24 मई -जेठ दसमी : वीर आल्हा जयंती, आल्हा चालीसा (आल्हा छंद में)

जेठ महीना दसमी जनमे, आल्हा देवल पूत कहाय। बन जसराज ददा गा सेउक, गढ़ चँदेल के हुकुम बजाय।~9 ददा लड़त जब सरग सिधारे,आल्हा होगे एक अनाथ। दाई देवल परे अकेल्ला, राजा रानी देवँय साथ।~10 तीन महीना पाछू जनमे, बाप जुद्ध में जान गवाँय। बीर बड़े छुट भाई आल्हा,ऊधम ऊदल नाँव धराय।~11 राजा परमल पोसय पालय, रानी मलिना राखय संग। राजमहल मा खेंलँय खावँय, आल्हा ऊदल रहँय मतंग।~12 सिक्छा-दीक्छा होवय सँघरा, लालन-पालन पूत समान। बड़े बहादुर बलखर बनगे, लागँय राजा के संतान।~13 बड़े लड़इया आल्हा ऊदल, जेंखर बल के पार न…

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चारो जुग म परसिद्ध सिवरीनरायन

प्रोफेसर अश्विनी केसरवानी सिवरीनरायन छत्तीसगढ़ के नवा जिला जांजगीर-चांपा म महानदी के खड़ में बसे जुन्ना, पबरित अउ धारमिक तीरथ हवे। ऐला आज सब्बो झन जानथे। इहां शिवनाथ अउ जोंक नदिया ह महानदी में मिलके पबरित अउ मुक्ति देवइया संगम बनाथे। इहां मरइया मन ल अउ ओखर हड्डी ल सेराये ले मुक्ति मिल जाथे। अइसने पोथी पुरान में घलोक लिखाय हे। ऐकरे बर इहां मरइया मन के हड्डी से सेराय बर अड़बड़ झन आथे अउ पिंडा पानी पारथे। महानदी के अड़बड़ महत्ता हे। जुन्ना सिवरीनरायन महात्तम ल पंडित मालिकराम भोगहा…

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गुंडाधूर

जल, जंगल, माटी लुटे, ओनीस सौ दस गोठ सुनावं रंज देखइया बपरा मन ला, हंटर मारत चंउड़ी धंधाय गॉंव-टोला म अंगरेज तपे, ळआदिबासी कलपत जाय मुरिया, मारिया, धुरवा बईगा, जमो घोटुल बिपत छाय भूमकाल के बिकट लड़इया, कका कलेंदर सूत्रधार बोली-बचन म ओकर जादू, एक बोली म आए हजार अंगरेजन के जुलूम देखके, जबर लगावे वो हुंकार बीरा बेटा गोंदू धुरवा ला, बाना बांध धराइस कटार बीर गुडाधूर जइसे देंवता, बस्तर के वो राबिनहुड गरीबन के मदद करइया, वो अंगरेजन ल करे लूट आमा डार म मिरी बांधके, गांव म…

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चलनी में गाय खुदे दुहत हन

चलनी में गाय खुदे दुहत हन कईसन मसमोटी छाय हे, देखव पहुना कईसे बऊराय हाबै। लोटा धरके आय रिहीस इहाँ, आज ओकरे मईनता भोगाय हाबै। परबुधिया हम तुम बनगेन, चारी चुगली में म्ररगेन। छत्तीसगढिया ल सबले बढिया कीथे, उहीं भरम में तीरथ बरथ करलेन। भाठा के खेती अड़ चेथी जानेंन, खेती बेच नऊकरी बजायेन। चिरहा फटहा हमन पहिरेन, ओनहा नवा ओकरे बर सिलवायेन। लाँघन भूखन हमन मरत हन, दांदर ओकरे मनके भरत हन। हमर दुख पीरा हरय कोन, बिन बरखा तरिया भरय कोन। सांप के मुंडी करा, हमर मन के…

