मोर छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा मा । बसे जम्मो परानी हे।। दाई बबा सुनाए रीहिस। मोला येखर कहानी हे।। तोर भुइया म वो दाई । खेत खार लहरावत हे।। तभे तो दाई ये भुइया ह दाई। धान कटोरा कहावत हे।। महतारी के कोरा बरोबर । सब मनखे ल राखे हस।। सबो परानी सेवा करे तोर । दया मया ल राखे हस।। छत्तीसगढ़ के माटी ल दाई। चंदन माथ मै लगाथव वो।। जय छत्तीसगढ़ महतारी। तोर चरण म माथ नवावत हाव।। छत्तीस हावय तो गड़ वो दाई। छत्तीस भोग लगवाव वो।।…
Read MoreMonth: January 2018
अगुवा बनव
हुसियार बनके हुसियारी करव रे- बिजहा धान के रखवारी करव रे। करगा ल निमार फेकव, बन बदौरी ल चाली करव रे। लईका सियान मिलके बने, निस्तारी करव रे— सुमत के रद्दा म रेंगव, पिछवाव झन पूछी धरके, अगुवा बनव संगवारी चलव रे। मुहुकान ल तोपव झन, रद्दा ककरो रोकव झन। मुड़ी उपर चढ़हैईया ल, धरव पकड़व छोड़व झन। पगुरात झन बईठो भईसा कस, बघुवा कस गुरराय चलव रे। हमन किसनहा बेटा हरन, संघरही तेला संघराय चलव रे। ओरयाइस ओरवाती के धार, बांध लौ आजे तुमन पार। चिखला म गरकट्टा ल…
Read Moreछत्तीसगढ़ी कविता
दारू अउ नसा ह जब, इंहा ले बंद हो जाही। तभे, गांवे के लइका मन, विवेकानंद हो पाही।। जवानी आज भुलागे हे, गुटका अउ खैनी मा। देश कइसे चढ़ पाही? बिकास के निंसैनी मा।। जब गांवे ह गोकुल, अउ ददा ह नंद हो जाही… तभे गावें…. भ्रष्टाचार समागे हे, जवानी के गगरी मा। तभे लइका चले जाथे, आतंक के पै-डगरी मा।। देशभक्ति हो जाये तो, परमानंद हो जाही…. तभे गांवे…. पढ़ादव पाठ नवा इनला, देस बर आस हो जाही। कोनों भगत इंदिरा तो कोनो सुभाष हो जाही।। नवा पीढ़ी म…
Read Moreदुरिहा दुरिहा के घलो,मनखे मन जुरियाय अउ सार छंद – मकर सक्रांति
दुरिहा दुरिहा के घलो,मनखे मन जुरियाय कोनो सँइकिल मा चढ़े,कोनो खाँसर फाँद। कोनो रेंगत आत हे,झोला झूले खाँद। मड़ई मा मन हा मिले,बढ़े मया अउ मीत। जतके हल्ला होय जी,लगे ओतके गीत। सब्बो रद्दा बाट मा,लाली कुधरिल छाय। मोर गाँव दैहान मा,मड़ई गजब भराय। किलबिल किलबिल हे करत,गली खोर घर बाट। मड़ई मनखे बर बने,दया मया के घाट। संगी साथी किंजरे,धरके देखव हाथ। पाछू मा लइका चले,दाई बाबू साथ। मामी मामा मौसिया,पहिली ले हे आय। मोर गाँव दैहान मा,मड़ई गजब भराय। ओरी ओरी बैठ के,पसरा सबो लगाय। सस्ता मा झट…
Read Moreतिल-तिल बाढे़ के दिन जानव (14 जनवरी मकर संक्रान्ति)
हर साल नवा बछर मा 14 जनवरी के दिन हमन मकर संक्रान्ति परब ला बहुॅत धूम-धाम से मनाथन। अइसे तो ए तिहार ला देस अउ बिदेस म घलाव मनाए जाथे फेर ए तिहार के का महत्तम हे एला जानव……… धार्मिक महत्तम- मकर संक्रान्ति के परब ला जिनगी के संकल्प लेहे के परब घलाव कहे जाथे। ए दिन ला मन अउ इंद्रीय मा अंकुस लगाए के संकल्प के रूप मा घलाव मनाए जाथे। पितामह भीष्म हर मकर संक्रान्ति के दिन अपन परान ला त्यागे के परन लेहे रहिस हावै जबकि उनला…
