भकाड़ू अऊ बुधारू के बीच म, घेरी बेरी पेपर म छपत माफी मांगे के दुरघटना के उप्पर चरचा चलत रहय। बुधारू बतावत रहय – ये रिवाज हमर देस म तइहा तइहा के आय बइहा, चाहे कन्हो ला कतको गारी बखाना कर, चाहे मार, चाहे सरेआम ओकर इज्जत उतार, लूट खसोट कहीं कर …….. मन भरिस तहन सरेआम माफी मांगले …….। हमर देस के इही तो खासियत हे बाबू …….. इहां के मन सिरीफ पांच बछर म भुला जथे अऊ कन्हो भी, ऐरे गैरे नत्थू खैरे ला, माफी दे देथे। भकाड़ू…
Read MoreDay: April 1, 2018
आरटीओ चेकिंग : समसामयिक हास्य संस्मरण
एक्सीलेटर ल मुठा म चीपे जोर से अइंठत सुन्ना रोड म फटफ़टी ल भगावत रहेंव, सनसन..सनसन… बोंअअ…ओंओंअअ ..। रद्दा में देखेंव त आठ दस झन मनखे मन तिरयाये अपन मोटरसाइकिल धरके खड़े रहय। एक झन नवरिया बिहतिया कस लागिस ओखर सुवारी कनिहा के आत ले मुड़ ला ढांके रहय। एक झन बनिया व्यापारी टइप मनखे गाड़ी के पाछू म बोरा लादे अउ आघू पुट्ठा म सामान धरे तीर मा ठाढे रहय। दू झन मनखे जबरन गाड़ी के प्लक ल खोल के साफ़ करत रहय, सब्बो गाडी वाले मन ल ठाढ़े…
Read Moreदोहा छंद म गीत
काँटों से हो दोस्ती, फूलों से हो प्यार। इक दूजे के बिन नहीं, नहीं बना संसार।। काँटों से हो दोस्ती……………….. कठिन डगर है जिंदगी, हँस के इसे गुजार। दुनिया का रिश्ता यहीं, निभता जाये यार।। काँटों से हो दोस्ती……………….. दुख हो सुख हो काट लो, ये जीवन उपहार। राम नाम में जोड़ लो, साँसों का ये तार।। काँटों से हो दोस्ती……………….. धूप छाँव बरसात हो, मिले ग़मों की मार। हँसता हुआ गुलाब ज्यों, छाये सदा बहार।। काँटों से हो दोस्ती………………… खो जाओ मजधार में, चलता हुआ बयार। हरि का मनमें…
Read Moreसुरूज नवा उगइया हे : छत्तीसगढ़ी गज़ल संग्रह
अपनी बात साहित्य में गज़़ल का अपना एक विशिष्ट स्थान है। उर्दू साहित्य से चल कर आई यह विधा हिंदी व लोकभाषा के साहित्यकारों को भी लुभा रही है। गज़़ल केवल भाव की कलात्मक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि यह जीवन के सभी पक्षों को स्पर्श करती चलती है। सामाजिक सरोकारों के अतिरिक्त युगीन चेतना विकसित करने का भी यह एक सशक्त माध्यम है। निश्चय ही परंपरावादी विद्वानों ने गज़़ल के संबंध में कहा है कि गज़़ल औरतों से या औरतों के बारे में बातचीत करना है,परंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में…
Read Moreछत्तीसगढ़ गज़ल और बलदाऊ राम साहू
-डॉ. चितरंजन कर निस्संदेह गज़ल मूलत: उर्दू की एक काव्य विधा है, परन्तु दुष्यंत कुमार के बाद इसकी नदी बहुत लंबी और चौड़ी होती चली गई है। जहाँ-जहाँ से यह नदी बहती है, वहाँ-वहाँ की माटी की प्रकृति, गुण, स्वभाव और गंध आदि को आत्मसात कर लेती है, जैसे नदी अलग-अलग प्रांतों, देशों में बँटकर भी अपना नाम नहीं बदलती, वैसे ही छत्तीसगढ़ में यह छत्तीसगढ़ी गज़ल के नाम से जानी जाने लगी है। छत्तीसगढ़ी में जिन कलमकारों ने गज़ल-विधा को आगे बढ़ाया है, उनमें डॉ. प्रभंजन शास्त्री, रामेश्वर वैष्णव…
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