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छत्‍तीसगढ़ी प्रेम गीत

काबर तै मारे नयना बान, गोरी तै मारे नयना बान। जीव ह मोर धक ले करथे, नई बाचे अब परान। काबर तै मारे……….. अँतस के भीतरी म, आके जमाये डेरा। अब्बड़ तोर सुरता आथे, दीन रात सबो बेरा। नई देखव तोला त जोहि, तरस जथे मोर चोला। काबर तै मारे नयना…… आजा मोर संगवारी , सुग्घर जिनगी बिताबो। मया पिरित के कुरिया, संगी मिल दोनों बनाबो। पाव के तोर पैइरी ल, छुनुर छुनुर बजाके। काबर तै मारे……… युवराज वर्मा बरगड़िया साजा 9131340315

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सासाबेगी

का सोंचबे अउ का हो जाथे फेर गोठ फटाक ले निकल जाथे मुह के तो धरखंद नइहे….! असकरन दास जोगी जी के ये कविता उंखर ब्‍लॉग www.antaskegoth.blogspot.com म छपे हे। आप येला उहां से पूरा पढ़ सकत हव।

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हमर पूंजी

दाई के मया अऊ ददा के गारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। सुवारी के रिस अऊ लईका के किलकारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। कोठी भर पीरा अउ भरपेट लचारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। हिरदे के निरमल;नी जानन लबारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। कोठा म धेनु अऊ छोटकुन कोला बारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। रीझे यादव टेंगनाबासा (छुरा)

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व्‍यंग्‍य : चुनाव के बेरा आवत हे

अवईया समे मा चुनाव होवईया हे, त राजनीतिक दाँव-पेंच अउ चुनाव के जम्मों डहर गोठ-बात अभी ले घुसमुस-घुसमुस चालू होगे हे। अउ होही काबर नही, हर बखत चुनाव हा परे-डरे मनखे ला हीरो बना देथे अउ जबर साख-धाख वाला मनखे ला भुइयाँ मा पटक देखे। फेर कतको नेता हा बर रुख सरीख अपन जर ला लमा के कई पीढ़ी ले एके जगा ठाड़े हे। अउ कतको छुटभईया नेता मन पेपर मा फोटू छपवा-छपवा के बड़े नेता बने के उदीम करथे। फेर चुनाव हा लोकतंत्र के अइसन तिहार आय जेमा लोगन…

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मोर लइका पास होगे

पूनाराम आज अड़बड़ खुस हे।बोर्ड परीछा के रिजल्ट निकलिस हे। जब चार महिना के मेहनत पाछू धान मिंज के लछमी ल घर लाथय तब गांव में रहइया गरीब किसान खुस होथे। सरी चिन्ता मेटा जाथे। ओइने आज एक साल के चिन्ता ले मुक्ति मिलिस।आज ओकर नोनी तारनी हा दूसरा दर्जा बारवीं पास होगे। अपन जिद मा बेटी ला रोज पांच किमी दुरिहा सायकल मा आन गांव मा भेज के पढ़ावत रहिस।ओकर बेटी ला पढ़ाय के संकलप पूरा होगे। गनेस,लछमी सरसती के असीस मिलगे। पढ़इया लइका के पास होय के सबले…

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पुस्तक समीक्षा : अव्यवस्था के खिलाफ आक्रोश की अभिव्यक्ति ‘‘झुठल्ला‘‘

महान विचारक स्वेट मार्डन ने कहा है कि ‘कहकहों में यौवन के प्रसून खिलते है।‘ अर्थात उन्मुक्त हँसी मनुष्य को उर्जा से भर देती है। पर आज के भौतिकवादी इस युग ने जीवन को सुविधाओं से तो भर दिया है पर होंठो से हँसी छिन ली है। एक ओर ढोंगी, पाखंडी, बेईमान और भ्रष्ट लोग अपनी आत्मा को बेचकर समृद्धि की शिखर पर मौज मना रहे हैं वहीं दूसरी ओर ईमानदार, श्रमशील और सत्यवादी लोग दो-जून की रोटी को तरस रहे है। जब चारों ओर ढोंग, आडम्बर, पाखंड का पहाड़…

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