Read Moreतिल लाड़ू खाबोन – मकर संक्रांति मनाबोन
मकर संकराति हिन्दू धरम के एक परमुख तिहार हरे। ए परब ल पूरा भारत भर में एक साथ मनाये जाथे। पूस मास में सुरुज देव ह धनु राशि ल छोड़ के मकर राशि में परवेस करथे इही ल मकर संकराति के नाम से जाने जाथे। मकर संकराति के दिन से ही सूर्य के उत्तरायन गति ह शुरू हो जाथे। ए दिन से रात छोटे अऊ दिन ह बड़े होना शुरु हो जाथे। दिन बड़े होय से परकास (अंजोर) जादा अऊ रात छोटे होय से अंधियार कम होथे। इही ल कहे गेहे –…
Read Moreभुर्री तापत हे
बाढहे हाबे जाड़ ह, सब झन भुररी तापत हे। कतको ओढ ले साल सेटर, तभो ले हाथ कांपत हे। सरसर सरसर हावा चलत, देंहें घुरघुरावत हे। नाक कान बोजा गेहे, कान सनसनावत हे। पानी होगे करा संगी, हाथ झनझनावत हे। कांपत हाबे लइका ह, दांत कनकनावत हे। गोरसी तीर में बइठे बबा, हाथ गोड़ लमावत हे। साल ओढके डोकरी दाई, चाहा ल डबकावत हे। गरम गरम पानी में, कका ह नहावत हे। गरमे गरम चीला ल, काकी ह बनावत हे। थरमा मीटर में घेरी बेरी, डिगरी ल नापत हे। बाढहे…
Read Moreमानवता गंवागे
मानुस जोनी के मानवता संगी अब कहा गवांगे रे मीठ मदरस कस गुरुतुर बोली अब कहा नंदागे रे ज्ञान के गठरी बांधे के दिन म लगे हे लिगरी चारी म ताव देखावत हे सब मनखे अपन अपन हुशियारीम अब्बड़ सुग्घर मानुस चोला धरम करम कमाए बर बने बने सुख सुम्मत के गोठ हिरदे म समाये बर कुसंग के रददा म जम्मों झन रेंगे सतमारग ल भुलागे रे मानुस जोनी के मानवता संगी अब कहा गवागे रे अधरम के ठीहा ल जम्मों झिन फलकावत हे नानकुन बात म अब लाल आँखी…
Read Moreचिंतन के गीत
बरहा के राज मा, जिमीं कांदा के बारी। बघवा बर कनकी कोंढ़हा, कोलिहा बर सोंहारी।।.. कतको लुकाएंव दुहना, कतको छुपाएंव ठेकवा। दे परेंव, बिलई ल रखवारी.. चोरहा ल देखके, सिपाही लुकाथे जी। बिलई ल देखके, मुसुवा गुर्राथे जी।। मछरी ह होगे अब तो, कोकड़ा बर सिकारी… बरहा के…. गरी खेलईया ह , फोही लगावत हे। कोतरी झोलईया ह, भुंडा फंसावत हे।। पांच बरस बर होगे, ओखर देवारी…. बरहा के…… करगा अउ धान के, अंतर ल देखव रे। खेत के बदौरी ल, मेंड़े म फेंकव रे ।। छत्तीसगढ़िया मनके, होगे हे…
Read Moreकँपकँपाई डारे रे
कँपकँपाई डारे रे ….ए….. एसो के जाड़ा कँपकाई डारे। करा कस तन ला जमाई डारे। कँपकँपाई डारे रे….ए….. दाँत किनकिनावत हे नाक हा बोहावत हे।। गोरसी तीर बइठे बबा चोंगी सुलगावत हे।। सुरूर सुरूर ए दे पुरुवाई मारे रे। कँपकँपाई डारे रे….ए…… उगती ले बुड़ती होथे कुरिया ह नइ भावै। कतको ओढ़े कथरी ला निंदिया नइ आवै।। का करवँ जीव ला करलाई डारे। कँपकँपाई डारे रे….ए….. देखव संगी सुरुज हा मोला बिजरात हे। भागत हावय छेंव छेंव कइसे इँतरात हे।। नहाई खोराई तरसाई डारे। कँपकँपाई डारे रे….ए…. बोधन राम निषाद…
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