आही। उही ल अगोरत हंव बाबू। नाती पूछिस – ओकर ले का होही दाई ? डोकरी दई किथे – लोकतंत्र आही न बेटा, त हमर राज होही, हमर गांव के बिकास होही। मनखे मनखे में भेद नि…

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बसंत बेलबेलहा

सर सरात हवा संग जुन्ना पाना झरथे । फोंकियाये रूख के फुनगी बाती कस बरथे । रात लजकुरहीन संग दिन बरपेलिहा । दिल्लगी करथे चुपचुप बसंत बेलबेलहा । आमा जम्मो मऊरगे बउराये मन बऊरगे । चुचवाय संगी संऊरगे ललचाये अबड़ दंऊड़गे । सृस्टि दुलहिन बिहाये बर बरतिया बनगे ठेलहा । दुलहा बनके आये हे बसंत बेलबेलहा । हरियर डारा म बइठके कोइली मन कुहके । भौंरा अऊ तितली मन फूल के रस चुंहके । रसरसाय के बेरा आगे रहय कहूं नइ तनहा । फेर गुदगुदावथे रति ल रितुराज बेलबेलहा ।…

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परमेश्वर के आसन

गांव-गांव पंचइती, खुलगे बांचे खुल जाही। अइसन सबे गांव हर ओकर, भीतर झटकुन आही।। गांव-गांव पंच चुनाही, भले आदमी चुनिहा। जेहर सबला एक इमान से, थाम्हे घर कस थुनिहा।। गांव के बढ़ती खातिर अब, लंजावर कमती होही। ओतके मिलही सफा बात ये, जउन हर जतका बोंही।। जतके गुर ततके मिठास कस, जउन काम जुरहीं। मिल के काम सबो छुछिंद हो, एक मती हो कुरहीं।। बनही, बात, बतंगड़ कमती- धीरे-धीरे होही। अलग चिन्हाऊ हो जाही जे, फोकट कोनो ला बिटोही।। पंच के पदवी पबरित हे, ये परमेश्वर के आसन। जे पद…

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